साहित्य चक्र

20 February 2021

विरोधाभासी प्यार



कितना विरोधाभासी है मेरा प्यार
कभी कभी मैं समझ नहीं पाती
मेरे दिल में तुम हो
या कोई और भी है
रिक्तता को कोई तो भरेगा
पर वह होगा कौन?

कभी किसी की बातों से
पिघल जाती हूं
तो किसी के रूप को
देख फिसल जाती हूं
तो किसी के सादगी
पर मचल जाती हूं।

फिर क्षणवादी सुख
जीवन का दुःख बन जाता
जिसको को याद करने का
फिर जी ना चाहता है।

तुम्हारे उचित विकल्प की
तलाश में हूं और तुम ही
मेरे अंतिम विकल्प बनते हो
फिर विरोधाभासी क्यों है?
शायद अंतर्मन ही मान बैठा है
तुम्हारी वापसी कभी न होगी।

हां विरोधाभासी है मेरा प्यार
इसलिए इतना है तुमसे प्यार
जो पूर्ण होने का नाम ना लेता
सदा अपूर्ण ही बना रहता है।

                                       कुमारी अर्चना


बचपन की परीक्षा



बचपन की परीक्षा के दिनों में
सबसे आसान लगते थे।
"एक अंक के प्रशन"।
"खाली स्थान भरो"।
"सही या गलत चुनो"।
"एक शब्द मे उत्तर दो"।

पर जिंदगी की परीक्षा में यही प्रश्न
अत्यंत कठिन महसूस होते है!

नही जान पाती,किसी अपने द्वारा
छोडे गए खाली स्थान को, कैसे भरा जाता है?

इस मिश्रित् दुनिया मे
किसी को पूर्ण सही या पूर्ण गलत,
कैसे कहा जा सकता है?

भावो को मात्र,एक शब्द मे स्पष्ट करना
अब असंभव सा लगता है!

अब अच्छे लगने लगे है ,वो निबंधात्मक प्रश्न
जिनमे मन के सारे भाव उडेल देते है,
बिना शब्द सीमा के घेरे मे बँधे!

पर पहले की तरह नही मालूम
ये उत्तर पढ़े समझे भी जाते है या नही!

                                            सारिका "जागृति"


बसंत... तुम जब



बसंत तुम जब आते हो ।
प्रकृति में नव -उमंग,
 उन्माद भर जाते हो। 

बसंत तुम जब आते हो
हवाएं चलती हैं सुगंध ले कर। 
जीवन में खुशबू बिखराते हो। 

बसंत तुम जब आते हो।
 कितने नए एहसास जागते हैं। 

सृजन की प्रेरणा दे ।
नित -नूतन संसार सजाते हो।

हर तरफ फूलों से बगियाँ तुम सजाते हो।। 
कहीं पीले -कहीं नारंगी।
लाल गुलाब महकाते हो।

बसंत तुम जब आते हो। 
जीवन में उमंग भर जाते हो।

नदिया इठला कर चलती है। 
दिनों में मस्ती छा जाती है।

 मीठी -मीठी धूप में ,
शीतल चांदनी- सी रात झिलमिलाती है ।
आसमां में  चहकते हैं पक्षी। 
 कोयल के साथ मधुर गीत गाते हो।

 बसंत तुम जब आते हो। 
जीवन में उमंग भर जाते हो। 

नई आस- नई प्यास 
नए विचार -नए आधार। 
बन कर रच जाते हो। 

बसंत तुम आते हो। 
नई तरंग से जीवन को,
 तरंगित कर जाते हो।। 


                                                  प्रीति शर्मा "असीम"


प्यार...



