साहित्य चक्र

30 August 2016

बेटी बचाने निकला देश

                           - बेटी बचाने निकला देश - 


बेटी बचाने निकला मेरा देश।
बस शर्त इतनी है मेरे देश की,
बेटी अपनी नहीं, दूसरे की हो।।

बेटी बचाने निकला मेरा देश।
कहीं शोषण तो कहीं बलात्कार,
 हो रहा यहां पर सब माफ।।

बेटी बचाने निकला मेरा देश।
इसे मां चाहिए - बहन चाहिए,
लेकिन अपनी बेटी नहीं चाहिए।।


                                                  कवि- दीपक कोहली

25 August 2016

*हाथों में तिरंगा *

                       *हाथों में तिरंगा *


मेरे हाथों में तिरंगा हो, 
और होठों में गंगा हो।
यहीं मेरी अंतिम इच्छा है, 
कि मेरा भारत महान हो।।

मेरे आखों में देश छवि हो,
सांसों में यहां की हवा हो।
यहीं मेरी अंतिम चाहत है,
कि मेरा देश महान बने।।

मेरे होठों में हंसी हो,
औऱ हृदय में प्रित हो।
यहीं मेरा अंतिम सपना है,
कि मेरा देश रंगीला हो।।

मेरे कंधों में जिम्मा हो,
और सर पर कफन हो।
यहीं मेरा अंतिम ख्वाब है,
कि मेरा देश विजय हो।। 

                                                     कवि- दीपक कोहली

22 August 2016

*एक कवि*

                 *एक कवि*

        मैंने एक कविता लिखी है,
        जो मैं आपको सुनाता हूँ।।

                         खोए हुए सपनों को मैंने,
                          आंखों में बसाया हैं।।

                         कुछ रंगीन ख्वाबों को,
                         मैंने सांसों में समाया है।।

                          अपनी हर एक जीत,
                          मैंने दिल से लगाई है।।

                             उन कुछ हार से भी,
                           मैंने कुछ अपनाया है।।

                          जिससे मेरा दिल टूटा,
                          और दुश्मन खुश हुए।।
  
                          मैंने एक कविता लिखी,
                          जो मैंने आपको सुनाई।।


                                                                                                 कवि- दीपक कोहली

21 August 2016

*प्रभु भजन*

                            *प्रभु भजन*

प्रभु मुझे तुम ले चलो अपने संग.....।
कभी मथुरा तो कभी विन्दावन,
ले चलो प्रभु... ले चलो प्रभु....।।

प्रभु मुझे तुम ले चलो अपने संग.....।
कभी रामेश्वर तो कभी सोमेश्वर,
ले चलो प्रभु...ले चलो प्रभु....।।

प्रभु मुझे तुम ले चलो अपने संग.....।
कभी बद्री तो कभी केदार ,
ले चलो प्रभु...ले चलो प्रभु....।।

प्रभु मुझे तुम ले चलो अपने संग.....।
कभी परलोक तो कभी नरलोक,
ले चलो प्रभु...ले चलो प्रभु......।।

प्रभु ले चलो अब तो ले चलो...।।

                  
                                कवि-दीपक कुमार 

20 August 2016

*कलयुगी कविता*

                            *कलयुगी कविता*

कबीरा भ्रष्टाचार की लूट है,
तू भी दोनों हाथों से लूट।           नहीं तो फिर पछताएगा,
जब पद जाएगा छूट।।

रहीमन भ्रष्टाचार का राज है,
तू भी नम्बर दो कमा ले।
नहीं तो ईमानदारी के सौदे में,
उठाना पड़ेगा बड़ा नुकसान।।

कबीरा जाने कहां खो गये,
सत्य-धर्म औऱ ईमान।
अब यहां इंसानों के भेष में, 
घूम रहे है शैतान।।

नेताओं के आते-जाते, 
अब जनता हुई परेशान।
करत-करत वादे-घोटाले,
ये होए धनवान ।।


                           

