साहित्य चक्र

27 September 2016

मैं कौन हूं...?


मैं कौन हूं, मुझे पता नहीं..।
मैंने पूछा सब से तो, 
बताया किसी ने नहीं।।

मैंने फूलों से पूछा तो, 
फूलों ने कहां भवरों से पूछो।।

मैंने भवरों से पूछा तो,
भवरों ने कहां चिड़ियों से पूछो।।

मैंने चिड़ियों से पूछा तो,
चिड़ियों ने कहां शिकारियों से पूछो।।

मैंने शिकारियों से पूछा तो,
 शिकारियों ने कहां जंगल से पूछो।।

मैंने जंगल से पूछा तो,
जंगल ने कहां पर्वतों से पूछो।।

मैंने पर्वतों से पूछा तो,
पर्वतों नो कहां आसमां से पूछो।।

मैंने आसमां से पूछा तो,
आसमां ने कहां धरती से पूछो।।

मैंने धरती से पूछा तो,
धरती ने कहां पाताल से पूछो।।


मैंने पाताल से पूछा तो,
पाताल ने कहां आत्मा से पूछो।।

मैंने आत्मा से पूछा तो,
आत्मा ने कहां तुम कठपुतली हो।।

        कवि- दीपक कोहली

25 September 2016

शराब



ये मेरी पहाड़ की बदकिस्मती है,
जो यहां शराब मिलती है।

किसी के बुझ गए घर के दिये,
तो किसी का घर बन गया श्मशान।

कोई अनाथ तो कोई इकलौता,
बन गए इस शराब से।

ये तो मेरी पहाड़ की बदकिस्मती है,
जो यहां शराब मिलती है।

किसी का बाप मर तो किसी का भाई,
इस शराब के कारण ।

किसी का घर जला तो किसी की आश,
इसी शराब से हुआ मेरे पहाड़ का नाश।

ये तो मेरी पहाड़ की बदकिस्मती है, 
जो यहां शराब मिलती है।


                          दीपक कोहली



22 September 2016

जी रैया - जागी रैया


जी रैया- जागी रैया।
यो दिन - यो मास,
सबकौं भैंठणा रैया।।

धरती जैस चौड़ हैज्या,
अकाश जैस ऊंच।।

जी रैया - जागी रैया, 
फूल जैस खिल रैया।

स्याऊ जैस चतुर हैया,
शेर जैस तेज हैज्या।

यौ दिन यौ मास,
सबकौ भैंठणा रैया।।


                 कवि- दीपक कोहली 

19 September 2016

*मैं तेरा हूं*



मैं तेरा दिल हूं, तू मेरी जान हूं,
मैं एक संसार हूं, तू मेरी सुंदरता है।

मैं तेरा सुर हूं, तू मेरी स्वर है,
मैं एक भक्त हूं, तू मेरी इच्छा है।

मैं तेरा इंद्र हूं, तू मेरी इंद्रा है,
मैं एक बेटा हूं, तू एक  बेटी है।

मैं तेरा किशन हूं, तू मेरी राधा है,
मैं एक चोर हूं, तू मेरी मल्लिका है।

मैं तेरा स्वामी हूं, तू मेरी दासी है,
मैॆ एक बंशी हूं, तू मेरी बांसुरी है।

                      कवि- दीपक कोहली 



15 September 2016

ये वक्त भी क्या है...?


ये वक्त भी क्या है...?
आखिर क्या है ये वक्त

कहां से आया, किधर गया
ये वक्त आखिर क्या है...?

हर गम और हर खुशी 
हर आंसू और हर हंसी
हर खुशबू और हर नगमा
इस वक्त में छिपा हैं।
आखिर क्या हैं ये वक्त...?

गुजरता है या थमता है
हकीकत है या झूठा है
नदियां है या समन्दर है
पहाड़िया है या वादियां है
आखिर क्या है ये वक्त..?

जख्म हो या दर्द 
सदाएं हो या फजाएं
दिवार हो या दरिया 
डाल हो या पेड़ 
आखिर क्या है ये वक्त..?

ये कब आया और 
ये कहां से आया ।
ये किधर गया और 
ये फिर आया ।।
आखिर क्या है ये वक्त..?