आपको याद करना मेरी आदत बन गई है,
आपसे बातें करना मेरी आदत बन गई है।

आपको दिन रात चाहना मेरी आदत बन गई है,
आपसे डांट खाना मेरी आदत बन गई है।

आपसे मिलना मेरी चाहत बन गई है,
आपके आगोश में डूब जाना मेरी आदत बन गई है।

आपकी परछाई से भी प्यार करना मेरी आदत बन गई है,
आपके साथ बरसात की बूंदों में भीग जाना मेरी आदत बन गई है,
आपके प्यार में डूब जाना मेरी आदत बन गई है।।

                                             गरिमा लखनवी


वजूद


उड़ चुके हैं जो परिंदे
वो फिर लौटकर आएंगे,
मेरे पास न सही
खुदा तेरे पास तो
जरूर आएंगे।
ये सारा जहान तेरा है,
मुझ से न सही
पर तुम से तो
फिर से जरूर टकराएंगे।
जब मिले तुमको
तो पूछना ज़रा बैठकर,
जान कर भी तेरे वजूद को
तेरे ही इंसा को
फिर क्यों तड़पा रहे थे ?
जानकर भी
कि ये धरती ये आसमा
सब तेरा है
फिर क्यों किसी का
भाग्य विधाता बनकर बैठे थे ?

                                          राजीव डोगरा 'विमल'



जाने कहां गया



घबराकर उसने अपनी राह बदल ली
फिर कोई नहीं जानता वो कहां गया ।

वो जो अपने वादे पर मर मिटता था
वादा तोड़ के  वो जाने कहां गया ।।

यूं तो तन्हा था हर शख्स उस रहा का
 वो अपनी तन्हाई लेकर जाने कहां गया

यकीनन सबको थी मंजिल की जुस्तजू
वो अपनी मंजिलें आरजू लेकर जाने कहां गया ।।

जाने क्या दीवानगी थी उसे इश्क में
वो अपनी दीवानगी लेकर जाने कहां गया।।

चांदनी रात में झूम उठता  वह याद में
 वो अपनी यादें लेकर जाने कहां गया ।

उसका इंतजार शायद किसी को नहीं था
वो अपना साया लेकर जाने कहां गया ।।

साहिल था वो मगर उसे साहिल ना मिला
वो अपनी कश्ती लेकर जाने कहां गया।


                                             कमल राठौर साहिल 

परिवर्तन

                                      

प्राथमिकविद्यालय दुनार पुर की दशा बिल्कुल खराब थी। इसमें एक ही अध्यापक हरीश  की तैनाती थी।नामांकन 93था।इतने सारे बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ  विद्यालय सम्बन्धी लिखा पढ़ी भी  उनको  ही करनी पड़ती थी । हम यह कह सकतें है कि वे केवल बच्चों को घेरने का कार्य करते थे।  कई बार तो विद्यालय बन्द होने की कगार पर आ जाता था।भला हो विद्यालय की रसोइयों का। पढ़ी लिखी होने के कारण हरीश की मदद कर दिया करतीं थीं।

कई बार उच्चाधिकारियों को सूचना देने के बावजूद भी कोई अध्यापक उनके विद्यालय में नही आ पाया था। तभी अखवारों के माध्यम से सूचना मिली कि 55000 सहायक अध्यापकों की भर्ती हो रही है और आन लाइन काउन्सलिंग के माध्यम से विद्यालय आवंटित होंगे। हरीश की आंखों में चमक आ गयी। सोचने लगे कि निश्चित ही अब उनके विद्यालय में अब कोई न कोई अध्यापक आ जायेगा। 

55000 भर्ती  पूरी होने मे 6माह लग गए। कहते  है न इंतजार का फल मीठा होता है।उनके विद्यालय में एक मैडम की तैनाती की सूचना लिस्ट के माध्यम से उन्हें  मिल चुकी थी।

सूची जारी होने के ठीक 3 दिन बाद एक कार विद्यालय में आकर रुकी हरीश घबरा गए क्योंकि  खंड विकास अधिकारी भी महिला थी ।अब हरीश के हाथ पांव फूल गए क्योंकि अभी मध्यावकाश भी नहीं हुआ था फिर भी बच्चे मैदान में खेल रहे थे। कार का दरवाजा खुला तो देखा एक नव युवती कार से निकल रही है।

विद्यालय में आकर बोली, "सर जी नमस्ते,मेरा नाम शालिनी है मेरा चयन आपके विद्यालय में सहायक अध्यापिका पद पर हुआ है । मैं आज जॉइन करने आयी हूँ।" हरीश बोले-"आपका विद्यालय परिवार स्वागत करता है। इस विद्यालय परिवार को आपकी बहुत जरूरत थी।आप अब आ गई है तो हम आप मिलकर विद्यालय की दशा बदल देगें।"

