साहित्य चक्र

28 July 2019

आऊंगी कैलाश की ओर


 शिव-तत्व

त्याग कर जगत का उत्क्रोश
अग्रसर उत्क्रांति की ओर
उच्चारण करके ॐ का
आऊंगी कैलाश की ओर
त्याग कर माया का जाल।




टांके उन्मूलित करके
ब्रह्मांड के
बीनूंगी अपना पटवस्त्र।
तुम्हारे शीश से लेकर
उज्ज्वल अर्द्ध चंद्र
अलंकृत करूंगी
सघन केशपाश।

निज कलेवर पर
अंगीकृत करूंगी
भस्मावशेष श्मशान।

भुजंग से लेकर
विषाक्त कालकूट
करूंगी विषपान,
यूं संपूर्ण होगा
मेरा दिव्य श्रृंगार।

तुम्हारे डमरू पर
करके आघात
रहूंगी लास्य में रत
लहराएगी तुम्हारी
नीलवर्ण देह
मेरे अनहद नाद पर।

देखोगे हे विश्वनाथ
मुझे तुम आकुलता से
जब मैं दिखाऊंगी तुमको
तुम्हारी ही भंगिमा
दिव्य संचालन से
बन जाऊंगी अंततः
दिव्यांगना।

अवलोकन करूंगी
हर उस 
महा विद्या का
इंगित करेंगी जिनकी ओर
तुम्हारी अंगुलियां
और फिर
निर्हरण करके
अपने तन का
शिवतत्व से मिलाऊंगी
मैं शिव बन जाऊंगी।

                                                    © अनुजीत इकबाल




अजय प्रसाद के अपने विचार-


भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता 
रहम दिलों में भी जरा नहीं होता ।



बेहद उन्मादि खौफनाक इरादों पे 
इंसानियत का पहरा नहीं होता ।



बस हिंसक बेकाबू सोंच होती है 
रिश्ता मज़हब से गहरा नहीं होता ।



हादसे दर हादसे होते रहे 
हम बस आश्वासन ढोते रहे ।

मुआवजे और राहत के बाद 
सरकारी ओहदेदार सोते रहे।


न मसीहा,न पैगम्बर, न कोई अवतार है 
कितना बदनसीब आजकल ये संसार है ।

भटके हुए हैं लोग तरक्की के जंगलों में 
ईमानदारों पे पतझड ओ भ्रष्टों पे बहार है ।

लाश इंसानियत की हम इन्सान ढो रहे हैं 
देख करतूतें हमारी अब शैतान रो रहे हैं ।


खुद से ही आज लड़ रहा आदमी 
सपनों के ढेर पर सड़ रहा आदमी ।

खुदगर्ज़ी हो गई हावी इस कदर है 
खुद की नजरों मे गड़ रहा आदमी।


                                                             -अजय प्रसाद 




नशीली पदार्थो या शराब का सेवन

खुशी हो या गम नशा का सेवन क्यों ?
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पर्व-त्योहारों या गम को दूर करने के लिए अथवा विभिन्न सामाजिक पार्टीयों में विशेषकर फब पार्टीयों में नशीली पदार्थो जैसे शराब सिगरेट आदि का प्रचलन बढ़ रहा है और इसे बुराई के तौर पर देखने की प्रवृत्ति प्रायः कमजोर हुई है।नतीजा, युवा वर्ग इस ओर ज्यादा आकर्षित हुए हैं जो एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए बेहद चिंतनीय है।आर्थिक और शारीरिक नुकसान के साथ-साथ घर का सामाजिक-आर्थिक तानाबाना भी बिखर जाता है निश्चिय हीं नशीली पदार्थ का   सेवन शरीर और आत्मा, दोनों को  नाश करती है।जिससे मानवता का हनन होना लाजिमी है।




