साहित्य चक्र

30 March 2017

मेरी आखें



मेरी आखों में जो नशा छाया है,
वहीं तेरे रोम-रोम में समाया है।।

मैं हूं तेरा दीदार करने वाला,पर 

तेरे दर्शन का बुलावा न आया।।

तेरे है बड़े चित्र-विचित्र रुप, पर 

मैंने तो तुझे देखा ही नहीं है।।

तेरे हैं कई दिवाने-चाहने वाले,पर
कई तुझे आजतक समझ न पाए।।

मैं हूं तेरा दिल से आशिक, पर
तुझे कभी अहसास ही न हुआ।।



                    कवि- दीपक कोहली

*नारी तुझे सलाम*



अगर तू ना होती, इस दुनिया में,
तो क्या होता इस दुनिया का।
कौन बनती मॉं, कौन होती बहन,
नारी तुझे सलाम-नारी तुझे सलाम।।

क्या होता इस मानव जाति का,
ना कोई मॉं होती, ना कोई बहन होती।
ना कोई नारी होती, ना कोई चारी होती,
नारी तुझे सलाम-नारी तुझे सलाम।।


                                       कवि- दीपक कोहली

योगी आदित्यनाथ की पहचान-





योगी आदित्यनाथ "योगी" बनने से पहले अजय सिंह बिष्ट के नाम से जाने जाते थे। 5 जून 1972 को देवभूमि के पौड़ी जिले के यमकेश्वर तहसील के पंचूड़ गांव में योगी (अजय सिंह बिष्ट) का जन्म हुआ था। योगी गढ़वाली राजपूत परिवार से संबंध रखते है। जिनके पिता आनंद सिंह बिष्ट फॉरेस्ट रेंजर थे। वहीं माता सावित्री देवी एक गृहणी है। योगी आदित्यनाथ की तीन बड़ी बहनें और तीन भाई हैं। 
योगी आदित्यनाथ की प्रारम्भिक शिक्षा 1977 में टिहरी के गजा के स्थानीय स्कूल में शुरू हुई। 1987 में योगी ने दसवीं की, तो वहीं 1989 में ऋषिकेश के श्री भरत मंदिर इंटर कॉलेज से योगी ने बारवीं की। सन् 1990 में योगी ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते हुए, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और सन् 1992 में श्रीनगर के हेमवती नन्दन बहुगुणा विवि से योगी ने गणित से बीएससी की। जिसके बाद अजय सिंह बिष्ट 1994 में संन्यास लेकर गोरखपुर मंदिर में संत बन गए। संन्यास लेने के बाद अजय सिंह बिष्ट का नाम योगी आदित्यनाथ हो गया। योगी गोरखपुर मंदिर के पूर्व महन्त अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी है।
सन् 1998 से शुरू हुआ, योगी आदित्यनाथ का राजनीति जीवन..। जब बीजेपी ने उन्हें सन् 1998-99 में 12वीं और 13वीं लोकसभा में गोरखपुर से प्रत्यशी बनाया। तब योगी की उम्र मात्र 26 वर्ष थी और आदित्यनाथ जीत कर  12वीं और 13वीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद चुने गए। साल 2002 में योगी ने "हिन्दू युवा वाहिनी" की स्थापना की। जिसके बाद साल 2004 में लगातार तीसरी बार तो, वहीं सन् 2009 में 15वीं लोकसभा में 2 लाख से ज्यादा मतों से जीतकर लोकसभा पहुंचे आदित्यनाथ, तो वहीं एक बार फिर योगी साल 2014 में लगातार पांचवीं बार लोकसभा चुनाव जीते। योगी आदित्यनाथ 1998,1999, 2004, 2009,2014 में लगातार गोरखपुर से सांसद चुने गए। योगी बीजेपी के साथ पिछले एक दशक से जुड़े है। योगी एक कट्टर हिन्दूवादी राजनेताओं में गिने जाते है। वर्ष 2005 में योगी ने 1800 ईसाइयों का शुद्धीकरण कर हिन्दू धर्म में शामिल कराया। जो यूपी के ईटा जिले में किया गया। 2 सितम्बर 2008 को योगी आदित्यनाथ पर आजमगढ़ में जानलेवा हमला भी हुआ था। जिसमें योगी बाल-बाल बचें थे।    
आज वहीं योगी यूपी की राजनीति में  बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा बन कर सामने आये। जब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने योगी को यूपी के 2017 विधानसभा चुनावों मेंं स्टार प्रचारक के रूप में मैदान मेंं उतारा ही नहीं बल्कि बीजेपी जीत तय कर दी। वहीं जब 11 मार्च 2017 को बीजेपी को यूपी में पूर्ण बहुमत से भी ज्यादा सीटें मिली, तो सब राजनीति पार्टियां हैरान नजर आए। 19 मार्च 2017 को बीजेपी ने योगी को यूपी का सीएम बनाकर पूरे प्रदेश में बीजेपी समर्थकों में खुशी की लहर ला दी। वहीं यूपी के इतिहास में पहली बार बीजेपी ने दो उपमुख्यमंत्री बनाकर पूरे देश को चौंका दिया। 19 मार्च 2017 रविवार को योगी ने यूपी के 21वें मुख्यमंत्री पद के रूप में शपथ ग्रहण ली।

                                                   संपादक- दीपक कोहली        

26 March 2017

- एक नारी गौरा देवी "चिपको" -

               
गौरा देवी देश की वे नारी थी जिसने  चिपको आंदोलन चलाया। अब आप सोच रहे होगें कि ये कहां कि होगी और चिपको आंदोलन क्या था..?  हर एक पहलूओं में प्रकाश डालेगें। सबसे पहले आपको मैं गौैरा देवी के बार में जानकारी दे दूं। गौरा देवी वो महिला है जिससे पेड़ों पर चिपक कर उन्हें काटने से बचाया या कहें रोका। गौरा देवी वैसे तो उत्तराखंड की रहने वाली थी। जो एक साधारण परिवार की सदस्य थी। इनका जन्म सन् 1925 में उत्तराखंड के चमोली जिले के लाता गांव मरछिया परिवार में हुआ था। जो पहले उत्तरप्रदेश का हिस्सा था। गौरा देवी ने कक्षा पांच तक की पढ़ाई भी ग्रहण की थी, जो बाद में उनके अदम्य साहस और उच्च विचारों का संबल बना। इनका विवाह पुरानी प्रथा के चलते बहुत ही जल्द हो गया। वैसे इनका विवाह रैंणी भोटिया के आवासीय गांव में हुआ था। यहां के लोगों अपना गुजारा-बसेरा के लिए पशुपालन, ऊनी कारोबार, खेती किया करते थे। वहीं 22 साल की उम्र में गौरा देवी के पति की मृत्यु हो गई। जिसके बाद गौरा देवी ने आपने परिवार की परवरिस की, और अपने एक बेटे को पढ़ाया-लिखाया। ये घटना उस वक्त की है जब उत्तराखंड में 1970 में अलकनंदा नदी में महाप्रलयकारी बाढ़ आई थी। जिससे बाद प्रदेश में जन- जीवन अस्त -व्यस्त हो गया। बाढ़ का मुख्य कारण 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत सरकार ने सेना के लिए यहां से सुगम मार्ग बनाने का निर्णय लिया। जिसके लिए यहां पर पेड़ों का कटान तो हुआ, लेकिन जो पड़ों का कटान हुआ, उनकी भरपाई नहीं की गई थी। जिसने बाद में महाप्रलय का रूप लिया था। सन् 1974 में  जब अलाकांडा में चडी प्रसाद भट्ट और गोविंद सिंह रावत नामक व्यक्तियों ने एक अभियान के तहत 2500 देवदार के वृक्षों को काटने के लिए चिन्हित किया। लेकिन जब गौरा देवी को इसका पता चला, तो गौरा देवी ने इस अभियान का विरोध करने का फैसला लिया और पेड़ों की रक्षा करने के लिए एक अभियान चलाया। जिसका नाम बाद में चिपको आंदोलन पड़ा। वैसे गौरा देवी जंगल को अपना मायका या अपनी माता का घर मानती थी। गौरा देवी कहती थी कि जंगल हमें फल, फूल, लकड़ी, आदि चीजें देता है। क्यों ना हम इसकी रक्षा करें। गौरा देवी वेद, पुराण, रामायण, महाभारत जैसे कई धर्म ग्रंथों की जानकारी भी रखती थी। वर्ष 1991 में गौरा देवी का 66 साल की उम्र में निधन हो गया। गौरा देवी को आज भी पूरे भारत में चिपको वुमन के नाम से जाना जाता है। 