हरीश ने  तुरंत मैडम को जॉइन कराया ।मिठाई बांटी गई। कार को देखकर  कई लोग स्कूल में जमा हो चुके थे। अब एक सभा का रूप बन चुका था गांव वालों ने  पुष्प भेंट कर मैडम का स्वागत किया । प्रधान जी भी भीड़ देखकर आ चुके थे। हरीश बोले-"देखिये अब हमारे स्कूल में दो अध्यापक तैनात हो  चुके है ।सारा काम अब समय से होगा ।बच्चो की पढ़ाई भी होगी और कागजी लिख पढ़ी भी होगी ।अब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी मैं लेता हूं। बस आप बच्चों को  नियमित रूप से स्कूल भेजिए।"
प्रधान जी बोले-"सर जी की बात बिल्कुल सही है सभी लोग बच्चों को भेजें।" सभी गाँव वालों ने अपने बच्चों को  स्कूल भेजने का  वायदा किया।मीटिंग यहीं पर समाप्त हो गई।

मीटिंग में किये गए वायदे से मैडम असहज हो गई। बोली-,''देखिये सर आपका स्कूल मेरे शहर से 60 किलोमीटर दूर है।मैं प्रतिदिन इतने किलोमीटर की यात्रा नहीं कर पाऊँगी।" हरीश बोले-"कोई बात नहीं पास वाले कस्बे में आपको कमरा दिला देते है ।वहीं से अप डाउन करें। "नही  मैं ऐसा नही कर सकती। देखिये मेरे मौसा बगल वाले जनपद में सीडीओ के पद पर है। कहो तो मैं आपकी बात करा दूं"

हरीश बोले-"तो क्या आप प्रतिदिन स्कूल  नहीं आयेगीं?"
"नही ऐसा नही है मैं  स्कूल आऊँगी पर हफ्ते में सिर्फ एक बार ।उस दिन आप ना आइयेगा।आप को भी हफ्ते में एक दिन आराम मिल जायेगा।"मैडम बोली हरीश के चेहरे पर निराशा आ गयी थी-"तो हम ने गांव वालों से जो वायदा किया है उसका क्या होगा?" मैडम बोली'-"यह वायदा मैने नही किया था आपने किया था   आप ही जाने ।"यह कह कर मैडम कार में बैठ कर फुर्र हो गई।

अगले दिन गांव वाले इंतजार करते रहे लेकिन मैडम नही आईं हरीश ने किसी तरह बहाना बनाकर कहा"अभी अभी मैडम का फोन आया था वो बीमार हो गई है ठीक होने पर स्कूल आयेगीं।"

परंतु यह बहाना कब तक काम करेगा । एक न एक दिन  गांव वालों को पता चल ही जायेगा।स्कूल फिर वही पुराने ढर्रे पर आ गया था। बच्चे तो बस खेलने और खाना खाने ही आते और मध्यावकाश में ही घर की ओर खिसकना  चालू कर देते । हफ्ते के चार दिन बीत चुके थे आज पांचवां दिन था । अचानक वही कार विद्यालय की ओर आती हुई दिखाई दी  ।कार विद्यालय के सामने आकर रुकी तो देखा मैडम एक  अधेड़  उम्र के व्यक्ति के साथ चलीं आ रहीं है।

हरीश- 'आपको तो कल आना था ।आप ही ने तो कहा था कि आपके मौसा जी बगल वाले जिले में सीडीओ है आप उनकी छत्र छाया में हैं।आप हफ्ते में सिर्फ एक दिन ही विद्यालय आयेगीं।'

तभी उनके साथ आये हुए व्यक्ति ने अपने आप को मैडम का पिता बताया और बोले "हम आपसे बहुत शर्मिंदा है ।मेरी बेटी संबंधों का गलत फायदा उठाना चाहती थी। एक तो नौकरी बड़ी मुश्किल से मिलती है हमे पूर्ण ईमानदारी से नौकरी करना चाहिए। इन गरीब बच्चों को हम से ही उम्मीदें है। ये ना तो किसी बड़े स्कूल में पढ़ सकते है। और न ही किसी प्रकार की ट्यूशन लगा सकते है। अगर हम इनके साथ न्याय नहीं करेंगे तो ऊपर वाला सब देख रहा है। उसके न्याय में देर है परंतु अंधेर नहीं।"