     ऐसी पार्टीयों में नशा नही करने वालो की आवाज मुश्किल से सुनाई देती है। हालत यहां तक पहुंच गई है कि जो इन समारोहों में नशा की बात नहीं करते हैं उन्हें नीची निगाह से देखा जाता है और उन्हें  दूसरी अथवा नीचले या देहाती समझकर घृणित निगाह से देखा जाने लगा या विवश किया जाने लगा है।आखिर इस निजी और अच्छे आचरण को भी नशा के शौकीन लोग भावनाओं और मौलिकता को भेदभाव की बलि चढा देते  है सभी के लिए समान भावना अब भरोसेमंद नहीं रही।अब खानदान, मान- मर्यादा या बड़ो का आदर,साधु-संतो का सत्कार जैसी भावनाएँ का ह्रास लगातार चरम पर है। समाज के वरिष्ठ लोग खुल कर निराशा जाहिर करते हैं और युवाओं को समझाने की कोशिश करते है लेकिन वो भी भैंस के आगे बीन बजाने के समान है उल्टे बुजुर्ग लोग ही उपेक्षाओं के शिकार हो जाते हैं।

 
       नशीली पदार्थो या शराब का सेवन राक्षसी और तामसी प्रवृत्ति का माना जाता है प्रचीन काल में यह राक्षसों का  पेय था क्योंकि राक्षस लोग ज्यादा भोजन और उपद्रव करते थे इसलिए उन्हें मदिरा पिलाकर मता दिया जाता था ताकि वे ज्यादा सोयें और कम क्रूरता बरतें कम खायें क्योंकि उतना खाना मिलना दुर्लभ था।जिसका उदाहरण हमें रावण के भाई कुम्हकरण की कहानियों से मिलता है।कहने का तात्पर्य क्या इस तरह शराब या अन्य नशीले पदार्थ का प्रचलन हमारे युवाओ को खोखला और राक्षसी प्रवृत्ति की ओर नही ले जा रहा?क्या समाज में बढती क्रूरता नशा तो नही?ऐसे संवेदनशील मसले पर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों सामाजिक संगठनो के प्रभावी पहल की आवश्यकता आखिर इन खोखले होते मानसिकता पर कब होगा? यह तथ्य चिंतापरक है। हालांकि देश के कुछ राज्यों में इसके रोकथाम के लिए सख्त कानून बनाया गया है जिसका असर विशेषकर बिहार में देखने को मिल रहा है जहाँ शराब का चलन कुछ हद तक कन्ट्रोल में है ऐसे प्रभावी कदम की आवश्यकता शायद देश के सभी राज्यो को भी है।एक आदमी को कभी भी हटाया जा सकता है, लेकिन एक व्यवस्था  को हटाना कठिन होता है धीरे धीरे नशा का सेवन व्यवस्था में तब्दील होती जा रही है।


आज का युवा वर्ग नशा को नैतिक जिम्मेदारी समझने लगा है शराब सिगरेट तम्बाकू गुटखा जर्दा ड्रग्स गाजा भांग जितने भी नशीली वसूतुएँ है सभी के सभी जानलेवा है यह न तो कभी किसी को खुशी दे सकता है और न कभी गम बाँट सकता है।फिर ऐसे पदार्थो का इस्तेमाल क्यों?आज हम गरीबी भूखमरी कुपोषण के साथ कई ऐसी जटिल बीमारियों से लड़ रहे है रोज नई नीतियां बन रही है जबकि अरबो -खरबो रूपये रोज पानी की तरह इनसब नशीली पदार्थो के इस्तेमाल पर बहा दिए जाते है ।हालांकि इन सब चीजो के नियंत्रण के लिए कानून है नशामुक्ति केन्द्र भी है लेकिन भटके हुए युवाओ की तादाद भी कम नही जिनके रोजमर्रा के रूटीन में यह शामिल हो चुका है।कई घर और कई लोग नित ही जानलेवा रोगों के शिकार भी हो रहे है।जितने भी अस्पताल है शायद ही कोई ऐसा हो जिनमें ऐसे मरीज ना पहुँचते हो जो नशे की वजह से जिन्दगी और मौत के बीच उलझकर न रहे हो।एक ऐसा पदार्थ जो धीरे-धीरे अंदर ही अंदर खोखला कर जाता जबतक पता चलता देर हो जाती है और पूरे परिवार की गाढी कमाई के साथ जीवन को भी निगल जाती है।रह जाता है सिर्फ अफसोस।मानव के चरित्र, गुण जीवन,सुख, आर्दश,नैतिकता, व्यवहार संस्कार और सरलता का विनाशक है नशा।जितनी दूर इससे रहेगे उतना बेहतर जीवन जी सकेंगे।

                                                                          आशुतोष



मेरी मासूम भावनाएं

 भावनाएं

मेरी मासूम भावनाएं तो तुम 
पल में समझ जाया करती थी
हर बात को प्यार से समझाया करती थी
आज अचानक मेरे बड़े होने से
ऐसा क्या अनर्थ हुआ ?