                                   कवि- दीपक कुमार

13 September 2016

-मैं और वो-


वो सागर से गहरी ,तो 
मैं सागर का किनारा।
वो कोई छोर नहीं, तो 
मैं कोई चोर नहीं ।।

वो शहर की बस्ती, तो 
मैं गांव का जंगल।
वो शहर की रानी, तो
मैं जंगल का राजा ।।

वो फूलों की कली, तो 
मैं फूलों का कांटा।
वो फूलों की रानी, तो 
मैं फूलों का राजा।।

वो रिश्तों की डोर, तो 
मैं रिश्तों का गांठ।
वो महलो की रानी, तो 
मैं सड़को का राजा।।

वो मेरी चाॅदनी, तो 
मैं उसका चांद।।
वो मेरी कविता, तो
मैं उसका कवि ।



              कवि- दीपक कोहली

-एक नेता से बाहुबली माफिया डाॅन तक-

                 -एक नेता से बाहुबली माफिया डाॅन तक- 
वैसे आपने बिहार के कई नेताओं के बारे में सुना तो होगा ही और कइयों को आप पहचानते भी होगें। उन्हीं में से एक आरजेडी के बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन भी है। जो आजकल ही 10 साल की सजा काट कर जेल से बाहर निकले है। ये बिहार के जिला प्रतापपुर के रहने वाले है। इससे पहले ये एक नामी राजनेता हुआ करते थे। लेकिन आज भी बिहार में इन्हें इनके दबंगई के लिए जाना जाता है। ये बिहार के जाने माने राजनेताओं में गिने जाते है। वैसे इनका राजनीति से ज्यादा अपराध में नाम है। जो ये बताने के लिए काफी है कि ये किस तरह के राजनेता होगें। इन्हें पहली बार 1990 मेंं जनता दल ने विधासभा में टिकट दिया और ये जीत गए। इसके बाद 1995 में फिर ये चुनाव लड़े और जीत गए। जिसके बाद पार्टी में इनका कद काफी बढ़ गया और इसी को देखते हुए इनकी ताकत दुगनी हो गई। जिससे अपराध की दुऩिया में इनके नाम का डंका बजने लगा। जिससे पुलिस औऱ प्रशासन भी इनसे डरने लगे। लेकिन इनके खिलाफ मुकदमे दर्ज होते रहे वहीं पर्याप्त सबूत नहीं होने के कारण इन पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। वहीं इसी दौरान बिहार में इनके इलाके में इनकी मर्जी से पत्ता तक नहीं हिलता था। जब इनका अत्याचार बहुत ज्यादा होने लगा तो तब पुलिस ने इन्हें कई मुकदमे लगाकर गिरफ्तार कर जेल ले गए। तभी 2004 में इन्होंने जेल से ही लोकसभा का चुनाव लड़ा। इसके बाद चुनाव आयोग ने इन्हें चुनाव लड़ने से रोक लगा दी। जिसके बाद इन पर मुकदमा चलना शुरू और इन्हें जेल हो गई। वहीं अब देखने वाली बात ये रहेगी कि क्या ये दुबारा राजनीति में आते है या नहीं। वैसे जेल से बाहर निकलते ही इसका जो बयान आया वो सबको हैरान करने वाला था। अब देखना ये रहेगा कि क्या इनका खौफ दुबारा बिहार को अपना शिकार बनाती है या फिर ये खुद शिकार बनेगें।

11 September 2016

-कहां चले गए मेरे दादाजी-


ना जाने कहां चले गए मेरे दादाजी।
अब कौन देगा, मुझे जेब से टाॅफी,
और कौन बतलाएगा पुरानी बातें।।

ना जाने कहां चले गए मेरे दादाजी।
अब कौन करेगा मुझे प्यार और,
कौन बताएगा मेरी मन की बात।।

ना जाने कहां चले गए मेरे दादाजी।
अब किसे बोलूंगा अपनी दिल की बात,
और किस से सिखूंगा अच्छी आदत।।

ना जाने कहां चले गए मेरे दादाजी।
अब कौन देखा मुझे मेरा जेब खर्च,
और कैसे आइगें वो दिन वापस।।

