मुहब्ब्त की , दिल जलाया ,
और उन्हें भूल गया मैं तो ,
बड़े दिल सोज लम्हे थे , वो ,
जिन्हें अब भूल गया मैं तो ,
जमाने के रस्म रिवाजों ने ,
मुझे बीमार कर दिया देखो ,
तकदीर से अपनी आज फ़िर,
भी उलझ गया मैं तो ,
फूलों की महक वो प्यारीऔर ,
रातों की कसक भी कैसी ,
चांदनी रात थी सारी रात ही ,
तन्हा तन्हा जाग गया मैं तो ,
मुहब्बत एक रोग है , सच कहा ,
तुमने पागल और दीवाना मैं तो ,
आंखों से उसकी पीकर कर के ,
उन्हीं आंखों में डूब गया मैं तो ,
जमीनों को आसमान से कब,
मुश्ताक मिलने दिया जमाने ने ,
उन्ही हसरतों में फिर भी न जाने ,
क्यों नादां उलझ गया मैं तो ,
- डॉ. मुश्ताक अहमद शाह
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