                                                                                            संपादक- दीपक कोहली

25 March 2017

फौजी बेटा- रवीन्द्र


देवभूमि के चमोली जिले के मेहलचौरी गांव के रहने वाले रवीन्द्र की कहानी रवीन्द्र की जुबानी..आइये आपको बताते है......।। 

रवीन्द्र होने को एक फौजी सैनिक है। जो इन्हें बेहद ही रोचक बनाती है। रवीन्द्र एक सामान्य परिवार से संबंध रखते है। जब रवीन्द्र कक्षा 12वीं में थे, तो तभी रवींद्र आर्मी में भर्ती हो गए। अपनी जीवन की पहली भर्ती में रवींद्र देहरादून के गढ़ीकैंच में गए थे। जहां रवींद्र को सफलता मिली और आर्मी में भर्ती हो गए।  वैसे होने को रवींद्र के पिता जी भी आर्मी के (असम राइफल) में थे। रवींद्र की माता एक गृहणी थी, जो खेती-बाड़ी किया करती थी। आज रवींद्र अपनी मेहनत और लगन के बुते गढ़वाल रेजिमेंट के सैनिक हैं। रवींद्र हमारी पत्रिका के माध्यम से उन युवाओं को प्रेरित करना चाहते है। जो आर्मी और फौज में जाना चाहतेे हैं या अपना कैरियर बनाना चाहते है। 
रवींद्र कहते है- हमारे देवभूमि उत्तराखंड के युवाओं को अच्छी शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। आर्मी ही नहीं बल्कि अच्छी पोस्ट पर जाना चाहिए। अगर जो युवा फौज में जाना चाहते है, तो उन्हें अपने दिमाग भर लेना चाहिए, कि मुझे देश की वर्दी पहनी हैं। चाहे कुछ भी हो जाए..। मैं देश की सेवा करूगां। जब आप किसी आर्मी भर्ती में जाते है तो आप वहां मजाक-मस्ती, घूमने के लिए ना जाए। क्योंकि आप अपनों और अपने-आप को धोखा दे रहे हैं। 
रवींद्र के सफल सूत्र- अपनों को देखते हुए आगे बढ़ो, कष्ट सहने की आदत डालो, अपने घर की प्रस्थिति देख- आगे बढ़, अपनी सोच बदलो और बढ़ाओ, भविष्य के बारे में सोचो..।।
रवींद्र आगे कहता है जब कोई युवा पहली बार आर्मी टेर्निंग के लिए जब जाता है, या जब वह पहली बार वर्दी पहनता है। तो वह पल उस युवा के लिए काफी गर्व और खुशी भरा होता है। जो आपने आप में एक बेहतरीन पल होते हैं। रवींद्र यह संदेश इसलिए देना चाहते है, क्योंकि रवींद्र भी उन युवाओं में से एक है, जो देश के लिए मर मिटने की कसम खाते है। 
अब उठो और जागो मेरे देश के युवा, नहीं तो देर हो जाएगी।। कई मेरे देश के युवा पीछे ना छुट जाए।।

                                    संपादक- दीपक कोहली

वाजपेयी का अंदाज....निराला




चाहे आज पूरे विश्व में मोदी की जय जयकार हो रही हो, लेकिन बीजेपी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले एक ही शख्स रहे है, वो है अटल बिहारी वाजपेयी जी जिन्होंने बीजेपी को उसकी साख दिलाई। वाजपेयी जी वो राजनेता थे, जो अपनी राजनीति के लिए देश को दांव पर नहीं लगाया करते थे। बिहारी जी उन राजनेताओं में गिने जाते है, जो अपने दम पर पार्टी को आगे ले जाया करते थे। आपको बता दूं कि बिहारी जी राजनीति में आने से पहले एक पत्रकार की भूमिका निभाया करते थे। वैसे अटल जी एक अच्छे कवि के साथ एक अच्छे वक्ता भी हुआ करते थे। विहरी जी अपनी ईमानदारी के लिए लोगों के दिलों में आज भी राज करते हैं। अटल जी अपने जमाने के लोकप्रसिद्ध राजनेता हुआ करते थे। उनके भाषणों के लोग आज भी दिवाने हैं। कभी-कभी में सोचता हूं, कि जब बीजेपी ने जनसंघ के लिए कमल का निशान चुना, तो शायद उसमें अटल जी की व्यक्तित्व की छाया छवि रही होगी। वैसे मोदी को गुजरात का सीएम अटल जी ने ही बनाया था। इतना ही नहीं अटल जी को भारत-पाक रिश्तों के लिए भी जाना जाता है। वो अटल जी ही थे जिन्होंने सीमा पर शहीद होने वाले हर सैनिक को सम्मान देने का फैसला किया। हर शहीद के शव को उनके गांव व घर तक पहुंचाने के साथ-साथ राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाने का फैसला किया। अटल जी के शासनकाल  में ही देश ने कारगिल जैसा युद्ध लड़ा। जिसमें देश को जीत हासिल हुई। अटल जी पूरे जीवनभर भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे। चाहे फिर भारतीय जनसंघ (भारतीय जनता पार्टी) की स्थापना करने वाले महापुरुषों की बात की क्यों ना हो। अटल जी ने लम्बे समय तक वीर अर्जुन, पांचजन्य, राष्ट्रधर्म जैसे राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पत्रिकाओं का संपादन भी किया है। जो यह दर्शाता है, कि अटल जी एक राष्ट्र भक्त थे। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रचारक के रूप में अटल जी ने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। बिहारी जी ने अपने नेतृत्व में 24 दलों की गठबंधन की सरकार बनाई। जिसमें बिहारी जी प्रधानमंत्री और 81 मंत्रियों ने शपथ ली। जिसमें कभी भी किसी पार्टी ने विरोध नहीं किया। जिससे बिहारी जी के नेतृत्व का पता चलता है। 1968 से 1973 तक अटल जी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। साल 2014 में अटल जी को देश का सबसे सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया।  


