साहित्य चक्र

29 December 2022

कविताः मोहब्बत






कहती हो तुम मुझसे तेरी मोहब्बत,मोहब्बत नहीं 
सालों से बाँट देख रहा तेरी क्या यह मोहब्बत नहीं ।

बहते रहे आंसू नैनो से लगातार वर्षों तक 
सूखे आंखों में प्यास अभी जगी है क्या यह मोहब्बत नहीं

हर तड़प को जो दिखाए दुनिया को वह मोहब्बत है 
मेरी हर तड़प जो दिल में समाए रहे क्या यह मोहब्बत नहीं 

छोड़ चली तुम मुझको किसी और को पाकर 
मिलन की चाह में भटकता रहा क्या यह मोहब्बत नहीं 

कहती रही तुम बेताब जीता है बिना मोहब्बत के 
तेरा नाम रुसवा ना करूं जमाने में क्या यह मोहब्बत नही।


               - आलोक सिंह बेताब


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