  हरीश-"बिल्कुल सही कहा आपने ।"
मैडम के पिता बोले-"बेटी अगर तुम इस प्राइमरी की नौकरी से खुश नहीं हो तो त्याग पत्र दे दो ।परंतु ये ना भूलो कि इन बच्चों को पढ़ाने में जो आनंद और संतोष आएगा वो किसी भी नौकरी में नही आएगा।'"

मैडम बोली"पिता  जी और सर जी मुझे माफ़ कर दें। मेरी आँखें अब खुल गयी है । अब मैं  और सर जी मिल कर विद्यालय को चमका देगें। फिर क्या था दोनों लोगों ने जी तोड़ कर मेहनत की अब दुनार पुर का स्कूल अच्छे स्कूल में गिना जाता है।


                                                                        डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव


सुंदर गज़ल आप भी पढ़िए

शिकवा गिला मिटाने का त्योहार आ गया।
दुश्मन भी होलि खेलने  को यार आ गया।।

परदेसी  सारे  आ  गए  परदेस  से  यहाँ।
अपना भी मुझको रंगने मेरे द्वार आ गया।।

रंग्गे गुलाल  उड़  रहा  था  चारों  ओर  से।
नफ़रत मिटा के देखा तो बस प्यार आ गया।।

ठंडाइ भांग की मिलि हमनें जो पी लिया।
बैठा था घर में चैन  से  बाज़ार आ गया।।

मजनू पड़े हैं  पीछे  मुझे  रंगने  के  लिए।
धोखा हुआ पहन के जो सलवार आ गया।।

सब लोग मिल रहे गले  इक दूजे से यहाँ।
लगता है मुरली वाले के दरबार आ गया।।

खेलो निज़ाम रंग  भुला कर के सारे ग़म।
सबको गले लगाने  ये  दिलदार आ गया।।

                                                      निज़ाम-फतेहपुरी

तानाजी की वीरता पर सावरकर की सुंदर कविता पढ़िए


जयोऽस्तु ते श्रीमहन्‌मंगले शिवास्पदे शुभदे ।
स्वतंत्रते भगवति त्वामहम् यशोयुतां वंदे ॥1॥

स्वतंत्रते भगवती या तुम्ही प्रथम सभेमाजीं ।
आम्ही गातसों श्रीबाजीचा पोवाडा आजी ॥2॥

चितूरगडिंच्या बुरुजानो त्या जोहारासह या ।
प्रतापसिंहा प्रथितविक्रमा या हो या समया ॥3॥

तानाजीच्या पराक्रमासह सिंहगडा येई ।
निगा रखो महाराज रायगड की दौलत आयी ॥4॥

जरिपटका तोलीत धनाजी संताजी या या ।
दिल्लीच्या तक्ताचीं छकलें उधळित भाऊ या ॥5॥

स्वतंत्रतेच्या रणांत मरुनी चिरंजीव झाले ।
या ते तुम्ही राष्ट्रवीरवर या हो या सारे ॥6॥

                                                                   - वीर सावरकर


15 February 2021

मादक द्रव्यों के सामाजिक नुकसान





युवा पीढ़ी में मादक द्रव्यों के सेवन की महामारी ने भारत में खतरनाक आयाम ग्रहण कर लिए हैं। सांस्कृतिक मूल्यों में बदलाव, आर्थिक तनाव में वृद्धि और सहायक प्रवृत्ति की कमी मादक द्रव्यों के उपयोग में आरंभ करने के लिए अग्रणी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार मादक द्रव्यों का सेवन लगातार या छिटपुट दवा का उपयोग असंगत या स्वीकार्य चिकित्सा पद्धति से असंबद्ध है। यदि दवाओं के गलत इस्तेमाल के परिदृश्य पर दुनिया के आंकड़ों को ध्यान में रखा जाता है, तो यह और भी गंभीर है। लगभग $ 500 बिलियन के टर्नओवर के साथ, यह पेट्रोलियम और हथियार व्यापार के बाद, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा व्यवसाय है। पूरी दुनिया में लगभग 190 मिलियन लोग एक दवा या दूसरे का सेवन करते हैं। नशीली दवाओं की लत मानव संकट का कारण बनती है और दवाओं के अवैध उत्पादन और वितरण ने दुनिया भर में अपराध और हिंसा को जन्म दिया है। आज, दुनिया का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जो नशीले पदार्थों की तस्करी और नशीले पदार्थों की लत से मुक्त हो। दुनिया भर में लाखों नशा करने वाले, जीवन और मौत के बीच दुखी जीवन जी रहे हैं। भारत भी नशीली दवाओं के दुरुपयोग के इस दुष्चक्र में फंस गया है, और नशा करने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।


संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एक मिलियन से अधिक हेरोइन के नशेड़ी पंजीकृत हैं, और अनौपचारिक रूप से लगभग पाँच मिलियन हैं। मेट्रो में उच्च आय वर्ग के युवाओं की छोटी आबादी के बीच आकस्मिक उपयोग के रूप में यह  शुरू किया गया जाता है। अकेले हेरोइन के साँस लेना ने नशीली दवाओं के उपयोग का रास्ता आसान कर दिया है, वह भी अन्य शामक और दर्द निवारक के संयोजन में। इससे प्रभाव की तीव्रता बढ़ गई है, इसने लत की प्रक्रिया को तेज कर दिया है और वापसी की प्रक्रिया को जटिल कर दिया है। भारत में कैनबिस, हेरोइन और भारतीय-उत्पादित दवा दवाएं सबसे अधिक दुरुपयोग वाली दवाएं हैं। कैनबिस उत्पादों, जिन्हें अक्सर चरस, भांग या गांजा कहा जाता है, का पूरे देश में दुरुपयोग किया जाता है।


नशीली दवाओं से युक्त दवा उत्पादों का भी तेजी से दुरुपयोग हो रहा है। कई राज्यों से एनाल्जेसिक जैसे डेक्सट्रोपोफासिन आदि के अंतःशिरा इंजेक्शन भी रिपोर्ट किए जाते हैं, क्योंकि यह हेरोइन की लागत का 1/10 वां हिस्सा आसानी से उपलब्ध है। कोडीन आधारित कफ सिरप को दुरुपयोग के लिए घरेलू बाजार से हटा दिया जाना जारी है। नशीली दवाओं का दुरुपयोग एक जटिल घटना है, जिसमें विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, जैविक, भौगोलिक, ऐतिहासिक और आर्थिक पहलू हैं। पुरानी संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन, आधुनिक परिवारों में माता-पिता के प्यार और देखभाल की अनुपस्थिति जहां दोनों माता-पिता काम कर रहे हैं, पुराने धार्मिक और नैतिक मूल्यों में गिरावट आदि से नशा करने वालों की संख्या में वृद्धि होती है जो कठिन वास्तविकताओं से बचने के लिए ड्रग्स लेते हैं। नशीली दवाओं का उपयोग या दुरुपयोग भी मुख्य रूप से नशीली दवाओं की प्रकृति, व्यक्ति के व्यक्तित्व और नशे की लत के तत्काल वातावरण के कारण होता है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और प्रवासन की प्रक्रियाओं ने सामाजिक नियंत्रण के पारंपरिक तरीकों को ढीला करने के लिए प्रेरित किया है जो आधुनिक जीवन के तनाव और तनावों के लिए एक व्यक्ति को संवेदनशील बनाता है। एचआईवी / एड्स के लिए अग्रणी सिंथेटिक दवाओं और अंतःशिरा नशीली दवाओं के उपयोग ने समस्या में एक नया आयाम जोड़ा है।


नशीली दवाओं के दुरुपयोग ने समाज पर हानिकारक प्रभाव डाला है। इससे अपराध दर में वृद्धि हुई है। नशेड़ी अपनी दवाओं के भुगतान के लिए अपराध का सहारा लेते हैं। ड्रग्स निषेध को हटाते हैं और दोषपूर्ण निर्णय करते हैं। नशीली दवाओं के दुरुपयोग के साथ छेड़छाड़, सामूहिक झड़प, हमले और आवेगपूर्ण हत्याएं बढ़ जाती हैं। वित्तीय स्थिरता को प्रभावित करने के अलावा, लत संघर्षों को बढ़ाती है और परिवार के हर सदस्य के लिए अनकही भावनात्मक पीड़ा का कारण बनती है। अधिकांश ड्रग उपयोगकर्ताओं के 18-35 वर्ष के उत्पादक आयु समूह में होने के साथ, मानव क्षमता के संदर्भ में नुकसान अयोग्य है। युवाओं की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, नैतिक और बौद्धिक वृद्धि को नुकसान बहुत अधिक है।