                                                     संपादक- दीपक कोहली

17 March 2017

भारत की पहचान इसरो













इसरो ( भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ) दिन - प्रतिदिन ऊंचाइयों को छूता जा रहा है। जिससे हमारे देश का नाम पूरे विश्व में रोशन हो रहा है। आज जिस तरह इसरो अंतरिक्ष में अपनी मौजूदगी का इशारा दे रहा है। उससे ये लगता है, कि इसरो अपने आप में एक मजबूत संगठन के तौर पर पूरे दुनिया में अपनी पकड़ बना रहा है। जो भारतीय नागरिकों में एक नई ऊर्जा पैदा करती हैं। भारतीय होने के नाते मैं खुद गर्व महसूस कर रहा हूं। 

जिस तरह आज इसरो अपनी ताकत का नजारा पूरी दुनिया को दिखा रहा है। इतना ही नहीं अमेरिका से लेकर फ्रांस तक इसरो का दबदबा मानने को तैयार है। जिस तरह इसरो ने  15 फरवरी 2017 को 104 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया और साथ ही 19 फरवरी 2017 को फिर 400 टन के रॉकेट के लिए सबसे बड़े क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण किया। जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। सन् 1962 में जब भारत सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष समिति का गठन किया। तो तब भारत के कर्णधार डॉ. विक्रम साराभाई ने अंतरिक्ष में पहुंचने का निर्णय किया। 

जिसके बाद भारत सरकार द्वारा ऊपरी वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए तिरुवनतपुरम के थुंबा भू-मध्यरेखीय राकेट प्रमोचन केंद्र की स्थापना की गई। जो भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि बनी। जिसके बाद सन् 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने तत्कालीन इन्कोस्पार का अधिकरण किया।  भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान की स्थापना में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू और डॉ. विक्रम साराभाई का काफी सहयोग रहा। जिन्होंने देश को एक नया आयाम देने की कोशिश की और आज वहीं कोशिश देश का नाम रोशन कर रही है। 

इसरो देश के लिए प्रसारण, संचार, सूचना प्रणाली, मानचित्रकला आदि सुविधा, उपकरणों के माध्यम से  देश में अपनी सेवा प्रदान करता है। आपको बता दूं, इसरो का जनक डॉ. विक्रम साराभाई को माना जाता है। वहीं नेहरू जी का भी इसमें उतना ही योगदान रखा है जितना साराभाई का रहा। इसरो साराभाई की संकल्पना है। भारत का अंतरिक्ष इतिहास बहुत ही पुराना रहा हैं। जब टीपू सुल्तान ने मैसूर युद्ध में अग्रेजों को खधेड़ने के लिए राकेट का प्रयोग किया। तो उसके बाद ही 1804 में कंग्रीव राकेट का अविष्कार हुआ। जो भारत की देन कहीं जा सकती है। इसरो का मुख्यालय कर्नाटक के बेंगलुरु में स्थित है। जहां सत्रह हजार से भी ज्यादा कर्मचारी और वैज्ञानिक कार्यरत हैं। इसरो देश को अंतरिक्ष संबंधी तकनीक उपलब्ध करवाता है। जैसे उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों आदि स्थापित करना हैं। 

आपको बता दूं, देश का पहला उपग्रह आर्यभट्ट 19 अप्रैल 1974 में सोवियत संघ द्वारा शुरू किया गया। जिसका नाम महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम से रखा गया। जिसके बाद 1980 में भारत ने स्वदेशी निर्मित उपग्रह रोहिणी को स्थापित किया। 

इसके बाद इसरो ने दो अन्य राकेट विकसित किए-
1)- स्त्रीय उपग्रह प्रक्षेपण यान, 2)- भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान।
इसरो ने सन्- 22 अक्टूबर 2008 में पहला चंद्रयान भेजा।
                     24 सितम्बर 2014 में पहला मंगल यान भेजा।

इसरो के वर्तमान निदेशक - ए एस किरण कुमार है। जो एक वैज्ञानिक भी है। आज इसरो हमारे देश ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों को भी अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा हैं। जो हमारे देश के लिए एक गर्व की बात है। 


                                                      संपादक- दीपक कोहली  


16 March 2017

मैं पैसा हूं..।





                          मैं भगवान नहीं, फिर भी मुझे पूजते हैं।
                                  मैं आपसी रिश्ते बिगाड़ कर, 
                                  मैं मतलबी रिश्ते बनाता हूं।।
                                  मैं पैसा हूं...। सबकी पंसद हूं।



                             मैं कोई व्यक्ति नहीं, जो बलिदान दूं।
                                  मैं लोगों का बलिदान लेती हूं,
                                    मैं तो बस एक माध्यम हूं।।
                                   मैं पैसा हूं...। सबका सपना हूं। 


              कवि- दीपक कोहली




15 March 2017

मीरा की दिवानगी-


जब-जब भक्ति की बात होगी...। तब-तब मीरा का नाम जरूर लिया जाएगा..।। वहीं जब-जब श्री कृष्ण जी का नाम या बात की जाएगी, तो मीरा का जिक्र जरूर होगा। मीरा वो थी, जिसने संसार को प्रभु भक्ति का नया अध्याय सीखाया। अपना पूरा जीवन प्रभु की भक्ति में लीन करने वाली भक्त मीरा ही है। वहीं विष का प्याला चखने वाली भक्त मीरा को ही कहा जाता है। मीरा ने अपना पूरा जीवन कृष्णा भक्ति में त्याग दिया। जो ये दर्शाता है, कि एक भक्त ही अपने प्रभु को समझ सकता हैं।आइए आज हम आपको एक भक्त की दास्तां बताते है। वो भक्त कोई और नहीं मीराबाई है यानि मीरा- मीराबाई का जन्म 1504 में जोधपुर के कुरकी नामक गांव में हुआ। मीराबाई बचपन से ही श्रीकृष्ण से विशेष स्नेह रखती थी। जिससे मीराबाई के परिवार वाले  बहुत परेशान रहते थे। जब मीराबाई की शादी हुई, तो मीराबाई काफी दु:खी थी। उदयपुर के राजा महाराणा कुमार भोजराज के साथ मीरा का विवाह- बंधन हुआ। वैसे मीराबाई शादी नहीं करना चाहती थी। लेकिन अपने परिवार के चलते मीरा ने शादी की। विवाह के कुछ समय बाद ही मीरा बाई के पति का निधन हो गया। जिसके बाद मीरा बाई ने पति का घर त्याग, फिर कृष्ण की भक्ति शुरू कर दी। पति की मृत्यु के बाद मीराबाई का कृष्ण की ओर प्रेम, चाह और बढ़ गया। अब मीरा स्वतंत्र मन से भगवान कृष्ण की अराधना करने लगी। श्रीकृष्ण और मीरा की इस भक्ति ने कई कविताओं को जन्म दिया। जो मीराबाई द्वारा रची गई। इन्हीं कविताओं से मीराबाई पूरे विश्व में आज लोक प्रसिद्ध है। मीराबाई लिखती ही नहीं थी, बल्कि गाती भी थी। एक बार तो मुगल शहनशाह अकबर भी मीराबाई का दिवाना हो गया था। जब मीराबाई के बारे में अकबर ने सुना। कई बार अकबर, मीराबाई से मिलना चाहता था। लेकिन मीराबाई एक राजघराने की बहु होने के नाते अकबर से नहीं मिल सकीं। तब अकबर ने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए, अपना वेष बदल कर एक मंदिर में मीराबाई के दर्शन किए। जब अकबर ने मीरा की सुरीली आवाज और कृष्ण भक्ति की झलक देखी, तो अकबर ने मीराबाई को एक हार अर्पित किया। जिसके बाद अकबर वहां से चला गया। जब लोगों ने देखा की एक सामान्य व्यक्ति इतना किमती हार देके गया है, तो लोगों को शक होने लगा। जब इसका पता लगाया तो पता चला कि, वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि मुगल शासक अकबर है। वहीं कुछ लोग आज भी यह मानते है, कि मीरा का रूप एक देवी का रूप था। जिसके लिए कई स्थानों पर आज भी मीराबाई की पूजा की जाती है। 