                                                        कवि- दीपक कोहली


18 August 2016

एक रूप मेरा....।

                                एक रूप मेरा....।

सुन्दरता मेरी कश्मीर 
रूप मेरा मद्रासी है।।

केरल जैसी आँखें मेरी,
दिल मेरा दिल्ली है।।

मुस्कान मेरी यूपी तो,
स्वभाव मेरा उड़ीसा है।।

तिलक मेरा उत्तराखंड,
तो हृदय मेरा एमपी है।।

कुंडल मेरे छत्तीसगढ़ी तो,
पायल मेरे मिजोरमी है।।

घाघरा मेरा राजस्थानी,
दुपट्टा मेरा गुजराती है।।

बोली मेरी हिमाचली तो,
चोली मेरी पंजाबी है।।

चाल मेरी हरियाणी तो,
शौक मेरे अरुणाचंली है।।

मुकुट मेरा हिमालय तो,
पैर मेरे कन्याकुमारी है।।

काम मेरा वीरों वाला,
तो नाम मेरा भारती है।। 


                                        दीपक कोहली



16 August 2016

*तुम मेरी पहचान हो*

                                         *तुम मेरी पहचान हो*




मुस्कराती-इतराती तुम मेरी जान हो,
इस दुनिया में बस तुम्हीं मेरी पहचान ।।


कभी अकेले में तो कभी साथ रुलाती हो,
तुम ही मुझे मेरी तमन्ना याद दिलाती हो।।


मुस्कान तुम्हारे चहेरे पर खुदा की इबादत है,
तुम्हीं तो हो जो मेरे सपनों में खेलती हो।।


सांसों से सांस जुड़े है तुम्हारे साथ मेरे,
इस जीवन की नैनों में, मैं साथ रहूंगा तेरे।।

मुस्कराती-इतराती तुम मेरी जान हो...।।
                                


                                                                दीपक कोहली

                  

13 August 2016

मेरी जन्मभूमि

हम उस मिट्टी के है, जहां देवता निवास करते है।
मेरी मातृभूमि नहीं वो, पूरे विश्व की देवभूमि है।।


गंगा-यमुना बहते जिसमें, ऊँचा जहां हिमालय हो।
नमन करु इस भूमि को,केदार सा जहां शिवालय हो।।

जहां घर - घर में गाय माता को, आज भी पूजा जाता है।
वहीं घर- घर में तुलसी माता, आज भी लगी होती है।।


जहां हर पर्वत पे देवता बैठे हो, घर-घर में गोलू पूजा हो।
मिट्टी-पत्थरों से बने मकान हो, लकड़ियों से सजा शमशान हो।।




                                                                               कवि-  दीपक कोहली

11 August 2016

लिखता हूँ एक कविता, कुछ लाइनों में....|



लिखता हूँ एक कविता, कुछ लाइनों में,
ऐ मेरे वतन, तेके उन जवानों के लिए।
जिन्होंने अपना सीना चीर दिया गोलियों से,
और नहीं आने दी तेरे आंगन में कोई दरार।।



मुझे भी शौक था तेरी रक्षा करने करने का,
पर साथ नहीं दिया इस शरीर ने।
ऐ मेरे वतन तेरे उऩ जवानें को मेरा सलाम,
जिन्होंने तेरे लिए अपनी कुर्बानी दी।।



उन पहाड़ों और जंगलों में रहने का शौक था मुझे 
भी, पर क्या बताऊ मां ने मुझे कबूला नहीं।
ऐ मेरे वतन तेरे जवानों को मेरा नमन्,
जिन्होंने तेरे लिए अपना बलिदान दिया।।


आग और पानी से खेलना चाहता था तेरे लिए,
लेकिन उस खुदा को कबूल नहीं था मेरा यह खेल।
जिसने बना दिया मुझे एक कवि और एक मेल,
ऐ मेरे वतन तेरे उन जवानों को मेरा अदामा,
जिन्होंने हमारे लिए अपनी जान बाजी लगाई है।।


लिखता हूं एक कविता, कुछ लाइनों में.............।।




                                                                           दीपक कोहली


08 August 2016

मेरी सोच

                                          मेरी सोच

     
यहां नेता-अभिनेता सभी बिक जाते है,
कोई कौड़ियोंं के दाम तो, किसी का दाम करोड़।

चाहे राजतंत्र हो, या लोकतंत्र हो,
दिख जाता है  इन सब का कूड़ा राजनीति-तंत्र

बड़े-बड़े नेताओं की लगती है इसमें बोली,
देखो कैसे जनता से खेलते है ये आंख मिचोली।

