साहित्य चक्र

14 December 2022

कविताः चंचल मन कहे कविता





ये चंचल मन कहे कविता !
अनुभूति हो रही नव सृजन की 
निश दिन शब्द श्रंगार करे रचना ,
अलंकृत है मन के भाव भी यहां 
मन के द्वार खोल रही, हां कविता ।।

ये चंचल मन कहे कविता !
डोलता फिरता है ये यहां वहा ,
न जाने किसकी तलाश है इसको 
बस लेखन की जिज्ञासा लिए ही 
लिखता रहता ये मन के भाव से ,
दोहे , छंद ,गीत और अनेक रचना ।।

ये चंचल मन कहे कविता ! 
नित नयन जो देखते हैं बस वही 
अभिव्यक्ति का विषय है अपना ,
नवीन विचारो से खिल रहा मन !
शेष ही तो विशेष सृजन है अपना 
कि,भावना से भरी हुई  हर कविता ।।
यह चंचल मन करे कविता।


                                          लेखिका- प्रतिभा दुबे 



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