                                                      ।। संपादक- दीपक कोहली।।

ओ आमा - ओ बूबू


ओ आमा - ओ बूबू,
कस हैगो म्यर पहाड़।
पाथर छायी मकान हुछी,
अब हैगिना लैन्टरा।।

ओ ताई -ओ ताऊ,
कस हैगो म्यर पहाड़।
पैली बैटी देहे-दूध पीछी,
अब मस्त हैगो दारू मा।।

ओ काका- ओ काकी, 
कस हैगो म्यर पहाड़।
चूल कौ खाड़ खाछिया,
अब गैस बड़ूछ खाड़ा।।

ओ बैणी- ओ भूला,
कस हैगो म्यर पहाड़।
पैली सूट-शलवार पेरछी,
अब जींस में रैगो पहाड़।।

ओ भौजी- ओ दादा,
कस हैगो म्यर पहाड़।
पैली खरमी धोती धरछी,
अब हाथ पकड़ी घूमड़ी।।

कस हैगो म्यर पहाड़ा..।।

    कवि- दीपक कोहली
 

-हर सुबह सुहानी-

हर सुबह सुहानी हो जाए,
दुखों की बात पुरानी हो जाए।।
मेरी ये मुस्कुराहट....।
तुम्हारी दिवानी हो जाए।।



हर पल खूबसूरत हो जाए,
हर सपने साकार हो जाए।।
तुम्हारी ये हंसी...।
मेरी खुशी का राज बन जाए।।


हर रात रंगीन हो जाए,
हर बात संगीन हो जाए।।
तुम- मेरी, मैं-तेरा...।
हमसफर बन जाए।।

              *कवि- दीपक कोहली*

होली की हकीकत-


होली का नाम लेते ही हमारे मन में रंग, पानी, मस्ती-मजाक आता है। होली हमारे देश के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। होली भारत ही नहीं नेपाल सहित कई देशों मेें भी मनाई जाती हैं। होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली बड़े ही धूम-धाम से मनाये जाने वाले त्यौहारों में से एक हैं। होली हमारे देश के प्रचीन पर्वों में से एक है, जिसे होलिका, होलाका नाम से भी मनाया जाता है। इसे वंसतोत्सव और काम-महात्सव भी कहा जाता है। वहीं अगर इतिहासकारों का माने तो होली आर्यों में भी प्रचलित थी। इस पर्व का वर्णन हिन्दू पुराणों में मिलता है। वैसे यह त्योहार पूर्वी भारत के राज्यों में अधिकतर मनाया जाता हैं। होली का यह त्यौहार बंसत पंचमी से शुरू होता है। जिस दिन पहली बार गुलाल उढ़ाया जाता है। राग, रंग, संगीत का यह त्यौहार अपने आप में ही बहुत लोकप्रिय है। जिस तरह दीपावली हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय है, ठीक उसी तरह होली भी पूरे भारत में लोकप्रिय है। खेतों की सरसों और बागों के फूलों की खूशबू इस त्यौहार को और भी रोचक बनाती है। इस त्यौहार में लोग संकोच भूल, नई उमंग भरते हैं। रंग-राग का यह त्यौहार वंसत का संदेशवाहक भी माना जाता है। वैसे मुख्य रूप से होली पांच से दो दिन तक मनायी जाती है। जिसमें पहले दिन होलिका जलाई जाती है। जिसे होली दहन भी कहते है। वहीं अगर अंतिम दिन की बात करे, तो इस दिन को धुरड़ड़ी, धूलिवंदन नामों से भी जाना जाता हैं। होली में रंग, अबीर-गुलाल, इत्यादि लगाया जाता हैं। वहीं ढोल बजाकर होली गीत गाए जाते हैं। जिसके बाद लोग मस्ती में झूमते- नाचते हैं। होली सभी धर्मों में मनाया जाने वाला एक मात्र पवित्र पर्व हैं। इस पर्व में लोग अपने घरों में कई प्रकार के पकवान बनाते हैं। जिसके बाद मिल-जुल कर एक साथ कई लोग बैठकर खाते हैं। आपस में मौज- मस्ती- मजाक के लिए भी होली जानी जाती है। वैसे यह त्यौहार हर राज्य में अलग अलग तौर तरीकों से मनाया जाता है। अगर हम देवभूमि की होलीयों की बात करें, तो यहां अपनी बोली में होलिका गीत गाए जाते है। उत्तराखंड में बंसत पंचमी से होलिका गीत गाने शुरू हो जाते है। जब तक होली चलती रहती है, तब तक यहां रोज होलिका गीत गाए जाते है। कभी मंदिरों में तो कभी घरों में गाए जाते है। उत्तराखंड की होली अपने आप में बहुत कुछ कहती, चाहे यहां की होलियों में लोकगीतों मिश्रण ही क्यों ना हो। वो सब कुछ यहां की संस्कृति में चार चांद लगाती हैं। लगभग एक महिना पूरा चलता है, यहां होली का रंग। लोगों में काफी उत्साह देखने को मिलता हैं। चाहे होलिका गीत गाने कि, बात ही क्यों ना हो। होली उत्तराखंडवासियों  के लिए एक नया रंग लाती है। लेकिन अब यह रंग धीरे- धीरे खोता जा रहा है। वैसे होली का जिक्र मुस्लिम पर्यटक "अलबरूनी" ने भी अपनी यात्रा में किया है। वहीं मुगल शासन में भी होली का विस्तार वर्णन मिलता है। आज होली हिंदू ही नहीं पूरे समाज के लोग मनाते है। जो ये दर्शाता है कि आज होली हर समाज के लोग माना रहे है। जो पूरे विश्व के लिए एक अच्छा संदेश है। जिससे हर समाज के लोग आपस में मिलकर हर पर्व को महात्सव के रूप में मना रहे हैं। जो पूरे विश्व समाज के लिए और मानवता के लिए एक सीख है। आखिर क्यों ना हमें हर धर्म के पर्व को एक समान दर्जा देना चाहिए।

