साहित्य चक्र

30 May 2023

भारत में इतने मिग-21 क्रैश क्यों ?

मिग-21 रुस का तैयार एक फाइटर विमान है। इसका इंजन काफी पुराना है और इसके साथ ही इसमें इस्तेमाल किए गए तकनीक भी काफी पुराने हैं। ये एक सिंगल इंजन वाला होता है और इसमें आग भी लग जाती है। इसका इस्तेमाल करने की क्षमता कहीं अधिक है। जांच में सामने आया है कि इसकी खिड़कियों की डिजाइन में भी कुछ गड़बड़ी है, जिसकी वजह क्रैश जैसे हादसे हुए। हालांकि इसे 2025 में रिटायर किया जाएगा। इसने अपनी पहली उड़ान साल 1955 में भरी थी और भारतीय वायु सेना में साल 1963 में शामिल किया गया।





मिग-21 लड़ाकू जहाज, जिन्हें साठ के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) से खरीदा गया था। रूस इस फाइटर प्लेन को 1985 में रिटायर कर चुका है, लेकिन भारतीय सेना में आज भी इन जहाजों का इस्तेमाल हो रहा है। इस जहाज की खासियत रही है कि यह कभी धोखा नहीं देता, बशर्ते इसे पूरी सावधानी एवं सूझबूझ के साथ उड़ाया जाए। 1971 की लड़ाई में इस सुपरसोनिक जहाज की मार से दुश्मन कांप उठा था। ढाका के गवर्नर हाउस पर मिग-21 ने ही अटैक किया था। इसके अलावा पाकिस्तान के साथ 1965 और 1999 की लड़ाई में भी इस लड़ाकू जहाज खुद को साबित कर दिखाया था। अब इस जहाज के क्रैश होने की घटनाएं इतनी ज्यादा हो चली हैं कि इसे 'उड़ता ताबूत' और 'विधवा बनाने वाला' तक कहा जाने लगा है। हालांकि इसका अपग्रेडेशन का काम चल रहा है, ऐसे में क्या अगले दो तीन साल में इसे पूरी तरह से रिटायर कर दिया जाएगा।  

मिग-21 बाइसन विमानन इतिहास का पहला सुपरसोनिक जेट विमान है और दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला फाइटर जेट भी है। जबकि यह 60 साल से अधिक पुराना है, मिग -21 अभी भी चार सक्रिय स्क्वाड्रनों के साथ भारतीय वायु सेना के साथ सेवा में है, और जेनरेशन 3 फाइटर जेट्स से मेल खाने के लिए अपडेट किया गया है। जेट वर्तमान में केवल इंटरसेप्टर के रूप में उपयोग किए जा रहे हैं, लड़ाकू जेट के रूप में सीमित भूमिका के साथ और ज्यादातर प्रशिक्षण अभ्यास के लिए उपयोग किए जाते हैं। मिकोयान-गुरेविच मिग 21 एक सुपरसोनिक जेट लड़ाकू और इंटरसेप्टर विमान है, जिसे सोवियत संघ में मिकोयान-गुरेविच डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा डिज़ाइन किया गया है। मिग सोवियत संघ का एक उत्पाद है जिसने 1959 में सेवा में प्रवेश किया था। चार महाद्वीपों पर लगभग 60 देशों ने मिग-21 को उड़ाया है, और यह अपनी पहली उड़ान के छह दशक बाद भी कई देशों की सेवा करता है।

 भारत ने 1963 में मिग-21 को शामिल किया और देश में विमान बनाने के लाइसेंस-निर्माण के लिए पूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अधिकार प्राप्त किए। 1985 में रूस ने विमान का उत्पादन बंद कर दिया, जबकि भारत ने उन्नत रूपों का संचालन जारी रखा। सोवियत वायु सेना - जिसे विमान को डिजाइन करने का श्रेय दिया जाता है - ने इसे 1985 में सेवा से हटा दिया। तब तक, अमेरिका से लेकर वियतनाम तक के देशों ने विमान को अपनी वायु सेना में शामिल कर लिया था। 1985 के बाद बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने इसे सेवा से हटा दिया। भारत के लिए, विमान को 1960 के दशक में वायु सेना में शामिल किया गया था और 1990 के दशक के मध्य में उनकी सेवानिवृत्ति की अवधि पूरी हो गई थी। इसके बावजूद इनका उन्नयन किया जा रहा है। अक्टूबर 2014 में, वायु सेना प्रमुख ने कहा कि पुराने विमानों को सेवा से हटाने में देरी से भारत की सुरक्षा को खतरा है क्योंकि बेड़े के कुछ हिस्से पुराने थे।

इसके अलावा, एक इंजन वाला विमान होने का मतलब है कि यह हमेशा खतरे में रहता है। विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना तब बढ़ जाती है जब कोई पक्षी उससे टकराता है या इंजन फेल हो जाता है। इसे अक्सर 'फ्लाइंग कॉफिन' और 'विडो मेकर' कहा जाता है, क्योंकि इसने पिछले कुछ वर्षों में कई दुर्घटनाओं का सामना किया है, जिसमें कई पायलट मारे गए हैं। नए लड़ाकू विमानों को शामिल करना। देरी के कारण, भारतीय वायुसेना को भारत के आसमान की रक्षा के लिए एक निश्चित स्क्वाड्रन ताकत बनाए रखने की कमी का सामना करना पड़ रहा है। स्वदेशी तेजस कार्यक्रम में देरी, राफेल सौदे के आसपास के राजनीतिक विवाद और धीमी गति वाली खरीद प्रक्रिया का मतलब है कि मिग को अंदर रखा जाना था। सामान्य से अधिक लंबी सेवा, अपनी सेवानिवृत्ति अवधि से परे - 1990 के दशक के मध्य में।

पिछले दस वर्षों में, 108 हवाई दुर्घटनाएं और नुकसान हुए हैं जिनमें सेना के सभी अंग शामिल हैं - भारतीय वायु सेना, नौसेना, सेना और तटरक्षक बल। इनमें से 21 दुर्घटनाओं में मिग-21 बाइसन और इसके वेरिएंट शामिल हैं, हालांकि भारतीय वायुसेना अब ज्यादातर पूर्व में उड़ती है। दुर्घटनाओं की उच्च दर ने विमान को 'फ्लाइंग कॉफिन' का उपनाम दिया। सैन्य विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने का कोई एक सामान्य कारण नहीं है। वे मौसम, मानवीय त्रुटि, तकनीकी त्रुटि से लेकर पक्षी हिट तक हो सकते हैं। मिग-21 एक इंजन वाला लड़ाकू विमान है, और यह कुछ दुर्घटनाओं का कारण भी हो सकता है। यह सिंगल इंजन फाइटर है और जब यह इंजन खो देता है, तो इसे फिर से शुरू करने की आवश्यकता होती है। अधिक बार यह फिर से रोशनी नहीं करता है लेकिन किसी भी इंजन को फिर से रोशन करने में एक सीमित समय लगता है, इसलिए यदि आप न्यूनतम ऊंचाई से नीचे हैं, तो आपको विमान छोड़ना होगा।

