ये चंचल मन कहे कविता !
अनुभूति हो रही नव सृजन की
निश दिन शब्द श्रंगार करे रचना ,
अलंकृत है मन के भाव भी यहां
मन के द्वार खोल रही, हां कविता ।।
ये चंचल मन कहे कविता !
डोलता फिरता है ये यहां वहा ,
न जाने किसकी तलाश है इसको
बस लेखन की जिज्ञासा लिए ही
लिखता रहता ये मन के भाव से ,
दोहे , छंद ,गीत और अनेक रचना ।।
ये चंचल मन कहे कविता !
नित नयन जो देखते हैं बस वही
अभिव्यक्ति का विषय है अपना ,
नवीन विचारो से खिल रहा मन !
शेष ही तो विशेष सृजन है अपना
कि,भावना से भरी हुई हर कविता ।।
यह चंचल मन करे कविता।
लेखिका- प्रतिभा दुबे
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