                                           संपादक- दीपक कोहली   

12 March 2017

अलग - सोच, अलग - चाह:- नंदिता


जी हाँ.. मैं बात कर रहा हूँ... उस बेटी की जो अपनी सोच और अपने इरादों के लिए पहचानी जाती है। वो कोई और नहीं उत्तराखंड की नंदिता है। नंदिता पोखरियाल उत्तराखंड की कोटद्वार की रहने वाली है। जो पेशे से एक डॉक्टर है। अपने काम के प्रति नंदिता बहुत ही निष्कपट रहती है। जो ठान लेती है, उसे नंदिता करके ही मानती है। उत्तराखंड की बेटी होने के नाते नंदिता कहती है। जब वो उत्तराखंड की बेटियों के बारे में सोचती है तो उन्हें लगता है, कि आज भी हमारे उत्तराखंड की बेटियां कॉफी पीछे हैं। और जातिवाद, रंगवाद, धर्मवाद हमारे देश को तोड़ने में लगा है। नंदिता एक एनजीओ के माध्यम से उन लोगों की सहायता करना चाहती हैं, जो मानसिक रूप से पूर्ण नहीं है या अपूर्ण हो गए। नंदिता उनके लिए काम करना चाहती है, जो सड़को पर आंवारा घूमते है। या कह सकते है, जो मानसिक कमजोरी के कारण घर छोड़ कर भाग आए हैं। नंदिता ने हाल ही में एक एनजीओ बनाने में लगी है। जो एनजीओ उन लोगों के लिए काम करेगी। जो मानसिक रूप से कमजोर या मजबूरन कमजोर बने है। जब हमारी पत्रिका ने नंदिता से जानने की कोशिश की, कि उन्हें ये विचार कहां से आया और वो ऐसा क्यों कर रही है...? तो नंदिता का जवाब था कि हमारे देश में सबसे ज्यादा मानसिक रूप से कमजोर और पीड़ित लोग है। जिसके लिए नंदिता ने सोच की मैं इसके लिए काम करू। जब हमने नंदिता से ये पूछा की कहीं आप पैसा कमाने और अपने नाम  के लिए तो ऐसा तो नहीं कर रही है। तो नंदिता का जवाब था, कि मुझे उन लोगों की सहायता करनी है। देश के उन पीड़ितों को कम करना हैं। जो मानसिक रूप से ठीक नहीं हैं। क्योंकि उन लोगों के लिए सरकार भी कोई कदम नहीं उठाती है। जिसके चलते वे लोग आत्महत्या जैसे कदम उठाते है। जब मैंने नंदिता से ये पूछा की आप इतना बड़ा कदम कैसे उठाएगी। तो नंदिता ने मुझे अपनी पूरी सोच (प्लानिंग) बताई। तब नंदिता कहती है, कि वो एक रूपये हर हिंदुस्तानी से मांगेगी। उन लोगों के लिए, जिन लोगों के लिए नंदिता काम करना चाहती है। नंदिता की पूरी प्लानिंग सुनकर मैंने भी नंदिता को इस काम के लिए शुभकामनाएं दी। अगर आपको लगता है, यह कदम हमारे समाज के उन लोगों के लिए अच्छा है। तो आप भी इस मिशन में आपना पूरा सहयोग करें।।


                                                       संपादक- दीपक कोहली         

09 March 2017

हल्द्वानी की समाजसेवी- प्रियंका



आज मैं जिस महिला की बात करूंगा या कर रहा हूं। वो कोई और नहीं एक समाजसेवी है। हल्द्वानी की रहने वाली प्रियंका गोस्वामी एक सामान्य परिवार से है। जब वो मात्र 10 साल की थी, तो उनकी माता का देहांत हो गया। जिससे प्रियंका के ऊपर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई। जिसके चलते प्रियंका एक परिपक्व नारी के रूप में आगे बढ़ी। जिससे आज प्रियंका एक समाजसेवी के रूप में काम करती नज़र आ रही है। प्रियंका अपने पिता "दीवान नाथ गोस्वामी" को अपना आर्दश मानती है। जब हमने प्रियंका से पूछा की आपने समाजसेवा करने की प्ररेणा कहां से ली। तो प्रियंका का जबाव मिला कि उन्होंने अपने पिता से यह प्ररेणा ली। जो बचपन में उनके पिता किया करते थे। शादी जल्दी होने के कारण प्रियंका और जिम्मेदार बन गई। वैसे प्रियंका गरीब बच्चों की सहायता और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। जैसे गरीब बच्चों की फीस भरना और उनके लिए कॉपी, पैन आदि खरीदने में सहायता करना। प्रियंका इसे आपना धर्म मानती है। इतना ही नहीं प्रियंका स्वयं सहायता समूह के लिए भी काम करती है। तीन साल पहले प्रियंका ने अपने नेत्र भी दान करवा दिया है। जिसके लिए प्रियंका को हल्द्वानी में सम्मानित भी किया गया। प्रियंका पिछले 12 सालों से समाजसेवा कर रही है। जिसमें प्रियंका उन महिलाओं की भी काउंसिलिंग करती है। जो महिलाएं घरेलू हिंसा और उत्पीड़न का शिकार होती है। प्रियंका पखुड़िया नाम की एनजीओ के जरिए काम करती है। जिसमें बेसहारे बच्चों और दिव्यागों बच्चों की मदद किया करती है। 
प्रियंका उन महिलाओं के लिए एक उदाहरण है। जो कुछ करना चाहती हैं। वैसे प्रियंका जैसी महिलाएं कम ही होती है, जो दूसरों के लिए जीते हैं। प्रियंका हमारे समाज के लिए एक प्ररेणा की स्रोत है, जिससे हमारे समाज को कुछ सीखने की जरूरत है। उन युवा-युवतियों को जो देश- राज्य के भविष्य हैं। समाज को एक नई उमंग देना ही प्रियंका का सपना है।।

