साहित्य चक्र

18 December 2022

शीर्षकः विनम्रता


झुक जाता हूँ बारबार,
इसे मेरी हार न समझना...

बोल दूँ भले चार बातें,
इसे मेरा अहंकार न समझना...

आदत है मेरी क्रिया पर तुरंत प्रतिक्रिया की,
इसे मेरा वार न समझना...

दुनिया बदल गयी कहते-कहते 
कि हम नहीं बदलेंगे,
पर मैं कहता नहीं...
हूँ आज भी वैसा ही...
जैसा तुमने छोड़ा था बदलने से पहले...

झुक जाता हूँ बारबार,
इसे मेरी हार न समझना...
इसे मेरी हार न समझना


                 - अपर्णा सचान


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