साहित्य चक्र

06 December 2022

कविताः फूलों की महक वो प्यारी




मुहब्ब्त की , दिल जलाया ,
और उन्हें भूल गया मैं तो , 
बड़े दिल सोज लम्हे थे , वो ,
जिन्हें अब भूल गया मैं तो , 
जमाने के रस्म रिवाजों ने ,
मुझे बीमार कर दिया देखो , 
तकदीर से अपनी आज फ़िर,
भी उलझ गया मैं तो ,
फूलों की महक वो प्यारीऔर , 
रातों की कसक भी कैसी , 
चांदनी रात थी सारी रात ही , 
तन्हा तन्हा जाग गया मैं तो ,
मुहब्बत एक रोग है , सच कहा ,
तुमने पागल और दीवाना मैं तो , 
आंखों से उसकी पीकर कर के ,
उन्हीं आंखों में डूब गया मैं तो , 
जमीनों को आसमान से कब,
मुश्ताक मिलने दिया जमाने ने , 
उन्ही हसरतों में फिर भी न जाने ,
क्यों नादां उलझ गया मैं तो , 


               - डॉ. मुश्ताक अहमद शाह



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