भविष्य के विमान दुर्घटनाओं को रोकना प्रौद्योगिकी के संयोजन और उपयुक्त और पर्याप्त पायलट प्रशिक्षण के उपयोग में निहित है। विमान में ग्राउंड प्रॉक्सिमिटी वार्निंग सिस्टम की स्थापना प्रारंभिक संकेत उत्पन्न करेगी जो सीएफआईटी की शुरुआत के खिलाफ निवारक उपाय करने के लिए उड़ान चालक दल को सचेत कर सकती है। स्थितिजन्य जागरूकता विकसित करने और सही हस्तक्षेप करने के लिए पायलटों के प्रभावी प्रशिक्षण पर पायलट प्रशिक्षण में जोर दिया जाना चाहिए।


                                                           -डॉ सत्यवान सौरभ


कविताः दूसरी मोहब्बत




मस्तमौला, बेबाक, 
बेहिसाब सी होना चाहती हूं,
मैं फिर एक बार 
किसी को चाहना चाहती हूं ,
कौन कहता है कि 
मोहब्बत दोबारा नहीं होती,
मैं फिर एक बार प्यार की 
झूठी कसमें खाना चाहती हूं,
ये मेरी दूजी मोहब्बत है 
ये याद रखना,
मुझ पर ज्यादा वफाओं 
का बोझ ना रखना,
मैं झूठे वादे-कसमों का 
दावा न कर पाऊंगी,
मैं सिर्फ तुम्हारी हूं और तुम्हारी 
रहूंगी ये वादा ना कर पाऊंगी,
मेरे किरदार पर तुम कभी शक ना करना,
मुझे बेइंतहा बेहिसाब 
चाहने की गलती ना करना,
बीच मझधार में छोड़ ना 
जाना यह वादा ना लूंगी,
साथ उम्र भर जीने 
मरने का वादा ना दूंगी,
ग़र मोहब्बत पे एतवार ना हो 
तो मुझसे मोहब्बत ना करना,
नही तो किसी मोड़ किसी राह 
पर तड़पता हुआ छोड़ दूंगी



                                        - चंद्र प्रभा


कविताः घर है तुम्हारा



संँभाल लो ! घर संँवार लो ! 
घर है तुम्हारा।

बड़े नाजुक होते हैं दिल के रिश्ते, 
तुम इन्हें निभा लो! 
धीरे-धीरे बंद मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जाएगा, 
मन में प्रायश्चित के सिवा कुछ भी नहीं बचेगा , 
अपनों से कैसा शिकवा ? 

तुम्हारा है परिवार , 
तुम इसे बेगाना न समझो ! 

एक दूसरे से प्रेम कर लो! 
चार दिन की है जिंदगानी , 
खाली हाथ आए हैं खाली है जाना
सब कुछ धरा पर रह जाएगा , 

सामंजस्य बिठा लो ! 
मायके से ज्यादा ससुराल है प्यारा , 
अपना के देखो  तुम एक बार , 
प्रेम करते हैं सभी तुमसे, 
थोड़ा मान-सम्मान इन्हें दे कर देखो, 
मोम की तरह हृदय है इनका, 
तुम इनकी भावनाओं से खेलना छोड़ो !

संँभाल लो! सँवार लो ! 
घर है तुम्हारा।


                                          - चेतना प्रकाश चितेरी


मौन और एकांत की आवश्यकता



कभी-कभी मन एकांत की कामना करता है बिल्कुल उस तरह जैसे तेज धूप  से गुजरने के बाद बादल की ठंडी छांव की इच्छा होती है। ऐसी शीतल पवन जो तन के साथ ही साथ मन भी शांति से भर दे। 





एकांत और मौन रहने का यह बलवती आवेग इतना प्रबल होता है कि उस काल खंड में सिर्फ और सिर्फ मौन रहना ही बहुत होता है।  खालीपन से भरा हृदय किसी भी प्रकार के विचार से भी दूर रहना चाहता है भले ही वह प्रसन्नता का रूप हो अथवा दुख का इस खालीपन के साथ मौन और एकांतवास हमें स्वयं से मिलवाता है, हमारे आदिम रूप में पूर्ण सत्यता के साथ हुआ यह साक्षात्कार भाषाविहीन होकर केवल संवेदनाओं पर केंद्रित होता है।

मन में उमड़ते विभिन्न आवेग–संवेग निष्पक्ष होकर मस्तिष्क के कोष्ठों–प्रकोष्ठों में विचरण करते हैं। ऐसे में नेत्र मूंद कर स्वयं को पूर्ण रूप से शिथिल कर देना श्रेयस्कर है ताकि यह समझना आसान हो सके कि इस स्थिति में नियति असीम सत्ता,क्या संदेश प्रेषित करना चाहती है। अपना पूरा ध्यान उस संदेश को प्राप्त करने में लगा देना चाहिए किंतु बलपूर्वक नहीं। 

यह भी एक साधना की समान होना चाहिए, श्वासों की गति में ध्यान लगाते हुए त्रिकुटी ( दोनों भोहों का मध्य स्थल) की केंद्रित करने का प्रयत्न करें।
मन की ऊहापोह शने: शनेः क्षीण होने लगेगी। आप पाएंगे कि वे आवेग जो अस्थिर थे वे अब स्थिरता की ओर बढ़ रहे हैं और अंत में जब वे पूर्ण रूप से स्थिर हो जाते हैं तब आप असीम शांति से भर उठते हैं।हो सकता है यह क्रिया कुछ घंटो में सम्पन्न हो या कुछ दिनों में किंतु पूर्ण अवश्य होगी।

यह स्थिति प्रत्येक मनुष्य के जीवन में बहुत बार आती है। हम इसे अकारण मन खराब होना समझ कर स्वयं को बाह्य साधनों में व्यस्त करने का प्रयत्न कर प्रसन्नता ढूंढने का प्रयास करते हैं। बहुत बार सफल भी होते हैं इसमें किंतु हम स्वयं के लिए प्राप्त हुए दुर्लभ पलों को खो देते हैं जिनमें हम एक असीम सत्ता से प्राप्त अदभुत शक्ति, सुकून को प्राप्त करने वाले थे, जिन पलों में हम स्वयं को तलाश कर अपने मित्र बनने वाले थे, उस अवसर को अज्ञानतावश हम गवां देते हैं।