राजनीति में देखो इनकी लीला, 
सियासत की कौम सड़ा रही कबीला।

यहां योग्य भी अयोग्य बन जाता और,
कमजोरी में यहां गंधा बाप कहलाता।

लोकतंत्र का पत्थर काट रहा है हीरा, 
नेता-अभिनेता सब चाट रहे है खीरा।

खेल-खिलाड़ियों में अब हो रहे है पंगे,
बाँलीबुड-राजनीति  में सब हो गये है नंगे।।



                                             दीपक कोहली
 


एक रचना

                                      

                                         एक रचना

                                        

                                        एक रचना सोचता हूं मैं अक्सर,
                                        मगर रच न सका आज तक...।
                                        संमदर से भी ज्यादा गहरा है ,वो
                                          पर्वतों से भी ज्यादा ऊंचा.....।।

                                                                                            




  हर वो लम्हा मैं रचना चाहता हूं,                                                                                            जो ईश्वर-खुदा  नहीं रच पाया ।                                                                                    आकाश से ज्यादा चौड़ा व  पाताल                                                                                          से ज्यादा गहरा,मैं रचना चाहता हूं।।


                                                                            हर वो चीज मेैं रचना चाहता हूं,
                                                                            जो इस पृथ्वी लोक में बसा हो।
                                                                            चाहे यहां के मानव जाति हो, या
                                                                           यहां के ऊचे पहाड़ और गगन हो।।


हर उस भूमि को मैं रचना चाहता हूं. जो
मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा में लिप्त हो।
चाहे कैलाश-महादेव हो या ख्वाजा अली
-अमृतसर गुरुद्वारा क्यों ना हो।।

                                                                      एक रचना सोचता हूं मैं अक्सर ,
                                                                      मगर रच न सका आज तक..।।

                                                                                                                          दीपक कोहली

05 August 2016

* बूढ़े मां- बाप का सहारा कौन....?

                     * बूढ़े मां- बाप का सहारा कौन....?



"ढलते सूरज की तरह है, पर उनके बिना घर अधूरा है"
मानो या ना मानो फिर भी अपनों का हाल जानते है।।

बूढ़े मां-बापें का सहारा कौन...? जी हां आज दुनिया जितनी आधुनिक और आगे बढ़ रही है उतने ही बूढे़ मां-बाप अपनों से दूर होते जा रहे है। आज का युग जितना ही अधिक विकसित हो रहा है उतने की हमारे मां-बाप अकेले होते जा रहे है। मेरा कहने का अर्थ ये है कि आज हमारे पूर्वज (दादा-दादी) अकेलापन सह रहे है। क्योंकि कुछ पूर्वजों (लोगों) का कोई सहारा नहीं है और कुछों का सहारा होने के बावजूद  भी वे अकेले रह रहे है। जिसका एक कारण हम ये मान सकते है कि समय आधुनिक होना। आज हमारे देश में कई बुर्जुगों की हालत काफी परे है। इसी को देखते हुए सरकार ने  देश में जगह-जगह वृद्ध-अाश्रम खाले है। जिस में बुर्जुग और बेसहारा लोग रह है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती सवाल तो ये है कि हम उनके साथ ऐसा व्यवहार क्यो करते है.? जिससे उन्हें अकेलापन महसूस होता है। हमें सोचना ही होगा कि जिन मां-बापो ने हमारे लिए दर्र-दर्र की ठोकरें खाई और हम अपने पैरों पर खड़े होने का मौका दिया। जिसके चलते हम अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके और आज हम अपने पैरों पर खड़े हुए। वहीं हमें अपनी अाने वाली पीढ़ी को भी बताना होगा कि हमारे पूर्वज कौन थे और कौन हैं। जिससे हमारे नई पीढ़ी परिचित हो सके।  जहां शहरों कुछ नई पीढ़ी के बच्चों को आज भी पता नहीं होता कि उनके दादा-दादी कौन है और कहां रहते है। क्योंकि इन बच्चों को उनके मां-बाप बाताते ही नहीं है कि उनके दादा-ृदादी और गांव भी है।  जिस देश में श्रवण कुमार जैसे सेवी पुत्र पैदा  हुए हो और आज उस देश में बूढ़े माता-पिताओं की ऐसी हालत देख बढ़ा ही दुख होता है। वहीं एक समय था जब भारत में बुर्जुगों का सम्मान हुआ करता था लेकिन आज देश  अपना यह  संस्कृति भूल रहा है। हमें इस बारे में सोचना होगा कि देश कि संस्कृति खतरे में हैं और पश्चिमी संस्कृति ्पना रही है। मुझे दुख इस बात का नहीं है कि हमारा  देश तरक्की कर रहा है, मुझे तो दुख इस बात का है कि भारत जैसे सभ्यता संस्कृति वाले देश में बूढ़े मां-बापों (बुर्जुग) के साथ ऐसा हो रहा है। क्या यह भारत जैसे देश को शोभा देता है, अगर देता है तो इसे  मातृभूमि नहीं कहना चाहिए क्योंकि जहां चंद रुपयों के लिए और बीबी बच्चों के लिए बुर्जुग माता-पिताओं का अपमान किया जाता है। जिससे उन मां-बापों के हौसलें और उम्मीदें खत्म हो जाती है और वे अंधकार से अपना जीवन त्याग देते है।