आंसुओं का समंदर उमड़ पड़ा
शब्द और शक्ति दोनों बेबस हो गई
तुम्हारी भावनाएं मेरे प्रति बदल गई...

यह शब्द गूंजने लगे मेरे कानों में
तुम तो मां कुछ और ही
समझाने लग गई मुझे बातों बातों में...

बेटी जोर से मत हंस
धीरे  धीरे बोल 
हंसना जब तू अपने घर जाएगी
बोलना उससे जिसके संग बयाहेगी....

मैं समझ गई 
कुछ कहा नहीं तुमसे
क्योंकि मैं जानती हूं
मेरे शब्द कर्कश लगेंगे
और तुम्हारी भावनाओं को ठेस पहुंचाएंगे...

कुछ सपने संजोकर मैं भी चली गई
सोचा ना समझा तुम्हारी बातें बस याद कर गई
भावनाओं का समंदर उमड़ने लगा
सपनों का नया घरौंदा बसने लगा...

सोचा अब खिल खिलाऊंगी
जो गीत लबों तक आ कर रुक जाते थे
उनको फिर से गुनगुनाऊगी...
पर यह क्या ?

यहां भी वही शब्द गूंजते हैं
और मुझसे कहते हैं
तू तो पराई है
अपने घर से क्या लाई है
मां यह प्रश्न बार-बार उठता है
और मेरे मन को कसोटता है...
मेरा घर कहां ?

                                                        दीपमाला पांडेय



21 July 2019

अपने कल्पित अनुमान


उन्मादी भीड़

एक विचित्र प्रतिद्वंद्विता में
वे लोग अश्रांत उलझते रहते हैं
अपने कल्पित अनुमान के चलते
स्वयं को क्रोधांध करते रहते हैं

पूर्वजों से सीखे मनुष्यत्व के पाठ
प्रतिपल तिरस्कृत होते रहते हैं
तामसिक संकल्प गुंजित किए हुए
वे सत्व नाद क्षीण करते रहते हैं

उनके पास ना सोच है ना विचार हैं
विवेक को वे परास्त करते रहते हैं
कालिख से भी काली है उनकी स्याही
मन्त्रबिद्ध वे मृत्युयोग लिखते रहते हैं

गठिबंध कुचक्र में हिंसा को आदर्श बना
वे मिथ्या धर्मचर्या के प्रमाण देते रहते हैं
गहन उन्मत्तता में परखते कुछ नहीं
नैतिकता की सीढ़ियां उतरते रहते हैं

मृत्यु दूत भी अब निरंतर क्रीड़ारत हैं
आपस में रिले-रेस लगाते रहते हैं
हर मृत्यु के बाद का रुदन-क्रंदन
भविष्य की मृत्यु को थमाते रहते हैं

आत्म मुग्ध सी उनकी कुटिल आंखों में
हिंसक दृश्यों के अभ्युत्थान होते रहते हैं
उनके हाथों में है नायाब अस्त्र विद्या
वे जीवन के अनुबंध तोड़ते रहते हैं

