साहित्य चक्र

16 December 2022

कविताः मंहगाई



मंहगाई की मार देखिए

जीत देखिए हार देखिए
मंहगाई की मार देखिए।।

बेरोजगारी है चरम सीमा पर
रोजगार की मार देखिए।।

उठा पटक है सेंसेक्स में
रुपये का उतार चढ़ाव देखिए।।

मंहगाई में अन्य देशों का रिकॉर्ड है टूटा
विकासोन्मुख सरकार देखिए।।

राजा फेंकने में है माहिर
सबकुछ दिखता है जगजाहिर।।

कुछ तो करो कल्याण मसीहा
प्रलय घड़ी अब तो टालिए।।

जीत देखिए हार देखिए
मंहगाई की मार देखिए।।


- मनोज कौशल


No comments:

Post a Comment