                                                                                       दीपक कोहली

03 August 2016

मैं तेरी अजन्मी बेटी

*मैं तेरी अजन्मी बेटी *


माँ.... ये मैं हूँ, तेरी अजन्मी बेटी, मत मरना माँ..... ।।

माँ..मैं भी तेरे शरीर का अंश हूँ, बला कैसे हो सकती हूँ, 
उस पिता का भी अंश हूँ,   जो मुझे आज बला कहता है। 
मत मरना माँ-मत मरना माँ........।।

माँ..दादा -दादी क्यों टुकुर - टुकुर तकते है, मुझे और, 
वो बुआ भी शब्दों से डंक मारती है,जो खुद एक बेटी है। 
मत मरना माँ-मत मरना माँ........।। 

माँ... मैं भी आना चाहती हूँ, इस संसार के खेल में,
और करना  चाहती हूँ,  तेरे गोद  से अपना  मेल। 
मत मरना माँ-मत मरना माँ........।। 

माँ...क्यों लोग धन की वासना करते है जबकि 
माँ लक्ष्मी  भी  एक स्त्री  रूपी देवी  महिला है। 
मत मरना माँ-मत मरना माँ........।।  

माँ... मैं जानती हूँ, तू मुझे जन्म देना चाहती है,
और बदन  चूमके  मुझे  प्यार करना चाहती है 
मत मरना माँ-मत मरना माँ........।। 


                                                                         दीपक कोहली  


 *सत्य की मिसाल स्वामी जी *

 स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में कलकत्ता में हुआ था। इन्होंने अपना जीवन अपने गुरु "रामकृष्ण परमहंस " को समर्पित कर दिया और जीवन भर उनकी सेवा में लगे रहे। स्वामी जी एक विख्यात व प्रभावशाली गुरु भी थे। लोग स्वामी जी को "शिकागो" के नाम से भी जानते हैं क्योंकि इन्होंने अमेरिका के शिकागो शहर में वर्ष 1893 में आयोजित "विश्व धर्म महासभा" में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। जब स्वामी जी ने इस सम्मेलन में भाषण दिया तो शुरुआत की "मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों" कहकर जो कि आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इन्हें आज भी इस भाषण के लिए जाना जाता है। स्वामी जी बचपन से ही बड़े तीव्र बुद्धि वाले थे और उनके अंदर परमात्मा को पाने की ललक थी। स्वामी जी का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। ये बड़े अतिथि-सेवी भी थे। विवेकानंद जी बड़े ही स्वप्नदृष्टा थे। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जिसमें धर्म व जाति के आधार पर कोई भेद-भाव न हो। आज के नवयुवाओं के लिए स्वामी जी एक आदर्श के रूप में देखे जा सकते हैं। जो एक ओजस्वी संन्यासी थे। स्वामी जी ने 25 वर्ष की अवस्था में गेरुवे वस्त्र धारण कर लिए थे। तत्पश्चात उन्होंने पूरे भारतवर्ष की पैदल यात्रा की। अमेरिकी मीडिया ने उन्हें "साइक्लॉनिक हिन्दू " का नाम दिया था। वे सदा अपने आप को "गरीबों का सेवक" कहते थे। भारत का गौरव उन्होंने उज्ज्वल करने का सदा प्रयत्न किया।



 "उठो, जागो, स्वयं जागकर ओरों को जगाओ"।
  अपने नर-जन्म को सफल करो और
  तब तक नहीं रुको,जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये ।।