आखिर कब जाकर छुएगा तथा गत के पैर
प्रतिक्षारत मृतक अपना ‘रक्त’ देखते रहते हैं।

                         © अनुजीत इकबाल



रागिनी के दोहे





01
अलकें मेरी चूमकर,उठी घटा घनघोर ।
मयुरा सा मन नाचता, ढूँढे चित का चोर ।।

02
अलक पलक मिल कर करें,साजन को बेचैन ।
उनके मन की रागिनी, नैनों का मैं चैन ।।

03
बिखरे बिखरे केश हैं,बहकी बहकी चाल ।
शरद रात्रि की भंगिमा,  लगती बड़ी कमाल ।।

04
भीगे मेरे केश जब,बदले मौसम चाल ।
शृंगारित मदमस्त हो,बादल करे धमाल ।।

05

केश राशि अनुपम गहन, औ ये तेरा रूप।
जैसे सावन की घटा, औ हो निखरी धूप।।

06
केशों की ये कालिमा, छायी गोरे गात।
जैसे पूनम चंद्र हो, बीच सुहानी रात।।

07
केश पाश मन पर पड़ा, उलझा इनमे चैन।
अब तो चेहरे से हटा, राह तके ये नैन।।
08
गंधिल केशों की महक, औ कजरारे नैन।
दोनो मिलकर लूटते, मेरे मन का चैन।।
09
कजरारी कारी घटा, है या तेरे केश। 
मन का मेरे पास अब, बचा नहीं लवलेश।।

10
कुंतल केश कमाल के, हर इक बल में पेंच।
पवन चले मंथर हिले, बरबस दिल ले खैंच ।।


                       रागिनी स्वर्णकार शर्मा 


छोटी छोटी बातें...

हार

ए मेरे मन तू क्यों
एक कोने में बैठा है
उठ विश्वास का हाथ थाम
क्यों हार के खुद से रूठा है.....

जीत भले  ही न हो 
आज मिले अगर हार 
आत्मविश्वास बनाए रखना
सहज मन से करना स्वीकार.....

लक्ष्य अपना निर्धारित कर
आगे बढ़ते जाना
चाहे कितना भी  हंसे जमाना 
तू हार से ना घबराना......

छोटी छोटी बातों से 
मेरे साथी डर ना जाना
अहम का घडा फूटता है 
सब्र का बांध बनाना....

दिल और दिमाग की
रेस कभी ना लगाना
लड़ाई अगर अपनों से है
तो थोड़ा झुक जाना ....

पर सबक जिंदगी का
यह एक सीख जाना
अपने स्वाभिमान को
कभी नहीं गिराना.....

                                       दीपमाला पांडेय


बड़ी दूर से चलकर आये

नव निर्माण 
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आसमान पर ड़ाला ड़ेरा 
गाँव-शहर सबको आ घेरा 
बड़ी दूर से चलकर आये 
जाने कहाँ-कहाँ से आये 
तरह-तरह के रुप बनाकर 
बरसाते हैं मस्त फुहार 
आ गये बादल लेके उपहार 
समीर गा रही मीठी मल्हार 
सौंधी-सौंधी खुशबू आती 
कृषक मायूसी छटती जाती 
करे प्रतीक्षा सजनी चिट्ठी की 
भूले सजन सुध मिट्टी की 
मेघ बरसते-मन तरसते 
नयनों से नित झरने झरते 
कौन सुने प्यासी पुकार 
तपती धरती करे मनुहार 
रे बादल मनभर बरसना 
गरज-गरज कर बरसना 
रह न जाये अधूरी आस 
उढाये न कोई उपहास 
तेरा अंश-अंश धरती के अंग 
धरती के यौवन में उठे तरंग 
तेरा बरसना, बरस कर जाना 
श्रृष्टि का नव निर्माण करना 

                                    - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 



कण-कण इस माटी का...


 " निकिता "

सारी दुनिया जिस में समाई 
उस निकिता को प्रणाम हैं

कण-कण इस माटी का
अनुपम और ललाम है 

इश्क मोहब्बत में तेरे खातिर 
कितना ही लहूलुहान हुआ है 

हे-निकिता !तुम्हारे खातिर
महा भीषण -महासंग्राम हुआ

भारत की पावनतम माटी 
शत-शत तुझे प्रणाम है

गंगा -सिंधु चरण पखारे
जग मे ऊंचा नाम रहे 

कश्मीर हिमालय भी तुम्हारे 
छदम सौंदर्य का परिधान है 

हे-निकिता !तुझमें समाया 
ये अक्षरश :हिंदुस्तान है

सारा जहान तुझमें पलता 
तुझसे ही सजता और सवॅरता

तुमसे ही जीवन सबका 
तुमसे ही उद्धार है

कर्म- कर्तव्य भी तुझमें 
तुझसे ही इंसान है

ऐसी निकिता तुझको हम
करते है बारंबार प्रणाम
...................................

