साहित्य चक्र

30 December 2022

कविताः ग़लत है न ?




अच्छी हो या बुरी ?
सही हो या ग़लत ?
ज़िन्दगी कैसी भी हो ?
हिसाब ग़लत है I
दो अधूरे इंसान मिलकर
एक मुक़्क़मल इंसान नहीं बनते,
दो अधूरे रास्ते जुड़कर
किसी मंज़िल से नहीं मिलते,
ये हिसाब ज़िन्दगी का है
और यहाँ नियम अलग हैं,
एक बार बढ़कर कोई घट नहीं सकता
लेकिन वो बड़ा हो जाए
ऐसा भी ज़रूरी नहीं,
यहाँ एक, एक के बराबर नहीं,
यहाँ एक, एक से जुदा है
जैसे आंकड़े,
आईने में अपनी सूरत देखने पर
उलट जाते हैं
ख़ुद ही की नज़र में
और ख़ुद ही हँसते हैं
एक-दूसरे पर,
कभी दो संख्याएं ऐसे मिलीं 
कि अनन्त हो गईं
और कभी ऐसे कि सिफ़र,
ये ज़िन्दगी का हिसाब है
और ये हिसाब ग़लत है...ग़लत,
डर है इम्तिहान से
क्योंकि नतीज़ा क्या होगा
सबको पता है...,
क्योंकि हारते हुए भी
कोई हारना नहीं चाहता
ग़लत है न ?


                                 - गोपाल मोहन मिश्र



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