अगली बार जब आपको ऐसा अनुभव हो कि आपको एकांत और मौन की आवश्यकता किसी भी अन्य वस्तु , स्थान या व्यक्ति से अधिक हैं तो स्वयं को रिक्त होने देने से मत रोकिएगा। रिक्त होना ही नवीनता का समावेश करता है और मौन मन के गहन रहस्यों से परिचित करवाने में मदद करता है जब आप इस मौन को ध्यान की तरह प्रयोग करते हैं।


                                                        - मेघा राठी


कविताः पहचान



मेरी पहचान क्या है 
यही सोचती हूं में,
कभी पापा, कभी पति के 
नाम से जानी जाती हूँ मैं,
जिंदगी अपनी तरह कैसे जिये,
इसी मे जीवन गुजार दिया,
एक ही तमन्ना है जीवन में,
अपने नाम से पहचानी जाऊँ,
उसके लिए क्या करना होगा मुझे,
यही सोच विचार मे उलझी हूं में,
जो मदद मुझसे माँगता है,
बिना किसी हिचकिचाहट 
मदद कर देती हूं में,
सबको लाडली और प्यारी हूँ मैं,
मेरी पहचान हो सबसे अलग,
यही सोचती हूं में,
मेरी पहचान सबसे अलग हो,
यही हसरत मेरी है।

                                        - गरिमा लखनयी


09 May 2023

प्रेम दो हृदयों का मिलन

दो हृदयों के जुड़ने में वर्षों लग जाते हैं। वर्षों एक हृदय दूसरे किसी ऐसे हृदय की प्रतीक्षा करता है जो उस तक पहुंचे, उसकी लयताल को सुने, समझे और उसका ही हो जाए, अपनी लय में समाहित कर ले। दो हृदयों का यह मिलन उत्सव है। उनके लिए ही नहीं, उनसे जुड़े हर किसी के लिए।




इसके अतिरिक्त वह कुछ भी और हो सकता है लेकिन कुछ भी टूटना, कोई विच्छेद उत्सव का विषय नहीं हो सकता है। किसी से जुड़े रहना चाहे कितना भी पीड़ादायक हो, उससे अलग होना कभी भी सार्वजनिक आनन्द मनाने का कारण नहीं हो सकता है। हो सकता है, अलग होकर राहत मिले, आज़ादी की चन्द साँसें आएं लेकिन अलगाव का दुःख, उसकी पीड़ा मन में चटकती रहेगी। जिसके साथ ज़रा भी समय बिताया हो, उसे विदा कहना कभी आसान नहीं होता फिर वह तो जीवनसाथी था! मन्त्रों और अग्नि की मानें तो सात जन्मों का!

इधर सब कुछ तोड़ देना, क्षण में कुछ सुंदर, थोड़ा धैर्य और ढ़ेर सारी प्रतिबद्धता माँगने वाली शै को नष्ट कर देना बहुत आसान हो गया है। क्षण भर के लालच के आगे वर्षो के नेह की कीमत बहुत कम आँक दी जाती है।
ठीक है अगर किसी भी हाल में जुड़े रहना, जोड़े रख पाना सम्भव नहीं है तो अंतिम विकल्प हमेशा वहाँ से ख़ुद को अलग करना है। लेकिन उस अलग होने की भी अपनी गरिमा होगी, अपने क़ायदे तो होंगे।

मुक्त करने से पहले मुक्त होना होता है। पूरी तरह! हर दिखावे से। मन से किसी को पूरी तरह हटा देना, क्षमा करना और आगे बढ़ जाना। प्रेम के बाद अगर इतनी घृणा शेष रह गयी है तो आप मुक्त नहीं हैं, वहीं छूट गए हैं! इतनी घृणा कि उसका ऐसा हिंसक सार्वजनिक प्रदर्शन आपको करना पड़ रहा है! दिखावे के इस युग में प्रेम तो क्या नफ़रत भी ऐसे दिखाई जा रही कि सामने वाले तक यह संदेश पहुंचे! क्यों? वह जो आपके प्रेम के योग्य ही नहीं था, जिसने आपके प्रेम का मान ही नहीं रखा, उसे अब घृणा से भी क्यों बांधे रखना! आप उसे दुःख पहुंचाने का सोच रहे हैं, इस पूरी प्रक्रिया में पीड़ा सिर्फ़ आपको मिलेगी।

मुझे वहाँ मुक्ति का उत्सव नहीं, बहुत सारी पीड़ा, अवसाद और अकेलापन नज़र आया। किसी दूसरे को यंत्रणा देने के प्रयास में अपने ही दुःख को धृणा और हिंसा में छिपाने का असफल प्रयत्न करती एक स्त्री जिसका दिल बुरी तरह टूटा है। जिसे किसी ने भयंकर छला है, तोड़ दिया है पूरी तरह से!

बस इतना ही कहना चाहती हूँ, मुक्त होना है तो इस घृणा से भी मुक्त हो जाओ। क्षमा नहीं कर सकती तब भी आगे बढ़ जाओ। इस तरह के सार्वजनिक प्रर्दशन से तुम अपने उस घाव को कमतर कर दोगी जो न दिखे , न रिसे, तुम जानती हो वह है, वह रहेगा और तुम्हें इतनी ताक़त देगा कि तुम मुक्ति तक धीरे- धीरे ही सही, एक दिन पहुँचोगी ज़रुर।

तुम्हारे प्रेम को किसी ने सस्ता साबित कर झटक दिया लेकिन तुम्हारे दुःख बाज़ार में बेचे जाने की चीज़ नहीं हैं। उन्हें सहेजो और आगे बढ़ती जाओ। एक दिन वे तुम्हें और सुंदर कर जाएंगे।


- रश्मि भारद्वाज


कविताः तुम्हारा दिल मेरे पास है




दिल में आरजू तुम्हारी हमसे जुड़ गई है
तुम मेरे दिल में हमेशा एक धड़कन बनकर धड़कते हो।

जब ख्याल तुम्हारा आया तो सांसो में भी
महसूस होने लगते हो लम्हों लम्हों की वह बातें
आज हर पल याद आती है वह खास लम्हों की
प्यार भरी जिंदगी कितनी खूबसूरत यादों को सजाती हैं।

वो अश्कों से बहते हुए आंसू भी उस चीज का गवाह है,
कि कभी ना बहते आंसू पर तुम्हारे लिए हमेशा बहते हैं।

वह सूरज जैसा तेज चांद जैसी ठंडक दिल को सुकून देती 
रही हमने कुछ तुमसे कह दिया पर तुमने भी हंसके टाल दिया
 यह भी खूबसूरती आपके जहन में हमें देखने को मिली।

बातों बातों में गहरी मोहब्बत का राज करने लगा
तुम्हारा दिल मेरे दिल में धड़कने लगा ,
मेरा दिल तुम्हारे दिल में धड़कने लगा।

