साहित्य चक्र

30 December 2022

कविताः कुछ कर्ज चुकाने बाकी हैं





आहिस्ता चल जिंदगी 
अभी कई कर्ज चुकाने बाकी है
कुछ दर्द मिटाने बाकी हैं
कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है
आहिस्ता चल जिंदगी 
अभी कुछ कर्ज चुकाने बाकी है 
रफ़्तार में तेरे चलने से
कुछ छूट गए, कुछ रूठ गए
रुठे को मनाना बाकी है
रोतो को हसना बाकी है
कुछ हसरते अभी अधूरी हैं
ख्वाहिश जो छूट गए  दिल में 
उनको दफनाना बाकी है
आहिस्ता चल जिंदगी
अभी कुछ कर्ज़ चुकाने बाकी है
कुछ रिश्ता बन टूट गए
कुछ judte judte छुट  गए
उन्न टुटे रिश्तों के
जाखमों को मिटाना बाकी है
तू आगे चल मैं आती हूं
क्या छोड़ तुझे जि पाउंगी 
 In सासो पर हक है जिन्का
उनको समझना बाकी है 
आहिस्ता चल जिंदगी 
अभी कुछ कर्ज चुकाने बाकी है
 

                                           भाविनी मिश्रा

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