                                                      कुमार गिरीश 



जस्बात

कौन करता है तुझको भुला रखा है
मैंने दिल की किताब में
कुछ पन्नों के बीच
आज भी उस सूखे गुलाब के रूप में
तुम्हारी यादों को सजाए रखा है....

तुम देख ना पाओगे
कितनी भी कोशिश कर लो
देखोगे तो सिर्फ और सिर्फ
उन सूखे गुलाब की पंखुड़ियों को
क्योंकि तुमने मुझे भुला रखा है.....

महसूस ना कर पाओगे उस खुशबू को
जिसे जज्बात के इत्र में भिगोकर मैंने
आज भी संभाल रखा है...

तुम्हारे जाने के बाद
जिंदगी के हर तजुर्बे से
सीखने का सिलसिला
मैंने बनाए रखा है
खामोश निगाहों में
जो सपने सजाए थे कभी
आज भी संभाल रखा है....

दर्द की कंदराओं से
बह गया विषाद लेकिन
दिल की जमीन पर
नमी बनाए रखा है...

बातें कुछ रह गई अधूरी
संग गुजारी शामें भी रह गई अधूरी
एक आस है हो जाएंगी पूरी
शायद तुम लौट आओगे मेरे पास
इस उम्मीद से मैंने
निस्वार्थ प्रेम का दिया जलाए रखा है....

अब तो सांसे भी बोझल हो गई हैं
खुद को अनजान बनाए रखा है
खुश हो जाती हूं इस बात से
 मैंने आज भी झूठी उम्मीद से
खुद को बहला रखा....


                                          दीपमाला पांडेय

15 July 2019

क्रिकेट का नया "चैंपियन"

विश्व क्रिकेट को इंग्लैंड के रूप में एक नया विजेता मिला है। जी हां..। जिस देश ने क्रिकेट का ईजाद किया, वह देश 14 जुलाई 2019 को पहली बार विश्व विजेता बना है। 


विजेता और उपविजेता दोनों टीमों को बधाई। इस बार का क्रिकेट विश्वकप फाइनल बेहद ही दिलचस्प और रोमांचक भरा रहा। पहले खेलते हुए न्यूजीलैंड 241 रन बनाए, तो वहीं इंग्लैंड भी 241 रनों पर रुक गया। जिसके बाद सुपर ओवर किया गया। सुपर ओवर भी टाई हो गया। यानि इंग्लैंड ने सुपर ओवर में 15 रन बनाए और न्यूजीलैंड भी 15 रन ही बना सकी। जिसके बाद आईसीसी नियमों के अनुसार अधिक बाउंड्री लगाने वाली टीम को विश्व विजेता घोषित किया गया। आईसीसी नियमों के अनुसार इंग्लैंड 2019 क्रिकेट विश्व कप का विजेता घोषित हुआ।

आपको बता दें,  विश्व में जितने भी देश क्रिकेट खेलते हैं, वो सभी देश आईसीसी के क्रिकेट नियमों का पालन करते है। इसी लिए 2019 विश्व कप के फाइनल में भी आईसीसी नियमों का पालन करना पड़ा। नहीं तो विश्व कप 2019 के फाइनल मैच में दोनों टीमें अच्छा क्रिकेट खेली है।

क्रिकेट का इतिहास बेहद पुराना है। यह खेल 1550 से भी पहले से खेला जा रहा है। जो शुरूआती दौर में लकड़ी की गेंद व कपड़े से बनी गेंद से खेला जाता था। क्रिकेट का जन्म दाता इंग्लैंड को कहां जाता है। क्रिकेट पहले अमीर लोगों का शौकिया खेल होता था। धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया। अंग्रेजों ने जहां-जहां राज किया वहां क्रिकेट का विस्तार तेजी से हुआ। क्रिकेट को जेंटलमैन खेल कहा जाता है। यह खेल दो टीमों के 11-11 खिलाड़ियों के बीच खेला जाता है। आज इस खेल की दिवानगी पूरी दुनिया में सबसे अधिक है। इस खेल को पूरे दुनिया में जाना जाता है। 