यह भी क्या खूब एक दूसरे की धड़कन में
 धड़कने की वजह बन गया।


                                       - रामदेवी करौठिया


कविताः जिंदगी




किसने कहा तुमसे ऐ जिंदगी में व्यस्त हूं।
आज कल मैं भी उस उगते और अस्त होते
सूर्य की तरह ही मस्त हूं।

इन व्यवस्था में मैं भी वक्त दे देती हूं।
उन अनखिले फूलों को खिलखिलाने का मौका,
जिन्हें कभी तेज हवाओं ने था रोका,
दे देती हूं उन बूढ़ी हड्डियों को मजबूती,
जो अब मेरे ही सहारे से चलती है।

और कभी झांक आती हूं,
उन पुश्तैनी घरों के बंद पड़े किबाड़ो में,
खोल आती हूं उन झरोखों को जो खुलते ही 
बड़ी आहट करते हैं।

किसने कहा तुमसे ऐ जिंदगी में व्यस्त हूं।
आजकल मैं भी उस उगते और अस्त होते 
सूर्य की तरह ही मस्त हूं।


                                               - डॉ. कांता मीना


07 May 2023

हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता में फर्क

अपने 30 साल के पत्रकारिता करियर में हर पड़ाव पर हिंदी और अंग्रेजी जर्नलिज़्म में बहुत बड़ा फर्क देखा है मैंने। हिंदी वालों को हमेशा ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है लेकिन उसके बावजूद हमेशा इंगलिश वालों से छोटा ही महसूस होता है।





दरअसल जब मैंने एक ट्रेनी के रूप में अपनी पहली नौकरी जॉइन की थी तब मैंने हिंदी और अंग्रेजी जर्नलिज़्म में कोई फर्क नहीं किया। मैं यहां बता दूं कि मेरा जर्नलिज़्म कोर्स हिंदी में नहीं बल्कि इंगलिश मीडियम में था जहां मैंने टॉप किया था। लेकिन जब हिंदी जर्नलिज़्म में नौकरी का अवसर मिला तो सोचा कि मेरी तो हिंदी भी अच्छी है, क्या फर्क पड़ता है। लेकिन फर्क पड़ता है... याद रखें।

अब मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मैं तो अब खालिस हिंदी वाली कैटेगरी में ही आती हूं। लेकिन इस दौरान बहुत सी बातों को मार्क किया है मैंने जिनको आज यहां साझा करना चाहती हूं।

सबसे पहली बात है सैलरी में बड़ा अंतर। हिंदी पत्रकार और अंग्रेजी पत्रकार की सैलरी में बहुत बड़ा अंतर देखने को मिलता है। ये अंतर सबसे ज्यादा प्रिंट मीडिया में दिखेगा। इसके बाद यह अंतर कम होता जाता है डिजिटल मीडिया और फिर टीवी जर्नलिज़्म में।

टीवी जर्नलिज़्म में चूंकि हिंदी अंग्रेजी से ऊपर है इसलिए वहां यह फर्क ज्यादा नहीं है। टीवी इंडस्ट्री में पहले के जमाने के मुकाबले ओवरऑल सैलरीज़ अब काफी कम हो गई हैं लेकिन फिर भी अब हिंदी और इंगलिश में सैलरीज़ का फर्क शायद (हो सकता है कि मेरी जानकारी सही न हो, अगर ऐसा नहीं है तो मुझे करेक्ट करें प्लीज़) ज्यादा न हो।

दूसरा अंतर है काम का। मुझे लगता है कि अंग्रेजी मीडिया में काम करना हिंदी मीडिया से काफी आसान है। डिजिटल मीडिया के लिए ही नहीं, हर तरह के मीडिया के लिए। चूंकि मैंने प्रिंट में मैगजीन, न्यूज़पेपर से लेकर रेडियो और डिजिटल मीडिया सभी जगह (टीवी को छोड़कर) काम किया है इसलिए यह कह सकती हूं।

यह बात इसलिए सच है क्योंकि हिंदी वालों को अंग्रेजी से अच्छा अनुवाद करना आना जरूरी है। बिना अंग्रेजी जाने हिंदी में किसी पत्रकार को नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है, चाहे वो कितना भी बेहतरीन लेखक हो। अंग्रेजी में ऐसा नहीं है, वहां सिर्फ इंगलिश का अच्छा ज्ञान होना और बेहतरीन राइटिंग स्किल होना ही काफी है।

हिंदी में कुछ भी लिखना हो, रिसर्च करने के लिए आपको गूगल या आजकल चैट जीपीटी की सहायता लेनी होगी जहां इंगलिश में ही बेहतरीन कॉन्टेंट मिलता है। उसे पढ़कर, समझकर या अनुवाद करके ही इस्तेमाल किया जा सकता है। हुआ ना हिंदी जर्नलिज़्म ज्यादा कठिन और मेहनत वाला काम, जिसे पूरी ईमानदारी और मेहनत से करने के बावजूद आपके हिस्से जो भी आता है वो आपकी मेहनत की पूरी भरपाई नहीं कर सकता।

हिंदी और अंग्रेजी के बीच का ये अंतर हमेशा बहुत खटकता है। क्या आपको भी ऐसा लगता है ?


                                                   - रिचा कुलश्रेष्ठ


चुनाव में मात्र 10 महीने, आखिर कब होगी 'विपक्षी एकता'

आम चुनाव में अब मात्र दस माह बचे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर विपक्षी एकता कब होगी ? विपक्षी पार्टियां जिस तरीके से बिखरी नजर आ रही हैं, उसे देख कर ऐसा लगता है कि ये सभी राजनीतिक पार्टियां एक मंच के नीचे आना ही नहीं चाहती है। आज विपक्ष में खड़ी सभी राजनीतिक पार्टियां सत्ता पक्ष के अत्याचार से प्रताड़ित है। कहीं सीबीआई के छापे पड़ रहे हैं, तो कहीं ईडी का नोटिस मिल रहा है। फिर भी विपक्षी पार्टियां एक साथ खड़ी होने के लिए तैयार नहीं है।




क्या मान लिया जाए विपक्षी पार्टियों ने चुनावी मैदान में कूदने से पहले ही हार मान ली ? अगर ऐसा है तो फिर 2024 के बाद इन पार्टियों का अस्तित्व जिंदा रहेगा! क्योंकि जिस तरीके से बीजेपी बदले की भावना से राजनीतिक कार्रवाई कर रही है, वह साफ बताता है कि 2024 चुनाव जीतने के बाद बीजेपी विपक्ष को पूरी तरह खत्म कर देना चाहती है। 

'ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी' यह मुहावरा बीजेपी की तानाशाही को देखकर विपक्ष के लिए सटीक बैठती है। 2014 से पहले भारतीय मीडिया सत्ता पक्ष से सवाल पूछा करता था, मगर वर्तमान में भारतीय मीडिया सत्तापक्ष के साथ झूला झूल रहा है। इतना ही नहीं बल्कि कभी-कभी तो बिरियानी और आम चूसो पार्टी भी कर लेता है। भारतीय लोकतंत्र में आज विपक्ष एक मुर्दा लाश बन गया है। ना उसके साथ कोई चलने को तैयार है, ना ही कोई उसे जगाने का प्रयास कर रहा है। विपक्षी पार्टियां सिर्फ अपने अस्तित्व को एक दूसरे से लड़कर धीरे-धीरे खत्म कर रही है।

उत्तर से दक्षिण तक समस्त विपक्ष बिखरा हुआ है। विपक्ष के नेताओं का अपनी पार्टी छोड़ सत्ता पक्ष के साथ जाना अब आम बात हो गई है। सत्ता पक्ष ने विपक्ष के हर उस नेता को परेशान किया हैं, जो सत्ता पक्ष के खिलाफ जनता की आवाज़ उठाता है। और तो और अगर कोई पत्रकार या आम नागरिक सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ आवाज उठाता है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई हो रही है। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी विपक्षी दल एक मंच पर नहीं आ पा रहे हैं। 

जनता महंगाई, बेरोजगारी, सामाजिक मतभेद, सांप्रदायिक हिंसा और कट्टरता से जूझ रही है। सरकार में बैठे फकीर सरकारी संपत्तियों को बेच कर अपने मित्रों को बांट रहे हैं और इन सब मुद्दों पर सारा विपक्ष चुप्पी साधा हुआ है। पिछले 9 सालों में विपक्ष ने जनता के मुद्दों को लेकर सरकार के खिलाफ कोई भी बड़ा आन्दोलन नहीं किया है। क्या सच में 2024 आम चुनाव में विपक्षी पार्टियां सत्ता पक्ष के खिलाफ मजबूती से लड़ना चाहती हैं ? विपक्षी पार्टियों की वर्तमान स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि विपक्ष सत्ता पक्ष के सामने खड़ा होना ही नहीं चाहता है। विपक्ष का कोई भी नेता अपने अहंकार और स्वार्थ को छोड़ना ही नहीं चाहता है। बिना स्वार्थ और अंहकार को छोड़े विपक्षी एकता असंभव लगती है। 

अगर सच में विपक्षी पार्टियों को भारतीय लोकतंत्र की रक्षा करनी है, तो जितनी जल्दी हो सके आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी करनी चाहिए। सभी विपक्षी दलों को एक छतरी के नीचे आकर मजबूती से जनता का विश्वास जीतने की कोशिश करनी चाहिए। तभी देश की आम जनता विपक्षी गठबंधन पर भरोसा कर पाएगी।


                                                         - दीपक कोहली


गर्मी में ये स्टाइलिश आउटफिट्स करें ट्राई, दिखेंगी कूल और स्मार्ट


गर्मी के कहर से बचने के लिए जिससे जितना संभव होता है, बचने की कोशिश करता है। पर धूप से बचने और पसीने की वजह से लोग कई बार फैशन को भी इग्नोर कर देते हैं। पर क्या आप जानती हैं कि गर्मी के सीजन में ड्रेसिंग सेंस का ख्याल रखते हुए भी आप मर्मी से बच सकती हैं और साथ ही कूल और स्मार्ट दिख सकती हैं। सुंदर और स्टाइलिश दिखाई देना हर किसी को अच्छा लगता है। पर गर्मी के सीजन में इसे मेनटेन करना मुश्किल हो जाता है। पर अगर आप यहां दी गई सामान्य टिप्स जान लेंगी तो गर्मी में भी आप स्मार्ट लुक पा सकेंगीं। तो जानिए सिम्पल और काम की स्टाइलिंग टिप्स-




इस प्रकार के कपड़ों को करें पसंद 

गर्मी के सीजन में सूती, खादी और सिफोन के कपड़े पहनना अच्छा रहता है। आप को कम गर्मी लगेगी तो आप को आराम मिलेगा। आप इस समय स्लीवलेस और हाफ स्लीव के कपड़े भी ट्राई कर सकती हैं। परंतु घर से निकलते समय कूल स्लीव के कपड़े पहनें। इससे धूप और लू से राहत मिलेगी।

ये कपड़े न पहनें

गर्मी में सिल्क, नायलोन, वेलवेट जैसे भारी कपड़े पहनने से बचें। इससे आप को गर्मी तो अधिक लगेगी ही, हवा भी शरीर तक नही पहुंच पाएगी। जिसकी वजह से इन्फेक्शन का खतरा हो सकता है।

रंग का ध्यान रखें

गर्मी से बचने के लिए डार्क कलर के खास कर के काला कपड़ा पहनने से बचें। गहरे रंग के कपड़ों में गर्मी अधिक लगती है और पसीना भी अधिक होता है। इसलिए गर्मी में लेमन, लाइट पिंक, पीच, केशरी और आसमानी कपड़ों की पसंदगी उचित रहेगी।

सिर को ढ़कना न भूलें

गर्मी में बाहर जाते समय सिर हमेशा ढ़के रहें। इससे आप को लू लगने का खतरा नहीं रहेगा। ऐसा करने से सिर में दर्द और साथ ही डिहाइड्रेशन भी नहीं होगा। सिर ढ़कने के लिए स्कार्फ या अंगौछे का उपयोग करें। यह आप की स्टाइल को बढ़ाएगा।

हैट और सनग्लास का उपयोग करें

गर्मी में हैट लगाना और गोगल्स पहनना फैशन माना जाता है। परंतु आंख को गर्मी से बचाने का यह उचित तरीका है। गर्मी में सूर्य की हानिकारक किरणों से खुद को बचाने के लिए हैट-कैप और गोगल्स पहनना लाभदायक हो सकता है।


                                                       - स्नेहा सिंह 


हवाई समझौते से बेहतर है जमीनी स्तर पे समझौते हों

सत्ता व सरकार में समान भागीदारी न मिलने की पीड़ा

हवाई समझौते तो नेताओं के बीच में हो जाते हैं पर जमीनी स्तर के समझौते को सता व संगठन मे बैठे लोग नही चाहते कि वोट जो देते हैं उनके बीच में समझौते भी हों । मुख्यमंत्री जी ये कर रहे हैं वो भारी पड़ सकती है पिछले दिनों की बात है जब मुख्यमंत्री बीकानेर के दौरे पर आए थे मुस्लिम समाज ने उनकी मीटिंग का बायकॉट किया था अबकी बार जब मुख्यमंत्री जी बीकानेर आए तो उनके आसपास वही व्यक्तिगत काम वाले लोग जबकि जिन लोगों ने मुख्यमंत्री जी की मीटिंग का बायकॉट किया उन लोगों के बीच मुख्यमंत्री जी ने किसी भी प्रकार से संवाद कायम करने की कोशिश नहीं की न ही अन्य जन प्रतिनिधियों ने उसे उचित समझा उस डैमेज कंट्रोल को हालांकि स्थानीय स्तर पर कुछ मुस्लिम लोगों ने रोजा इफ्तार पार्टी व ईद मिलन के बहाने लोगों को एकत्रित कर डैमेज कंट्रोल का प्रयास किया।