वे केवल एक संत ही नहीं, एक महान वक्ता, विचारक, लेखक, देशभक्त, मानव-प्रेमी भी थे। गांधी जी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानंद जी का ही आह्रान था। उनका विश्वास था कि भारतवर्ष पवित्र धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषि-मुनियों, संन्यासियों-त्यागियों का जन्म हुआ है।

 "तुमको कार्य के सभी क्षेत्रों में व्याहारिक बनना पड़ेगा"                      

   सिद्धांतों के ढेरों ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है।। 

विवेकानंद एक संन्यासी व सत्य का साथ देने वाले महापुरुषों में से एक है। वह एक ब्राह्मण होने के बाद भी उन्होंने जाति-धर्म भेद-भाव का विरोध किया। आज स्वामी जी का जन्म युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी जी ने शिक्षा से दो जीवन तैयार करना चाह......                              

1- लौकिक दृष्टि से उन्होंने "शिक्षा के सम्बन्ध में कहा कि "हमें ऐसी शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र गठन हो,मन का बल बड़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति स्वावलम्बी बने"।                                                           

 2- पारलौकिक दृष्टि उन्होंने कहा कि "शिक्षा मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है"। स्वामी जी का मानना था कि "हमें बालक व बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा व दर्जा देना चाहिए और साथ ही धर्म व जाति पर भी भेद-भाव नहीं करना चाहिए।

।। स्वामी विवेकानंद जी को मेरा शत-शत कोटि-कोटि नमन।। 


                                                                                                            दीपक कोहली

02 August 2016

I Love My Uttarakhand and My Country

उत्तराखंड के सभी शहीद आंदोलनकारियों को मेरा नमन -



उत्तराखंड की नींव रखने वाले आंदोलनकारियों को आज यह देखकर बड़ी ही प्रसन्नता हो सकती है कि उनके सपनों का राज्य उत्तराखंड आज दिन दुगनी - रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। उत्तराखंड प्रगति के पर्थ पर तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है । यह सब उन्हीं आंदोलनकारियों का प्रयास है जो आज साकार रूप ले रहा है। आज उत्तराखंड 15 सालों के बाद अपने आप में एक पर्वतीय राज्य होने के नाते कॉफी विकसित हुआ हैं। जिससे यहां के लोगो को एक अलग पहचान मिली है। वैसे तो उत्तराखंड एक छोटा सा राज्य है लेकिन फिर भी यहाँ की संस्कृति व यहाँ का रहन-सहन अपने आप में अलग हैं। यहाँ  की सौंदर्य व संस्कृति यहाँ  की पहचान है । वहीं उत्तराखंड को देवभूमि - तपोभूमि व मानसखंड नामों से भी जाना जाता हैं।  पहले के मुकाबले हमारा राज्य उत्तराखंड अपने आप में बहुत शिक्षित व विकसित हैं।



             "खण्डा: पञ्च हिमालयस्य कथिता:"                       नेपाल कूमाचलौ।                केदारोडथ जालन्धरोडथ रूचिर                     काश्मीर सञोडान्तेम:। ।



ऊतराखंड में  भारत की सबसे बड़ी नदियाँ गंगा-यमुना व अन्य छोटे-छोटे  नदियों का उदम स्थल है। पयर्टन यहाँ की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाती है। वहीं राज्य में हिंदुओं से लेकर सिखों तक के मन्दिर-गुरूद्धारे मिलते है। 


            "जहाँ उत्तर में हिमालय व तिब्बत तो वहीं दक्षिण में उत्तरप्रदेश है "                 वहीं पश्चिम में हिमांचल तो पूर्व में नेपाल स्थित है । ।


जहां राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रता भी देखी जाती है तो वहीं हजारो की संख्या मन्दिरेँ यही बताती है की ये देवभूमि है। वहीं अगर एक नजर डाले राज्य के तीर्थ स्थलों पर तो  सबसे पहले  चार धाम याद आता है जोकि इस प्रकार है - गंगोत्री ,यमुनोत्री , केदारनाथ, बद्रीनाथ तो  वहीं  पंचप्रयागों में देवप्रयाग, कर्णप्रयाग, रूदप्रयाग,नंदप्रयाग, विष्णुप्रयाग स्थित है। अगर गुरूद्धारे की बात करें तो हेमकुंड साहेब सबसे पहले याद आता है जो की हरिद्धार में स्थित है। जहां एक ओर फूलों की घाटी मसूरी तो वहीं पहाड़ो की रानी चमोली को कहते है।वहीं छोटा कश्मीर पिथीरागढ़ है तो मिनी स्विजलैंड कौसानी इन नामों से जाने जाते हैं। उत्तराखंड जो एक छोटा-सा राज्य व पर्वतीय राज्य से जाना जाता है। जिसने देश को क्रिकटर, मॉडल, सिंगर , नेता आदि दिए जो आज भी पूरे देश का नाम रोशन कर रहे है और इतिहास भी गंवाह है कि यहां से कई वीर व आजादी के नायक भी निकले जो आज पूरे देश की शान बने हुए हैं ।।
Writer Deepak kohli