                            संपादक- दीपक कोहली    

06 March 2017

सीमा की समाजसेवा-



मन की सीमा ही समाज की सेवा है...।
जी हां... देहरादून की सीमा जावेद अपनी समाजसेवी के लिए पूरे देहरादून में जानी जाती है। जो पंजाब के "संत कृष्ण एकेडमी" की देहरादून शाखा के लिए काम करती है। आपको बता दूं, सीमा जावेद एक समाजसेवी के रूप में काम करती है। जैसे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बेटियों की शादी करना, घरेलू हिंसा के शिकार महिलाओं की मदद करना आदि। वैसे सीमा साल 2007 से समाजसेवा कर रही है। जो देहरादून की मुस्लीम बस्ती कारगी की रहने वाली है। सीमा जावेद एक सामान्य मुस्लीम परिवार से संबंध रखती है। जिनके पति फर्नीचर की दुकान चलाते है। सीमा एक पढ़ी - लिखी महिला है , जो उन महिलाओं के लिए काम करती है। जिनकी परिवारिक कहल और मारपीट के चलते रिश्ते टूट जाते हैं। उनकी सहायता करना सीमा अपना दायित्व समझती है। वहीं बिगड़े रिश्ते मनाना और परिवारिक कहल सुलझाना ही सीमा अपना धर्म समझती है। सीमा जावेद ने अबतक कई बिगड़े रिश्ते  बनाये है, जो आज अपनी जिंदगी खुशी से जी रहे है। वैसे सीमा एक मुस्लीम महिला होने के नाते खुलकर अपनी जिंदगी जीने में विश्वास रखती है।  जब हमने उनसे जानने की कोशिश की, कि तीन तालक और नमाज़ पर आप क्या कहेगी, तो सीमा जी का साफ कहना था। जब मेरा मन करता है, तब मैं नमाज पढ़ती हूं। सीमा जावेद, कुरान के बारे में कहती है, कि कुरान में कहीं भी तीन तलाक जायज नहीं बताया गया है। अगर तालक एक तरफा हो। ना ही कुरान हत्या के समर्थन में है और ना ही हमारे देश में कुरान सही तरीके से स्वीकार होता है।  सीमा जावेद एक समाज सेवी ही नहीं, बल्कि बीजेपी पार्टी की नेता भी है। सीमा का मानना है, अगर आपको कुछ समाजसेवा करनी हो, तो आपको किसी ना  किसी पार्टी से जुड़ना ही होगा। यह कहना है सीमा जावेद का..।।
सीमा ने समाजसेवा कर राजनीति में अपना कदम रखा। जो इस समय धर्मपुर की राजनीति से बीजेपी नेता है। कानपुर की रहने वाली बेटी सीमा एक सामान्य परिवार से संबंध रखती थी। लेकिन शादी हुई, एक आर्थिक कमजोर परिवार, देहरादून की गलियों में..। हिंदी से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री ली है, सीमा जावेद ने...।।
एक मुस्लीम महिला होने के नाते सीमा कहती है, कि मुस्लीम समाज में  महिलाओं की स्थिति काफी दैनीय हैं। जो हमारे समाज के लिए एक चिंता की विषय है। वहीं सीमा का ये भी कहना था, कि मुस्लीम धर्मगुरू कुरान को अपनी पकड़ या अपने नियम जोड़ रहे है। जो साफ तौर पर गलत है। सीमा मानती है, उनका धन-दौलत ही लोगों की सहायता करनी हैं और राजनीति में आरोप - प्रतिरोप, विरोध स्वभाविक हैं। वहीं सीमा जावेद कहती है सरकार किसी की भी हो, लेकिन मिलकर काम करना चाहिए। जिससे समाज का भला हो सके..।

                                                            संपादक- दीपक कोहली.

04 March 2017

देवभूमि की बेटियों ने किया देश का नाम रोशन-


हमारा उत्तराखंड जितना सुंदर हैं, उतने ही यहां की बेटियां भी, जो आज पूरे देश में अपना लौहा मनवा रहे हैं। चाहे समुद्र हो या फिर सामाजिक कार्य हो, या खेल का मैदान हो, या फिर पढ़ाई का क्षेत्र, हर जगह हमारी बेटियों ने देश का नाम रोशन किया हैं। 
जी हां.. आज मैं आपको उत्तराखंड के उन बेटियों के बारे में बताने जा रहा हूं, जिन्होंने उत्तराखंड का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का मान भी बढ़ाया हैं।

वर्तिका जोशी-  जो अभी नौसेना लेफ्टिनेंट कंमाडर पद पर सेवारत हैं। वैसे वर्तिका जोशी उत्तराखंड की ध्रुमाकोट " स्यालखेत "  गांव की रहने वाली है। जिनकी प्राथमिक शिक्षा श्रीनगर गढ़वाल से हुई। जिसके बाद आईआईटी दिल्ली से वर्तिका ने पढ़ाई की। वर्तिका जोशी जुलाई में होने वाली नौसेना समुद्री अभियान " सागर परिक्रमा " की कमान संभलेगी। जो ऐसा पहली बार होगा। जब कोई उत्तराखंड की बेटी इसकी कमान संभलेगी। जो हमारे लिए एक गौरवपूर्ण छण होगा। 

अंजू रावत नेगी- अंजू पेशे से एक वकील है। जो इस समय गुरूग्राम (गुड़गाव) में रहती है। अंजू अभी गुरूग्राम के कोर्ट में प्रैक्टिस करती है। जो रेप पीड़ित और महिलाओं के मुकदमे मुक्त में लड़ती है। अभी तक अंजू ने 50 से ज्यादा केस फ्री में लड़े हैं और भविष्य में भी निशुल्क लड़ने का वादा किया है। वैसे अंजू उत्तराखंड की बेटी है। जिन्होंने पौड़ी विवि से एलएलबी और मेरठ से एलएलडी की है। जो एक अच्छी वक्ता भी रही है। 

एकता बिष्ट- एकता बिष्ट जो एक भारतीय महिला क्रिकेटर हैं। जिन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट में अपनी एक नई पहचान बनाई है। एकता बिष्ट उत्तराखंड की अल्मोड़ा जिले की है। जहां बेटियां क्रिकेट को जानती तक नहीं हैं, फिर भी एकता ने भारत की महिला क्रिकेट टीम में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। एकता ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 50 से ज्यादा विकेट लिए है। एकता इस समय आईसीसी महिला क्रिकेट की आठवें नंबर की गेंदबाज है। 

शिखा भंडारी- शिखा ने राज्य न्यायिक सेवा सिविल जज परीक्षा में 5वां स्थान प्राप्त किया। वैसे शिखा उत्तरकाशी, कालेश्वर मार्ग- जोशियाड़ की निवासी है। उत्तरकाशी एमडीएस स्कूल से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। जिसके बाद 12वीं और एलएलबी की शिक्षा देहरादून से प्राप्त की। वहीं बाद में एलएलएम और सीएलएटी करने के लिए शिखा रायपुर, छत्तीसगढ़ चली गई। शिखा के पापा सिंचाई विभाग, तो माता अध्यापिका हैं। 

सुनीता, अंजू, रेनू, आकांक्षा, रीना- ये उत्तराखंड की वो लड़कियां है, जो वीवीआईपी शताब्दी ट्रेन की संचालन कर रही है। जो ट्रेन दिल्ली से काठगोदाम जाती है। शताब्दी देश की पहली ऐसी ट्रेन है, जिसका संचालन बेटियां कर रही है। जो हमारे लिए गर्व की बात है। शताब्दी कुमांऊ की पहली ट्रेन है जो  उत्तराखंड में सन् 1882 में चली थी। 

उत्तराखंड की इन बेटियों को मेरा सलाम। जो हमारे पहाड़ के बेटियों के लिए मिसाल बन रहे हैं। मैं अपने इस लेख के माध्यम से उत्तराखंड की बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता हूं। आखिर क्यों हमारी पहाड़ की बेटियां पीछे रह जाते हैं। उन्हें सोचना होगा, कि हम भी किसी से कम नहीं।।

                             संपादक- दीपक कोहली 

03 March 2017

-अंतिम यात्रा-


मैं नींद में था, 
मुझे सजाया जा रहा था।
बड़े ही प्यार से मुझे,
नहलाया जा रहा था। 

                              ना जाने वह कौन-सा,
                              अजब खेल था।
                              जब मुझे बच्चों की तरह,
                              उठाया जा रहा था।।