फोटो सोर्स- गूगल



शिक्षा मंत्री जी को वहां भी ऐसा देखने में आया आपस में कानाफूसी करते हुए नजर आए मुख्यमंत्री जी की बात तो दूर की बात है शिक्षा मंत्री जी ने भी मुस्लिमों की नाराजगी को भांप कर आपस में जो भी गिले-शिकवे उन्हें दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया हां ईद मिलन समारोह में जबकि सभी धर्मों के लोग मौजूद थे और केवल अखलियत्त के लिए घोषणाएं करना यह एक अजीब सा लगा जबकि ईद मिलन में सिर्फ सौहार्द की बात होनी चाहिए क्योंकि उस कार्यक्रम में सभी जाति धर्म के लोग आमंत्रित थे।धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने यह कार्यक्रम रखा पर कुछ लोगों द्वारा उन घोषणाओं का पोस्टमार्टम करते हुए घुसर फूसर ये घोषणाएं अमली जामा पहनाने के लिए क्या योजना है ? कहां जमीन है ? इसके लिए क्या करना है ? कहीं घोषणाएं ,घोषणा बन रह जाए, आचार संहिता से पहले हो जाए तो वरना कुछ नहीं । 27 अप्रैल को मुख्यमंत्री का बीकानेर स्टे था।

मुख्यमंत्री जी को भी यह प्रयास करना था स्थानीय राजनेताओं को भी प्रयास करना था कि मुस्लिम वर्ग 95% वोट कांग्रेस को देता रहा है और प्रत्यक्ष रूप से 4 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है जिन्हें 5 साल के दौरान सत्ता व संगठन मैं जो भागीदारी मिलनी चाहिए वह भागीदारी नहीं मिली और उनकी उपेक्षा भी हुई है ये डैमेज कंट्रोल 27 तारीख की जनसुनवाई में हो सकता था पर चंद लोग जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के लिए आए थे वहीं कतारों में नजर आए बाकी बीकानेर के नामी-गिरामी मुस्लिम नेता अन्य जातियों के लोग भी मुख्यमंत्री के जनसुनवाई कार्यक्रम व अन्य कार्यक्रम में नही नजर आये, यहां तक भी देखने में आया कि अबकी किसी भी समाज के लोग समूह में नहीं आए न ही किसी" शेरे " का नारा सुनने में आया 5 मिनट में सुनवाई खत्म।

29 अप्रैल को हवाई समझौते में आपस के नेताओं के बीच समझौते मे मिठाईयां बांटी जाती है ,नेता एक दूसरे को हरा व जिताने में समझौता कर सकते हैं वे पाला भी बदल सकते हैं सिर्फ वोटर पार्टी से बंधा रहे और जो वोट देने वाला तबका है उसकी उपेक्षा होती हो यह कहां का न्याय है मुख्यमंत्री जी ।

मुख्यमंत्री जी ने दो दर्जन से ज्यादा कल्याण बोर्ड और फाउंडेशन बनाए हैं जैसे भी मुस्लिम बोर्ड के लोग मांग करते हैं तो ठंडे बस्ते मांग, क्या नाई, दर्जी, धोबी, मोची आदि का काम मुस्लिम नही करते कोई मेंबर नही बनाया।और कोई स्थान नहीं दिया ।किसी मुस्लिम बोर्ड के गठन की घोषणा अब तक क्यों नही हुई ?

सभी जाति धर्म के लोगों ने महापंचायते कि उन्होंने अपनी ताकत दिखाइ यहां तक की mla अधिक टिकट व आरक्षण की मागे की, मुख्यमंत्री बन सके नारे लगाए जो 5 % वोट नहीं देता है उनको कल्याण बोर्ड से नवाजा गया यह मुख्यमंत्री जी किस तुष्टीकरण की ओर बढ़ रहे हैं आम लोगों में यह धारणा है मुस्लिमों को कांग्रेस ने अपनी जेब का लड्डू समझकर लोग इस्तेमाल करते हैं कि यह कहां जाएंगे वह तो हमे ही वोट देंगे साडे 4 वर्ष के इस दौरान मुस्लिम दिल्ली जयपुर के चक्कर निकाल निकाल कर थक गए स्थानीय विधायकों ने भी मुस्लिमों के वही काम जो मुस्लिमों के लिए जायज हो मुस्लिम सराय के लिए जमीन नहीं मुस्लिम आबादी क्षेत्र खाजूवाला छतरगढ़ पुगल बीकानेर जहां यारु खान पड़िहार, अजीम खान शाहू , फते खान नायच आदि अनेक जो उस जमाने से अपनी साख रखते थे उनके लिए क्या किया ? क्या इनके नाम पर मुस्लिम हॉस्टल मुस्लिम समुदाय भवन कि कहीं भी जमीन आवंटित की ।इनकी पॉलिसी सिर्फ अल्पसंख्यक रूपी आइसक्रीम ,आइसक्रीम देते रहे जिसमें मुस्लिमों का भला क्या हुवा ?

अब कांग्रेस ने भी और कुछ मुस्लिम लोगों ने भी मुस्लिमों में फूट डालो और राज करो की नीति अपनानी शुरू कर दी है मुसलमान किसी जाति ,पार्टी विरोधी, व्यक्ति विरोधी नहीं है उनको अपने हक के लिए आवाज उठाने के लिए अभी विवश किया जा रहा है और जिस के स्थानीय विधायकों ने व मुख्यमंत्री जी ने भी मुस्लिमों की उपेक्षा की है क्या मुख्यमंत्री जी के इंटेलिजेंस कमजोर है जो इस वोट बैंक के बारे में मुख्यमंत्री को पहुंचाने में नाकामयाब रही है मेरा मानना है कि छोटी मोटी समस्याएं हैं , मुख्यमंत्री जी के osd बीकानेर आते हैं स्वागत कराते हैं क्या वे मुस्लिमो से फीड बैक लेते हैं उनकी समस्याओं का निवारण भी करते हैं क्या ?

