साहित्य चक्र

31 December 2022

शीर्षक- भारतीय नारी





भारत देश में जन्मी हूं में भारत की मैं नारी हूं,
 स्वाभिमान से जीती हूं नहीं किसी से डरती हूं।

मात-पिता की प्यारी हूं सबसे अलग न्यारी हूं,
रुप तेरे अनेक है कभी लक्ष्मी क्षत्राणी बन जाती है।

ममतामई करुणामई शील स्वभाव वाली है,
गुस्सा तनिक ना आता है सबसे प्रेम करतीं है।

भारत देश में जन्मी हूं में भारत कि मैं नारी हूं,
 स्वाभिमान से जीती हूं नहीं किसी से डरती हूं।

प्रेम से प्रफुल्ल  होकर के खुशियां खूब लुटाती हूं,
दादा दादी की जी  सेवा में तन मन में लगाती है।

कभी ना मुझको समझो तुम इतना मैं कमजोर हूं,
हर चीज मैं आगे रहती हूं पायलट में भी उड़ाती हूं।

भारत देश में जन्मी हूं में भारती कि मैं नारी हूं,
स्वाभिमान से जीती हूं नहीं किसी से डरती हूं।

घर परिवार को मैं कैसे खूब चलाती हूं ,
एक मां होकर के मैं पिता की जिम्मेदारी रखती हूं।

 मातृशक्तियां  तुम भी आगे आओ मत तुम घबराओ,
जय जयकार तुम्हारी होगी तुम आकर कदम बढ़ाओ जी।

भारत देश में जन्मी  हूं में भारत की मैं नारी हूं,
स्वाभिमान से जीती हूं नहीं किसी से डरती हूं।


                        - रामदेवी करौठिया


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