लत के कारण एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी और तपेदिक की घटनाओं में वृद्धि, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को आगे बढ़ाने वाले समुदाय में संक्रमण के भंडार को बढ़ाती है। भारत में महिलाओं को नशीली दवाओं के दुरुपयोग से अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परिणामों में एचआईवी के साथ घरेलू हिंसा और संक्रमण के साथ-साथ वित्तीय बोझ भी शामिल है। भारत ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मादक पदार्थों की तस्करी के खतरे का सामना करने के लिए खुद को तैयार किया है। प्रवर्तन, कानूनी और न्यायिक प्रणालियों में अभिनव परिवर्तन से जुड़े कई उपायों को अमल में लाया गया है। नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों के लिए मौत की सजा की शुरूआत एक बड़ी अवरोधक के तौर पर सामने आया है। ड्रग्स के उपयोग में समग्र कमी लाने के लिए विशिष्ट कार्यक्रमों से संबंधित व्यापक रणनीति विभिन्न सरकारी एजेंसियों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा विकसित की गई है और इसे शिक्षा, परामर्श, उपचार और पुनर्वास कार्यक्रमों जैसे उपायों द्वारा पूरक बनाया गया है। मादक द्रव्यों के सेवन को व्यक्तिगत स्तर पर, स्थानीय स्तर (सामाजिक, राष्ट्रीय, आदि) और क्रॉस-नेशनल स्तर पर संबोधित किया जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर, पृष्ठभूमि समाजशास्त्रीय कारकों की खोज के साथ जैविक समझ का संश्लेषण होना है। राष्ट्रीय और क्रॉस-राष्ट्रीय स्तर पर, स्थानीय सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्यों को ध्यान में रखते हुए, मादक द्रव्यों के सेवन के प्रबंधन के लिए सभी देशों का ठोस प्रयास होना चाहिए।


                                                                                       सलिल सरोज


12 February 2021

*गुमसुम दोस्त*




ऐ दोस्त आजकल तू क्यों रहती है इतनी ख़फ़ा।
जऱा बता कौन नहीं  निभा पाया है तुझसे वफ़ा।।

चाहकर भी  अभी तक  भुला  नहीं पाई  उसे तू।
ऐसी कौनसी  पिला दी  तुझे मोहब्बत की दवा।।

वो तो बिछड़कर चले गए  तुम्हें तन्हा  छोड़ कर। 
अब  ग़म  को  भुला  और  दर्द  को  कर  दफा।।

इतनी सिद्दत से मोहब्बत की है तूने,बेकसूर है तू।
ज़रा  खुद को  देख कैसी बना  ली अपनी दशा।।

तेरी खामोशी सब कुछ बयां कर  गयी मेरे दोस्त।
तरस आ रहा तुझ पर मत दे अब खुद को सजा।।

एक सितारा टूटने से आसमाँ की रौनक नहीं जाती
वो भूल  गए तो क्या हुआ अब आएगी  नई हवा।।

                                                          अरविन्द कालमा


उड़ती तितली लगती सुंदर


पीछा करते हम तितली का

खेतों और खलिहानों में।

पीछा करते हम तितली का

मैदानों  उद्यानों में।

 

उसे पकड़ने की कोशिश में

कदम उठाते चुस्ती से।

लेकिन अब तक पकड़ पाए

उड़ जाती वह फुर्ती से।

 

पकड़ी तितली इक दिन हमने 

लिया हाथ में ठीक से।

अपने पंख हिलाती कैसे

देखा यह नजदीक से।

 

लेकिन वह छोटी सी तितली

लगती थी घबराई सी।

छोड़ दिया था जल्दी उसको

बात समझ में आई थी।

 

अब तितली को पकड़ेंगे

बंद करेंगे अंदर।

आसमान में उड़ती तितली

लगती है कितनी सुंदर।

                                             कुसुम अग्रवाल