छोटे-मोटे ट्रांसफर के लिए महीनों चक्कर निकालने पड़ते हैं जबकि विपक्षी दलों के लोगों के ट्रांसफर 2 दिन में हो जाते हैं आम बात है आम मुसलमान शांत हैं क्या सड़क नाली या किसी सामुदायिक भवन में कुछ घोषणाएं कर देना क्या पर्याप्त है ? ये घोषणाएं तो हर जाति के लिए होती है यह तो सरकारी काम है इसके अलावा कितने काम हुए हैं 51 वर्ष से वीर चक्र शहीद की उपेक्षा हो रही है जबकि कल परसों ही मुख्यमंत्री जी ने शहीदों के नाम से मूर्ति अनावरण के कार्यक्रम किए हैं क्या यह सोतेलापन नहीं है वीर शहीद रफीक खान के नाम से आज तक स्कूल नहीं बनी है जिसको शिक्षा विभाग ऑब्जेक्शन पर ऑब्जेक्शन लगाकर उसको क्या दर्शाता है ? क्या मुस्लिम राजनेता व स्थानीय स्तर के तीनों मंत्रियों ने भी मुस्लिमों के व्यक्तिगत काम के अलावा कोई सार्वजनिक मुस्लिम हित का प्रकरण हल करने में रुचि दिखाई ?

मोहम्मद उस्मान आरिफ महबूब अली के नाम से कोई चौराहा बाग बगीचा समुदायिक भवन ,कॉलेज का नामकरण बना जबकि कई समुदायों के लोगों के एमएलए के नाम से चौराहे कॉलोनी बन चुके हैं यह भी तो भेदभाव है इसमें भी समानता होनी चाहिए क्यों नहीं बने अभी भी कई नेताओं के नाम से मांगे उठ रही है कौमी एकता का मरकज है बीकानेर लेकिन राजनीति के लोगों की सोच मुसलमान सिर्फ वोटर हैं इक्के दुक्के लोगों पे हाथ रख मुसलमानों को रिझाया नहीं जा सकता हर क्षेत्र में भागीदारी सुनिश्चित हो। मुसलमान भाईचारा आपसी सौहार्द में विश्वास रखते हैं परंतु राजनीति में ठगा महसूस करते हैं,अब यदि मुसलमान सता व संगठन मे भागीदारी की बात करता है तो ठेंगा ! सभी पार्टियों का चरित्र एक सा ही है।

मुसलमान का वोट तो ले लेंगे पर मुसलमान को कोई वोट नही देता नहीं, ऐसा क्यों ? तो फिर मुसलमान अपना वोट क्यों दे अपने वोट को सोच समझ कर दे। भाजपा भी मुस्लिम को एक टिकट देकर मुस्लिम कार्ड खेल सकती है अबकी बार ओबीसी एस सी में भी असंतोष है जब रंधावा जी अशोक जी ने पूर्व विधानसभा के लिए जिताऊ उम्मीदवार पूछा तो स्थानीय मंत्रियों ने किसी जाति विशेष का नाम लेने से भी लोगों में रोष व्याप्त है। अब मुस्लिम भी अपने राजनैतिक अस्तित्व व हक की बात के लिए उचित निर्णय लेने के मूड में नजर आ रहा है, वर्तमान घटनाओं से कुछ ऐसा नजर आता है।

                                                                           - नाचीज़ बीकानेरी 


01 May 2023

अपने अंतर्ज्ञान का पालन करें।

अंतर्ज्ञान यह समझाने में सक्षम हुए बिना कुछ "जानना" है कि आप तर्कसंगत रूप से उस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे। यह वह रहस्यमय "आंत भावना" या "वृत्ति" है जो अक्सर पूर्वव्यापी में सही हो जाती है। जब आप अपने विकल्पों को कम कर देते हैं और एक चौराहे पर फंस जाते हैं, तो अपने अंतर्ज्ञान के संपर्क में रहने से मदद मिल सकती है। आप अपने अंतर्ज्ञान को विकसित करने के लिए व्यायाम करके अपने सहज ज्ञान युक्त उपहारों को सर्वश्रेष्ठ बना सकते हैं, यह जानकर कि किस प्रकार की परिस्थितियाँ सहज निर्णयों को बुलाती हैं, और यह जानने के लिए कि आपका अंतर्ज्ञान कैसा महसूस करता है और कार्य करता है।





अपनी भावनाओं के बारे में लिखें। अपनी भावनाओं के संपर्क में रहने और अपने सहज पक्ष को अनलॉक करने के लिए एक डायरी रखना एक शानदार तरीका हो सकता है। आप जो कुछ भी महसूस कर रहे हैं या जिसके बारे में सोच रहे हैं उसे लिखें, तर्कसंगतता या अपनी आंतरिक आवाज के बारे में चिंता किए बिना। चेतना लेखन की धारा, या आपके दिमाग में आने वाले पहले शब्द या विचार को केवल लिख देना, आपके अवचेतन मन में क्या चल रहा है, इसके बारे में अधिक जागरूक होने में आपकी मदद कर सकता है।

ध्यान आपके शरीर द्वारा आपको भेजे जा रहे सहज ज्ञान युक्त संकेतों के साथ अधिक तालमेल बिठाने में आपकी मदद कर सकता है। अपनी शारीरिक स्थिति के बारे में अधिक जागरूक बनने में मदद करने के लिए कुछ बुनियादी ध्यान तकनीकों का प्रयास करें। ध्यान करने के लिए एक शांत और आरामदायक जगह खोजें जहाँ आप परेशान या विचलित न हों। एक आरामदायक स्थिति में बैठें, अपनी आँखें बंद करें और अपनी श्वास की संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित करें। यदि आपका मन भटकता है, तो धीरे से अपना ध्यान अपनी श्वास पर केंद्रित करें।

"बॉडी स्कैन" करने का प्रयास करें। लेट जाओ, अपनी आँखें बंद करो, और मानसिक रूप से अपने शरीर के प्रत्येक भाग पर बारी-बारी से ध्यान केंद्रित करो, पैर की उंगलियों से शुरू होकर अपने सिर के ऊपर तक जाओ। अपने शरीर के प्रत्येक भाग में होने वाली किसी भी संवेदना से अवगत रहें और किसी भी तनावग्रस्त मांसपेशियों को आराम करने के लिए सचेत प्रयास करें। जब आप कर लें, तो कुछ मिनट के लिए अपने पूरे शरीर पर ध्यान दें। अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ मिनट निकालें।

खुद को विचलित करें। हालांकि यह अतार्किक लग सकता है, व्याकुलता वास्तव में आपको निर्णय लेने में मदद कर सकती है। आपका मस्तिष्क अवचेतन स्तर पर जानकारी को संसाधित करता है, भले ही आप उस पर सक्रिय रूप से ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हों या उसके बारे में सोच रहे हों। यदि आपको निर्णय लेने में कठिनाई हो रही है, तो कुछ समय के लिए कुछ और करें। फिर समस्या पर लौटें, और उस निर्णय के साथ चलें जो "सही" लगता है।

