साहित्य चक्र

29 December 2022

कविताः हे द्रोण





हे द्रोण! कब तक अंगूठा मांगोगे ?
मुझे हराने और नकारने के लिए
सच में तुम्हारा शिष्य अर्जुन विद्वान था
तो महाभारत में कर्ण को धोखे से क्यों मारा ?
और श्री कृष्ण को सारथी क्यों बनाया ?
तुम्हारा शिष्य इतना ही विद्वान था 
तो फिर बिना तीर चलाए 
युद्ध समाप्त क्यों नहीं किया ?
हे द्रोण! तुम्हारी शिक्षा अपनों की हत्या है
तो अच्छा ही है जो तुमने मुझसे छीन ली।
नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी ऐसी शिक्षा
जिसमें भाई-भाई ही आपस में लड़ते हो।
मैं धन्य हूँ, जो तुमने मुझसे 
गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग कर
मुझे अपनी शिक्षा से मुक्त कर दिया।
मैं अपनी सच्ची मेहनत और लगन से 
समाज में आज भी जिंदा हूं,
सत्य और निष्ठावान शिष्य के रूप में।
और आप आज भी अंगूठा माँग रहे हो।
हे द्रोण! कब तक अंगूठा मांगोगे।


                                    - दीपक कोहली


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