पास थे मेरे अपने सब,
फिर भी मैं अपनों को,
बुलाया जा रहा था।।

                                जो मुझे कभी प्यार, 
                                 नहीं करते थे।
                                आज वो भी मुझे
                                मोहब्बत कर रहे थे।।

मैं..हैरान था।
मालूम नहीं क्यों..?
हर कोई मुझे सोते हुए देख,
रोया जा रहा था।।

                                मुझे जगाया जा रहा था। 
                                लेकिन मैं.. मजबूर था,
                                जो उठ नहीं पाया।।

कांप उठी मेरी रूह,
जब मैंने वो मंजर देखा।
जहां मुझे हमेशा के लिए,
सुलाया जा रहा था।।

                                मोहब्बत की इंतहा,
                                जिन दिलों में थी।
                                आज वहीं दिलों के,
                                 हाथों मैं जलाया
                                  जा रहा था।।


                       कवि- दीपक कोहली &
                      (सहायक- श्यामसुंदर)

राम की रामायण-



रामायण हिन्दूओं का एक महाकाव्य है। जो घर-घर में लोक प्रसिद्ध है। रामायण की रचना वाल्मीकि द्वारा की गई थी। आपको बता दूं कि रामायण में 24000 श्लोक और 4,80,002 शब्द हैं। रामायण त्रेतायुग की रचना मानी जाती है। रामायण रघुवंशी भगवान राम की कथा है। जिसमें सात अध्याय हैं। जिन्हें काण्ड नाम दिया गया है। भारतीय शास्त्रों के अनुसार रामायण त्रेतायुग में रची गई थी। वहीं शास्त्रों के अनुसार समय को भी चार भागों में बांटा गया है। जो इस प्रकार है-
1) सतयुग-17,2800
2) त्रेतायुग-12,9600
3) द्वापरयुग-8,64000
4) कलयुग-4,32000

वहीं महान लेखक और कवि तुलसादास के अनुसार सर्वप्रथम "रामायण " भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी। भगवान शंकर के मुख से निकली यह पवित्र कथा ही "अध्यात्म रामायण" के नाम से प्रख्यात है। वहीं कुछ शास्त्रों के अनुसार ये भी कहा जाता है, कि जब भगवान शंकर, माता पार्वती को यह कथा सुना रहे थे। तो उस समय एक कौवा ने अपने घोंसले में बैठ कर यह कथा सुनी थी। जिसके बाद उस पक्षी का पुर्नजन्म हुआ, तो वह काकभुशूण्डि जी के रूप में आकर यह कथा गरूड़ जी को सुनाई थी। 
वहीं ऋषि वाल्मीकि ने ज्ञानप्राप्ति के बाद इस कथा को पुन: श्लोकबद्ध किया। जिसे आज भी वाल्मीकि रामायण के रूप में जाता है। जो पूरे विश्व में लोकप्रसिद्ध हैं। वैसे ये भी कहा जाता है, कि रामायण सर्वप्रथम वाल्मीकि जी ने ही लिखी थी। वहीं अगर हम हिंदू सभ्यताओं की बात करें , तो भगवान राम, भगवान विष्णु के एक अवतार थे। जो इस अवतार में मानव जाति को आर्दश जीवन का मार्गदर्शन देने आए थे। आज भगवान राम को पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूम-धाम से दिपावली के मौके पर पूजा जाता हैं। भगवान राम, अयोध्या राजा दशरथ के सबसे पुत्र थे, जिनका विवाह मिथिला राजा जनक पुत्री, माता सीता से हुआ। 
रामायण में सात काण्ड है- जो इस प्रकार हैं-
1) बालकाण्ड                       5) सुरज काण्ड
2) अयोध्या काण्ड                6) लण्काकाण्ड
3) किकिन्धा काण्ड              7) उत्तरकाण्ड
4) अरण्य काण्ड    

देश में विदेशियों का राज सत्ता में आने के बाद भारतीय लोग अपना उचित ज्ञान और विदेशी सत्ता के कारण अपनी भाषा भूलने लगें। जिसके चलते महाज्ञानी तुलसीदास ने देशी भाषा में लिपिबद्ध "राम चरित्रमानस" की रचना की। जिसे तुलसी रामायण भी कहा जाता है। रामायण एक सच्ची कथा और भगवानों से जुड़ी घटना है। जिसे पूरा हिंदू समाज पूर्ण रूप से मानता है। या पूजते हैं। 


                            लेखक- दीपक कोहली 

02 March 2017

देवभूमि का लाल त्रिवेंद्र-



अगर देवभूमि की बाती हो और त्रिवेंद्र का नाम ना आए, ऐसा हो नहीं सकता। जी हां.. मैं बात कर रहा हूं, उस शख्स की जिसने देवभूमि की सेवा के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। वो कोई और नहीं बीजेपी नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत है। जो डोईवाला सीट से इस बार बीजेपी के उम्मीदवार है। वैसे त्रिवेंद्र एक सामान्य परिवार से संबंध रखते है। जिन्होंने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ(आरएसएस) के माध्यम से राजनीति में कदम रखा। राजनीति में कदम रखने से पहले त्रिवेंद्र उत्तराखंड आरएसएस संघ प्रचारक थे। 1981 में त्रिवेंद्र संघ प्रचारक बने। जिसके बाद 1985 में त्रिवेंद्र देहरादून महानगर प्रचारक बनें। सन् 1993 में रावत बीजेपी से संगठन मंत्री रहे। उत्तराखंड बनने के बाद सन् 2002 में पहले विधान चुनाव में बीजेपी ने इन्हें डोईवाला सीट से उम्मीदवार बनाया। जिसमें त्रिवेंद्र की जीत हुई। जिससे त्रिवेंद्र का कद और बढ़ गया। बाकि बचा काम 2007 से 12 तक कैबिनेट मंत्री रहकर त्रिवेंद्र ने पूरा की लिया। 2013 में त्रिवेंद्र  बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव रहे। साल 2014 के लोकसभा चुनावों में त्रिवेंद्र को बीजेपी राष्ट्र अध्यक्ष अमित शाह के साथ उत्तरप्रदेश का सह प्रभारी बनाया गया। वर्तमान में  त्रिवेंद्र बीजेपी नमामि गंगे समिति योजना के राष्ट्रीय संयोजक है। वहीं एक बार फिर त्रिवेंद्र को बीजेपी ने उत्तराखंड के डोईवाला विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाकर कुछ संकेत जरूर दिए हैं। जहां एक ओर त्रिवेंद्र के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार मान रहे है। वैसे त्रिवेंद्र का राजनीति जीवन बेहद रोचक रहा है। चाहे केंद्र हो या फिर उत्तराखंड की राजनीति हर जहां त्रिवेंद्र छाये रहते है। जहां विधानसभा चुनावों में त्रिवेंद्र मोदी के साथ उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लेकर उत्तराखंड में साथ नजर आए। जिससे यह साफ हो जाता है, कि इस बार का विधानसभा चुनाव त्रिवेंद्र के लिए काफी अहम होगा। जहां एक ओर बीजेपी नेतृत्व उत्तराखंड में सीएम उम्मीदवार को लेकर उलझी नजर आ रही है। क्योंकि उत्तराखंड मेंं बीजेपी के पास कई सीएम उम्मीदवार नजर आ रहे हैं। जिसमें कांग्रेस के बागी नेता यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज, तो वहीं बीजेपी के अपने तीन पूर्व सीएम बैठे हैं। वैसे देखा जाए जितने भी बीजेपी के सीएम उम्मीदवार है, वो इस बार कुछ खास रंग में नजर नहीं आ रहे हैं। क्योंकि उन्हें उत्तराखंड की जनता भलीभांति जानती है। वैसे बीजेपी भी चाहेगी, कि एक साफ-सुथरे चेहरे को सीएम बनाया जाए। जिसमें त्रिवेंद्र फीट बैठते नज़र आ रहे है। जो पौड़ी के खैरासैंण गांव के मूलनिवासी हैं। जिनके पिता एक सैनिक और माता एक गृहणी थी। रावत की 12वी. तक की पढ़ाई रा. इ.का. एकेश्वर में हुई। जिसके बाद रावत ने श्रीनगर गढ़वाल से एमए से स्नातकोत्तर की डिग्री ली और बाद में पत्रकारिता से डिप्लोमा लिया। वैसे रावत पढ़ाई में अव्वल दर्जे के थे। त्रिवेंद्र रावत के आठ भाई व एक बहन है। जिसमें से तीन भाई व बहन का स्वर्गवास हो गया है। त्रिवेंद्र रावत की धर्मपत्नी सुनीत रावत एक अध्यापिका है। जिनके दो बेटियां भी है। जो इस समय स्नातक की पढ़ाई ग्रहण कर रही हैं। वैसे रावत जी शांत स्वभाव और धार्मिक विचारों वाले एक महान व्यक्ति है। जिन्होंने देवभूमि को अपना पूरा जीवन दिया है। हम आशा करते है कि रावत जी ही देवभूवि के मुख्यमंत्री बनें।। 