नींद हमारे शरीर और दिमाग को आराम देने और मरम्मत करने के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन सूचनाओं को संसाधित करने में भी मदद करती है जो हम दिन के दौरान लेते हैं। अगर आपको निर्णय लेने में परेशानी हो रही है, तो इसे एक तरफ रखकर कुछ नींद लेने की कोशिश करें। जब आप जागते हैं, तो आप पा सकते हैं कि आपके अंतर्ज्ञान ने आपको निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया है।

अपने ज्ञान और सामान्य ज्ञान का प्रयोग करें। यदि आप एक अपरिचित स्थिति में हैं, एक जटिल समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं, या एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने की आवश्यकता है, तो कुछ शोध करें या अपनी आंत को संभालने से पहले सलाह लें। यदि आप व्यावहारिक ज्ञान, उचित अपेक्षाओं और अपने विकल्पों की समझ के साथ इसका उपयोग करते हैं तो आपका अंतर्ज्ञान आपके लिए बेहतर काम करेगा।

परिचित स्थितियों में अपने अंतर्ज्ञान को सुनें। पैटर्न पहचानने में हमारा दिमाग बहुत अच्छा है। यह हमें जल्दी और बिना ज्यादा सोचे-समझे निर्णय लेने की अनुमति देता है। साइकिल चलाते या चलाते समय आपने शायद इस प्रकार के अंतर्ज्ञान का उपयोग किया होगा। एक बार जब आप किसी चीज़ का कुछ बार अभ्यास कर लेते हैं (जैसे भाषण देना, संगीत का प्रदर्शन करना, या कोई खेल खेलना), तो जाने देने की कोशिश करें और अपने नोट्स का हवाला देने, घड़ी को देखने, या सोचने के बजाय अपने अंतर्ज्ञान को हावी होने दें। हर कदम।

अपने स्वास्थ्य के बारे में अपनी प्रवृत्ति को सुनें। आप अपने शरीर को किसी और से बेहतर जानते हैं। अगर आपको लगता है कि कुछ गलत है, भले ही वह सूक्ष्म हो या आप उसे स्पष्ट रूप से समझा नहीं सकते, तो चिकित्सीय सलाह या ध्यान दें। यदि आपको अभी भी लगता है कि चिकित्सा पेशेवर को देखने के बाद भी आपकी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है, तो दूसरी राय लें। हो सकता है कि आपको कुछ ऐसा समझ आ रहा हो जो आपके डॉक्टर को नहीं है।

आप अपने करीबी लोगों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के बारे में एक मजबूत अंतर्ज्ञान भी विकसित कर सकते हैं। यदि आप किसी बच्चे के माता-पिता या अभिभावक हैं, या यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहते हैं जिसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हैं, तो उनकी स्थिति के बारे में अपने सहज ज्ञान युक्त संकेतों पर ध्यान दें। आपको यह आभास हो सकता है कि कुछ गलत है, भले ही वे इसे आपके ध्यान में न लाएँ या स्वयं इस पर ध्यान न दें।

अपने प्रमाणन को बड़े दस्तावेज़ में आपकी मदद करें। यदि आपके सामने कोई बड़ी खरीदारी करने, किस कॉलेज में जाने का निर्णय लेने या शादी करने जैसे बड़े विकल्प हैं, तो तर्क और व्यावहारिक विचार महत्वपूर्ण हैं। लेकिन एक बार जब आप सभी पेशेवर और संबंध के वजन को स्वीकार कर लेते हैं और अपने विकल्पों को कम कर देते हैं, तो आप अपनी पसंद से सबसे अधिक संतुष्टि प्राप्त करने की संभावना रखते हैं यदि आप निर्णय को अंतिम निर्णय लेने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।

अपनी आंत सुनो। यह सिर्फ एक रूपक नहीं है - हम वास्तव में अपनी कुछ "सोच" अपनी हिम्मत से करते हैं। पेट में दर्द, आपके पेट में तितलियों की अनुभूति, या बुरी खबर सुनने पर आपको मिलने वाली विशिष्ट डूबती हुई भावना से आपका "आंत मस्तिष्क" आपको यह बता सकता है कि आप तनावग्रस्त हैं या आपके दिमाग से पहले उत्साहित हैं। यदि आपका पेट दर्द करता है या असहज महसूस करता है जब आप किसी विशेष स्थिति या लोगों के साथ काम कर रहे होते हैं या उसके बारे में सोचते हैं, तो यह आपका शरीर आपको बता सकता है कि वे आपके लिए तनाव का स्रोत हैं। इन संकेतों से अवगत रहें, और यदि संभव हो तो ब्रेक लें या ट्रिगर करने वाली स्थिति या व्यक्ति से बचें।

अपनी नाक का पालन करें। आप हमेशा इसके बारे में जागरूक नहीं हो सकते हैं, लेकिन आपकी सूंघने की क्षमता एक शक्तिशाली उत्तरजीविता उपकरण हो सकती है। आपकी नाक आपको बता सकती है कि क्या कुछ खाने के लिए असुरक्षित है, और किसी अन्य व्यक्ति की भावनात्मक या शारीरिक स्थिति का मूल्यांकन करने में भी आपकी मदद कर सकती है। नियमित रूप से व्यायाम करके और सिगरेट के धुएं की तरह गंध की भावना को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदूषकों से बचकर अपनी गंध की भावना को बढ़ावा दें।

अपनी आंखों का प्रयोग करें। जब आप किसी अपरिचित स्थिति में प्रवेश करते हैं, तो चारों ओर एक त्वरित नज़र डालें। यहां तक कि अगर आप जो कुछ भी देख रहे हैं उसके बारे में जागरूक नहीं हैं, तो भी आपकी आंखें महत्वपूर्ण दृश्य संकेतों पर उठा सकती हैं जो सहज प्रतिक्रियाओं में योगदान दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, आप अवचेतन रूप से किसी अन्य व्यक्ति के चेहरे के भाव या शरीर की भाषा में तत्काल स्पष्ट होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को उठा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति या स्थिति के बारे में कुछ गलत या खतरनाक लगता है, तो ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि आपकी आँखों ने कुछ ऐसा देखा है जो आपके दिमाग में नहीं था।

हमारे शरीर में पाँच इंद्रियाँ हैं: स्पर्श, गंध, स्वाद, दृष्टि, श्रवण। लेकिन अनदेखी नहीं की जानी चाहिए हमारी आत्मा की इंद्रियां: अंतर्ज्ञान, शांति, दूरदर्शिता, विश्वास, सहानुभूति। लोगों के बीच अंतर इन इंद्रियों के उनके उपयोग में निहित है; अधिकांश लोग आंतरिक इंद्रियों के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं जबकि कुछ लोग उन पर भरोसा करते हैं जैसे वे अपनी भौतिक इंद्रियों पर भरोसा करते हैं, और वास्तव में शायद इससे भी ज्यादा।


                                                                                   - डॉ. माध्वी बोरसे