साहित्य चक्र

26 December 2022

लेखिका रामदेवी करौठिया जी की 5 सुंदर रचनाएँ




किसान

यह किसान खेत खलियान
 में शोभा बढ़ाते हैं
 कि किसान हमें अन्न
 भी उगा कर देते हैं
 यह किसान सर्दी गर्मी 
का एहसास नहीं होता 
अपनी फसल का दिन 
दिन रात मेहनत करते 
 तब जाकर उनके घरों में
 अनाज आता है और जब
 दाम शासन के यहां से सुनते हैं
 तो किसान फिर भी संतोष
 कर जाता है और मन में
हमेशा खुशी मनाता है
गेहूं चना सरसों मूंगफली
मूंग उड़द सभी अपने
 खेतों में उगाता है।
रात रात खेतों में पानी देता है 
नींद अपनी गायब करके 
हम सबको अन्य देता है
 किसान की व्यथा
 और उसकी कथा को 
कोई समझ नहीं पाता है 
क्योंकि किसान सचमुच ही
 अन्नदाता है इसलिए उसे
भगवान जैसा दर्जा मिला है।
भृषटाचारी बिल्कुल भी
 नहीं करता है ईमानदारी के
 पथ पर चलकर अपने
 घर परिवार का पालन पोषण करता है।

*****


आंखें

आंखें बहुत सवाब हैं
 जिसमें जो एक बार डूब 
जाए तो उनसे निकल पाना 
मुश्किल होता है ।

इश्क की चाबी है जो
 इशारों इशारों में पता नहीं
 क्या कुछ कह जाती है 
जब धड़कनों से आवाज आती है।

 तो बस तुम्हारा ही 
खयाल आता है,
 दिल ठहरा है कुछ 
गहरा भी है कुछ सुनता भी है
 और समझता भी है,
 पर बात किसी की नहीं सुनता है।

 क्योंकि भावनाओं से
 जुड़ गया है यह रिश्ता
 इसलिए तो कॉल किया है
 इस दिल में जब तक सांस है ।

तब तक तो मेरी आस हो
 मेरे जीवन की प्यास हो 
मेरे रूह में आकर उतर गए
 किस कदर की कभी न
 खत्म होने वाली वह 
ईश्वर की देन हो।

 राहों में चट्टानों में 
मेरे मुकद्दर की लकीरों में
 बस तुम्हारा इंतजार है।
मेरे दिल के हर पन्नों
पर लिखा तुम्हारा नाम है।

*****


मां

जितना मां शब्द
 एक छोटा सा है
 उतना ही मां का दर्जा
 उतना ही बड़ा है 
कहने में मां होती हैं
 पर  सचमुच ही 
कितनी सूरत से मासूम 
और हर पल सब का
 ख्याल रखने वाली होती है।

मां सब कुछ भूखे रहकर
 सहकार हमको खाना खिलाती है
 मां की जगह कोई 
नहीं ले पाता है 
मां सचमुच ही अलग
 अनोखी जगत में अपना रूप
 अलग लेकर चलती है ।

ऐसी होती है मां
 सारी रात रात जागती है
 पर हमें बहुत आराम से
 सुलाती है सर्दी गर्मी का
 एहसास हमें नहीं होने देती है
 मां खुद सर्दी गर्मी सब
 कुछ सहन करती है।

 बस हमें हर पल सुख का 
आनंद देती है ऐसी होती है मां 
मां अपनी ख्वाहिशों को मार 
कर कभी नहीं कहती है
 अपने बच्चों की हर बात 
 का ख्याल रखती है।

 खुद कम कपड़े पहन कर 
अपने बच्चों की ख्वाहिशों को
 पूरा करने के लिए
 पिता से भी लड़ती है
 ऐसी होती है मां।

*****


नारी और साड़ी

नारी की पहचान है
 नारी की शोभा है 
यह साड़ी रंग कभी लाल 
कभी पीली कभी हरी 
सभी रंगों से सुशोभित 
हमें भी बहुत सुंदर सलोना रूप देती है

स्त्री का सिंगार है 
यह मर्यादा कि हमारी पहचान है
 यह साड़ी हमारी 
संस्कृति की धरोहर है 
जो हम सभी ने इसे प्यार से,
 ओढ़ रखी है सर पर पल्लू
 लेकर थोड़ा सा घूंघट करके
 देखो साड़ी कितनी मनभावन 
सबको मोहित सी करती है।

 यह साड़ी सचमुच ही हमारी
 एक नई पहचान है 
हर नारी शक्ति की अलग
 ही शोभा की हर घर की दहलीज
 की मान मर्यादा की यह 
साड़ी हर वस्त्रों से भी अलग पहचान है।

 इसलिए तो साड़ी का पहनावा
 सचमुच ई सबसे अच्छा
 और सरल भी है जितनी सुंदर
 नारी साड़ी में सुंदर दिखती है
 उतनी कोई वस्त्र में नहीं 
मॉडल जमाने को देखते 
फैशन के तौर पर नए-नए 
परिधान पहनने का शौक बना लिया है ।

पर जब जब साड़ी नारी 
शक्ति ने पहनी है तब तब
 वह रानी लक्ष्मी बाई जैसी
 अलग ही देखी है।

*****


 सर्दी की धूप

धूप गुनगुनी बहुत सुहाती,
हांडियों को मजबूत बनाती।
सारी ठिठुरन दूर भागती,
जब गुनगुनी धूप में बैठे होते।

पूस के महीने में ठंड बहुत होती,
तिल और गुड़ के लड्डू बहुत भाते।
ठंडा पानी बहुत बर्फ सा लगता,
हाथ डालो तो लकड़ी से हो जातें।

अदरक चाय के प्याले भरभर पीते,
कचौड़ी भजिया और पराठे खाते।
जो मन चाहे हम पकवान बनाते,
नुकसान तनिक न होता स्वस्थ रहते ।

*****


                                        - रामदेवी करौठिया


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