                          संपादक- दीपक कोहली      

01 March 2017

*मेरे शब्द*








शब्द ही हमारी जीत है, 

शब्द ही हमारी हार है।।

      
                               शब्द ही हमारी पहचान है, 
                               शब्द ही हमारी महानता है।।

शब्द ही हमारा प्यार है, 
शब्द ही हमारा प्रेम है।।

                              
                                शब्द ही हमारी हंसी है,
                                शब्द ही हमारे आंसू है।।

शब्द ही हमारी सीख है,
शब्द ही हमारे बोल है।।

                                  
                                 शब्द ही हम है,
                                 शब्द ही ये जगत है।।

               कवि- दीपक कोहली


जानिए क्या है 'ऑस्कर'



फिल्मों की दुनिया में सबसे बड़े पुरस्कारों में से एक ऑस्कर है। जो पहली बार सन् 16 मई 1929 दिया गया। ऑस्कर को अकादमी पुरस्कार भी कहां जाता है। जो फिल्मी दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान है। जिसे अमेरिकन अकादमी अॉफ मोशन पिक्टर आर्ट्स एंड सांइसेस द्वारा फिल्म जगत के उत्कृष्ट सितारों को पहचान देने के लिए प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार औपचारिक समारोह के जरिए प्रदान किया जाता है। विश्व का सबसे लोकप्रिय पुरस्कारों में एक है, यह पुरस्कार समारोह, जो 200 से ज्यादा देशों में लाइव प्रसारित होता है। यह पुरस्कार मीडिया जगत का सबसे पुराना पुरस्कार है। वहीं इसके समकक्ष संगीत के लिए " ग्रेमी पुरस्कार " और टेलिविजन के लिए " एमी पुरस्कार " तो वहीं थिएटर कलाकरों के लिए " टोनी पुरस्कार " भी अकादमी से आधारित है।

सन् 16 मई 1929 को पहला अकादमी पुरस्कार समारोह आयोजित किया गया। जो हॉलीवुड के होटल रुजवेल्ट में आयोजित था। जिसमें पहला पुरस्कार अभिनेता "एमिल जेनिंग्स" को "द् लास्ट कमांज और द् वै अॉफ अॉल फ्लैस" मूवी के लिए दिया गया। इसलिए पहला ऑस्कर पुरस्कार विजेता एमिल जेनिंग्स बने। वहींं सन् 2010 में 82वां ऑस्कर समारोह आयोजित हुआ। जिसमें 1825 पुरस्कार के लिए 2789 ऑस्कर प्रदान किए गए, और कुल 302 प्रतियोगी को दिया गया। अभी तक के इतिहास में " ब्यू गैस्टे " ही एक मात्र ऐसी फिल्म है, जिसके चार कलाकारों को अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया हैं। अॉस्कर प्रतिमा एक अकदमी पुरस्कार है। जो सात प्रकार से प्रदान की जाती है। जिसे अकेदमी अवार्ड अॉफ मेरिट भी कहां जाता है। वैसे इसका निर्माण काले धातु के आधार पर सोने की परत चढ़े हुए ब्रिटेनियम से किया जाता है। जिसकी लंबाई 3.5 इंच (34 cm) और भार 3.85 किलोग्राम होता है। जिसकी आकृति एक योद्धा की आर्टडेको में बनाई जाती है। 

89वें ऑस्कर- 2017


इस साल का ऑस्कर 26 फरवरी 2017 को अमेरिका के लॉस एंजिल्स, कैलिफोनिया के डॉल्बी थियटर में आयोजित किया गया। जिसमें 24 श्रेणियों में अकादमी पुरस्कार प्रस्तुत किया गया। इस पुरस्कार को निर्माता माइकल डी लुका और जेनिफर टो, ग्लेन डेइस द्वारा निर्देशित किया गया। वहीं इसका टीबी प्रसारण एबीसी द्वारा किया गया। जिसे हास्य अभिनेता जिमी किमेल ने संचालित किया। इस समारोह में एक रोचक तथ्य देखने को मिला, जब गलत घोषणा के चलते सर्वश्रेष्ठ फिल्म का अवार्ड "मूनलाइट" की जगह "ला ला लैंड" को दे दिया गया। जिसे बाद में फिल्म "मूनलाइट" को दिया गया।

 जिसके निर्देशक "बैरी जेनकिंस" है। वहीं  फिल्म "ला ला लैंड" के निर्देशक "डेमियन शैजेल" को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिया गया। जहां एक ओर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री " एमा स्टोन " और अभिनेता "कैसी एफ्लेक" रहे। तो वहीं विदेशी श्रेणी में ईरान के फिल्म निर्माता असगर फरहदी को "द् सेल्समैन" के लिए अॉस्कर दिया गया। जो उनका दूसरा ऑस्कर है। इस साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म "मूनलाइट" रही, तो वहीं सबसे ज्यादा छ: पुरस्कार "ला ला लैंड" फिल्म को मिलें। वहीं भारत के स्टार देव पटेल को भी इस पुरस्कार से वंछित रहना पड़ा। जिन्हें टॉप10 अभिनेताओं की सूची में जगह मिली। 


                              संपादक- दीपक कोहली