अहसासों में छपी हुई मैं जयदीप पत्रिका हूं ,
अनगिनत कोष और भाव छिपाए हुए ,
कुछ शब्दों को हथियार बनाए हुए ,
निडर और निष्पक्ष होकर आती हूं ,
कभी किसी के हृदय का हाल बताती हूं ,
तो कभी किसी की पहचान बनाती हूं ,
मैं ऐसी पत्रिका हूं , मैं जयदीप पत्रिका हूं ।
जात पात पर करती हुई निरंतर गहरा प्रहार ,
थोड़े ही शब्दों में करती हूं समावेश सारा संसार ,
उजव्वल अपनी छाप बनाए ,नितदिन निखरती हूं ,
नारी को देकर सम्मान ,सबके मन में बसती हूं ,
हां मैं पत्रिका हूं , मैं जयदीप पत्रिका हूं ।
काव्य हो या कहानी , हर रूप में भाती हूं ,
ना जाने कितने शब्दों को मैं रोज गुनगुनाती हूं ,
दीपक की भांति हर रोज निखरती हूं
खुशी की तरह चेहरों पर मैं हर क्षण बिखरती हूं ,
मैं पत्रिका हूं , मैं जयदीप पत्रिका हूं ।
- मंजू सागर
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