क्रिकेट का बेहद लंबा इतिहास रहा है। अभी तक के विश्व विजेता देशों की बात करें तो सबसे ज्यादा बार विश्व कप ऑस्ट्रेलिया- 5, वेस्ट इंडीज- 2 बार, भारत-2 , पाकिस्तान-1, श्रीलंका-1, इंग्लैंड-1 बार क्रिकेट विश्वकप जीता है। 2019 का विश्व कप भले ही इंग्लैंड की क्रिकेट टीम जीत गई हो। मगर पूरी दुनिया का दिल अगर किसी टीम ने जीता है तो वह टीम सिर्फ न्यूजीलैंड की क्रिकेट टीम है।




भारतीय क्रिकेट टीम ने सेमीफाइन में बेहद खराब प्रदर्शन किया, जबकि इस टीम में दुनिया की सबसे बड़ी टीम को हराने का दम-खम है। कहते है ना कभी-कभी पूरा दिन खराब चला जाता है। ठीक ऐसे ही भारतीय क्रिकेट टीम के साथ भी हुआ। जिसके बाद से भारतीय क्रिकेट टीम की सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक में खूब बदनीमी और आरोप लगे। हमें खेल को खेल की तरह देखने की जरूरत है। तभी खेल की सीमा व मर्यादा बनी रहेंगी। 

आपको बताते चलूं...! भारत में क्रिकेट अंग्रेज यानि इंग्लैंड लेकर आया। इस खेल को लेकर भी भारतीय इतिहास में कई घटनाए छिपी है। जैसे हिंदू धर्म में जातिवाद है, ठीक अंग्रेजों के राज में भी छुआ-छूत थी व रंगभेद व नस्लभेद था। अंंग्रेज भारतीयों पर जानवरों से भी बत्थर रवैया अपनाते थे और कुत्तों जैसा व्यवहार करते थे। इस खेल का नाता भारतीय इतिहास से भलीभांति है, जो शायद ही खत्म हो सकें। इस  खेल की भारतीय इतिहास में कई कहानियां हैं, जो भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई को जिंदा करती है।  






14 July 2019

मेरी मासूम भावनाएं

भावनाएं

मेरी मासूम भावनाएं तो तुम
पल में समझ जाया करती थी
हर बात को प्यार से समझाया करती थी
आज अचानक मेरे बड़े होने से
ऐसा क्या अनर्थ हुआ?



आंसुओं का समंदर उमड़ पड़ा
शब्द और शक्ति दोनों बेबस हो गई
तुम्हारी भावनाएं मेरे प्रति बदल गई...
यह शब्द गूंजने लगे मेरे कानों में
तुम तो मां कुछ और ही
समझाने लग गई मुझे बातों बातों में...
बेटी जोर से मत हंस
धीरे धीरे बोल
हंसना जब तू अपने घर जाएगी
बोलना उससे जिसके संग बयाहेगी....
मैं समझ गई
कुछ कहा नहीं तुमसे
क्योंकि मैं जानती हूं
मेरे शब्द कर्कश लगेंगे
और तुम्हारी भावनाओं को ठेस पहुंचाएंगे..
कुछ सपने संजोकर मैं भी चली गई
सोचा ना समझा तुम्हारी बातें बस याद कर गई
भावनाओं का समंदर उमड़ने लगा
सपनों का नया घरौंदा बसने लगा....
सोचा अब खिल खिलाऊंगी
जो गीत लबों तक आ कर रुक जाते थे
उनको फिर से गुनगुनाऊगी....
पर यह क्या?

यहां भी वही शब्द गूंजते हैं
और मुझसे कहते हैं
तू तो पराई है
अपने घर से क्या लाई है
मां यह प्रश्न बार-बार उठता है
और मेरे मन को कसोटता है...
मेरा घर कहां ?

दीपमाला पांडेय