मेरा उन अमर शहीदों को शत-शत नमन व श्रद्धांजलि जिन्होंने हमारे भविष्य के लिए अपना वर्तमान कुर्बान कर दिया और हमें एक अलग पहचान दे दी। 


                                                "उत्तराखंड की खूबसूरती व शांति"                                                   देवताओं की भूमि व संस्कृति                                                ये पृथ्वी पर स्वर्ग का प्रतीक है । ।

                                                                                                                                                                                                                                          दीपक कोहली

My Article - Clean India Dream India

 एक कदम स्वच्छता की ओर 

''स्वच्छता ही सबसे बड़ा त्यौहार है
त्यौहार ही हमारी संस्कृति है
संस्कृति को ले जाए आगे पर
ध्यान रहे स्वच्छता का " जय हिंद । । 

अक्सर हम त्योहारों व शादी - विवाहों , उत्सवों व अन्य समारोहों में ये भूल जाते है की गंदगी कितनी हो रही है।हमें इन सभी बातो का ध्यान देना चाहिए की हमारा पर्यावरण कितना प्रदूषित हो रहा है । हमने अक्सर देखा है कि जब हम किसी समारोह में जाते है तो वहां पर डिस्पोजल व अन्य चीजो का इस्तेमाल किया जाता है जिससे हमारा पर्यावरण कॉफी प्रदूषित होता हैं।  वहीं शादी - विवाहों  व त्योहारों पर कॉफी  बम-पटाखे फोड़े जाते है जिससे पर्यावरण ही नही वायु प्रदूषित भी होता है जो की हमारे स्वास्थ्य के लिए कॉफी हानिकारक हैं। देश की हालत गंभीर होती जा रही है प्रदूषण से, जहां अमेरिका व चीन के बाद तीसरे नंबर पर आता हैं भारत प्रदूषण के मामले में ,तो वहीं यह एक सोचने वाली बात है कि देश की हालत इतनी ख़राब है। जहाँ एक ओर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले दो वर्षों से  'स्वच्छ भारत अभियान' चलाया जा रहा है लेकिन अब इसका भी कोई खास असर देखने को नहीं मिला है। चाहे दिल्ली हो या देश के और शहर हर जगह हालात एक जैसे है। ऐसा क्यों हम गंदगी बार - बार करते है और क्यों सफाई एक बार या नहीं करते हैं। हमें सोचना होगा कि जब हम अपने घर को साफ रख सकते है तो क्यों हम बाहर जाकर गंदगी फैलाए। एक प्रधानमंत्री से लेकर एक आम आदमी तक, हमें खुद सोचना होगा कि हमारे देश की शान व भविष्य साख पर है । मुझे विश्वास है कि आप एक कदम स्वच्छता की ओर जरूर बढ़ाओगे।         ।।जय हिन्द जय भारत।।

" ना प्रधानमंत्री , ना मुखयमंत्री आयेगा''
  हमें खुद करना होगा, और
  एक स्वच्छ भारत बनाना होगा । जय हिन्द । 


                                                                                        दीपक कोहली

01 August 2016

My Poem

Writer-Deepak kohli 

                   =   जीवन का मूल्य  = 



ये जीवन क्या है ?
कभी जन्म तो,
कभी मरण है। 
कभी ख़ुशी तो ,
कभी गम है।  

ये जीवन क्या है ?
कभी बचपन तो ,
कभी बुढ़ापा है। 
कभी अपने तो ,
कभी सपने है। 

ये जीवन क्या है ?
कभी जवानी तो ,
कभी दीवानी है। 
कभी चलना तो ,
कभी रुकना है। 


ये जीवन क्या है ?
कभी मस्ती तो ,
कभी सुस्ती है। 
कभी गरीबी तो ,
कभी अमीरी है। 


                                 कवि - दीपक कोहली