नहीं कुछ खास ये एक अदना सा नारी है,
तेरी नज़र में बस यही औकात हमारी है।
कहता है मुझे इज्ज़त के लायक नहीं तू ,
मगर सोच मेरी इज़्ज़त तूने ही तो उतारी है,।
तुझपे करके भरोसा खुद को किया अर्पण तुझे,
तेरे ही नापाक हाथों से हुई रूसवाई हमारी है,।
ग़र मिट जाएगा इस जहां से नामो-निशां मेरा,
फिर क्या भला रह जाएगी औकात तुम्हारी है,।
बिन मेरे अकेला तू कभी जहां बसा ना पाएगा,
रखना याद मेरे ही दम से चलती सृष्टि सारी है।
हां मानती हूं, तुझ बिन मेरा कोई वजूद नहीं,
मगर बिन मेरे भी तो ना होगी गुज़र तुम्हारी है।
जान अबला मारा खंजर सदा सीने में मेरे तुमने,
तेरा सीना भेदने की अब आई बारी हमारी है।
कच्ची मिट्टी सी मैं हर बार रौंदा किया तूने मुझे,
तप कर अब ये मिट्टी बनी पत्थर की चिंगारी है।
मत समझ अबला नेस्तनाबूद कर सकती हूं तुझे,
सुन कान खोलकर कहती ये ललकार हमारी है।
- प्रेम बजाज
No comments:
Post a Comment