साहित्य चक्र

24 December 2022

कविताः अकेलापन

अकेलापन

मन जब परेशान होता,
तो अकेलापन उसे बहुत भाता
मन की व्यथा किसी को ना सुना पाता ,
कभी वह मन ही मन अकेले में,
अपने आप से बात किया करता।

दिमाग बहुत तेज चलता
जब हम अपने एहसासों में थोड़े से
गुम हो जाते बस महसूस करते
और फिर पता नहीं हम कितने
अंतर मन के भाव लिख देते।

संघर्ष करना सिखाता
जीवन में सही गलत का फैसला
करना सिखाता अकेलापन हमें
बहुत अखरता लेकिन सच्ची
राह पर चलना भी सिखाता।

शांत सरोवर झील के किनारे
कुछ अपने मन के कुछ कुछ गहरे
गुढ़ विषयों पर हम मनन करते
अपने अंतर्मन को तरसते
फिर हम किस्से और कहानियों
की बात करते लिखते मन में चलता।

कभी तपस्वी से बन जाते
कभी हम बहुत गहराई में
जाकर चले जाते कभी हम
अकेले में रहकर बहुत कुछ
सोचते कभी सपनों में कुछ
बोलते कभी अपनों से बात करते।

- रामदेवी करौठिया


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