साहित्य चक्र

14 December 2022

कविताः कठिनाइयाँ



उस पथिक को क्या हराएंगी जीवन की कठिनाइयां.....
राह संघर्षों की जो चला हो ।
उस पथिक को क्या हराएंगी जीवन की कठिनाइयां.....
राह संघर्षों की जो चला हो ।

कठिनाइयों से भरा हमेशा ही रास्ता उसका, 
जो कभी मंजिलों तक पहुंचने से न डरा हो...
उस पथिक को क्या हराएंगी जीवन की कठिनाइयां.....
राह संघर्षों की जो चला हो ।

ऊंचाइयों से रहा वास्ता इस कदर उसका,
की छोटा सोच ही न रहा हो.....
उस पथिक को क्या हराएंगी जीवन की कठिनाइयां.....
राह संघर्षों की जो चला हो।

उड़ चला वो पंछी इस तरह जैसे,
पहाड़ों पर मनमौजी बादल कोई तैरता हो.....
उस पथिक को क्या हराएंगी जीवन की कठिनाइयां.....
राह संघर्षों की जो चला हो।

बात इतनी सीधी-स्पष्ट है उसकी,
जैसे कोई कवि कटाक्ष कर रहा हो.....
उस पथिक को क्या हराएंगी जीवन की कठिनाइयां.....
राह संघर्षों की जो चला हो।

वही हमेशा दिल की राह चला...
वही हमेशा दिल की राह चला,
जो कभी दिमाग से न लड़ा हो....
उस पथिक को क्या हराएंगी जीवन की कठिनाइयां.....
राह संघर्षों की जो चला हो।

निखर जाता है अक्सर वही...
निखर जाता है अक्सर वही....
जो अपनी कमियों से लड़ता रहा हो....
उस पथिक को क्या हराएंगी जीवन की कठिनाइयां.....
राह संघर्षों की जो चला हो।


                          - अर्पणा सचान 


No comments:

Post a Comment