कभी मिलन का दिसंबर
कभी विरह का दिसंबर
कभी ख़ुशियों का दिसंबर
कभी शिकवों का दिसंबर!
कभी खिज़ा का तो
कभी बहारों का दिसंबर
कभी छेड़ता- सा
कभी सिसकाता -सा दिसंबर!
कभी गुमगुनी धूप- सा
कभी ठिठुरती शाम-सा दिसंबर
कभी लाल सुर्ख़ अलाव- सा
कभी तुम्हारे सपनों की रज़ाई सा दिसंबर!
तुम्हारी यादों के रंगीन छींटों से
मेरे आँचल को सजाता -सा दिसंबर
जाने कितने ज़ायके और रंग बिखेरता
आ पहुँचा है,अलहदा शोख़ -सा दिसंबर!
- वन्दना रानी दयाल
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