ना जाने कहां चले गए मेरे दादाजी।।

                       कवि- दीपक कोहली

10 September 2016

-कहीं-कहीं देश मेरा-



            -कहीं-कहीं देश मेरा-
कहीं आरक्षण, तो कहीं भेदभाव,
कहीं जातिवाद, तो कहीं लिंगवाद।
कहीं नक्सलवाद,तो कहीं उग्रवाद,
इन्हीं सब में जल रहा देश मेरा।।

कहीं रेप तो, कहीं गैंगरेप,
कहीं भष्टाचार तो, कहीं आंदोलन।
कहीं घूसखोरी तो, कहीं लूटखोरी,
इन्हीं सब में जल रहा देश मेरा।।

कहीं घोटाले तो, कहीं चापलूसी,
कहीं शराबखोरी तो, कहीं लीसा तस्करी।
कहीं मारपीट तो कहीं चोरी-चकारी,

इन्हीं सब में जल रहा देश मेरा।।

                               कवि-दीपक कोहली

08 September 2016

आखिर क्यों ...छेड़छाड़ और बलात्कार ?

दीपक कोहली
  आखिर क्यों ...छेड़छाड़ और बलात्कार ?


जी.. हां आखिर क्यों...? आज हमारे देश में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार के मामले बढ़ रहे हैं। वहीं आज नारी चार दिवारों में भी सुरक्षित नहीं है। जिसके लिए मैं सभी नारीशक्तियों को वो कानून बताने जा रहा हूं, जो सरकार ने उनके लिए बनाए हैं। जिससे आज भी हमारी नारीशक्ति अंजान हैं। अगर कोई दुष्ट व्यक्ति किसी नारी को अश्लील नज़रों से देखता है या फिर कोई गलत इशारे कर छेड़ रहा हो। तो उस व्यक्ति को भारतीय कानून द्वारा धारा- 509 और 294 के तहत तीन माह की जेल और उस पर कानूनी कारवाई की जाएगी। वहीं अगर कोई दुष्ट व्यक्ति किसी नारी (महिला) के साथ जर्बदस्ती शारीरिक छेड़छाड़ या संबंध बनाने की कोशिश की करता हैं या फिर शारीरिक संबंध बना लेता है। तो उसे धारा-375, 376, 376क, 376ख, 376ग, 376घ के तहत आजीवन कारागास (जेल)  होगी। इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ जर्बदस्ती शारीरिक संबंध बनाता है या फिर 16 साल से कम उम्र की लड़की से संबंध बनाने पर भी यहीं सजा होती है। वहीं अगर आपने किसी लड़की को नशीली पदार्थ या उसे डरा- धमकाकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाया तो तब भी यह धारा लागू होती है।       
लेकिन आज भी कुछ महिलाएं इन  बातों से अंजान है कि हमारे लिए भी कोई कानून है। मेरा प्रयास यह कानून उन लोगों तक पहुंचाना है जो आज भी घरेलू हिंसा और पुराने रीति-रिवाज के माहौल में रहते हैं। या फिर रहने को मजबूर है। वहीं देश में रेप केस और बलात्कार दिनपे-दिन बढ़ रहे हैं। जो एक चिंता का विषय है। लेकिन इस विषय के लिए हमारी नारी शक्ति को भी सोचना चाहिए और अपने अधिकारों का पूरा फायदा उठाना चाहिए। जिससे उन पर कोई अत्याचार ना हो। वहीं इस मूद्दे पर विषेशज्ञों की राय दो टूक में है। जहां कुछ विषेशज्ञ मानते है कि देश माँर्डन और पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति अपना रहा  है, तो वहीं कुछ लोग इसे कमजोर कानून का नतीजा बता रहे है। जी हां हमें भी यहीं लगता कि देश अपनी संस्कृति और सभ्यता खो रहा है। मेरा ये मानना है कि हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता को बनाए रखना चाहिए। जिससे हमें अपनी संस्कृति को आगे ले जाने में मदद मिलेगी। .......


                                                 संपादक- दीपक कोहली 

-वो मेरा हल्द्धानी प्यार-








   -वो मेरा हल्द्धानी प्यार-


वो हमारी संस्कृति का द्धार,
चमकता हल्द्धानी अपार ।।

वो कुमांऊ गीतों का संग्राम,
गुनगुनाता हल्द्धानी मेरा।।

वो बसों में लोगों का इंतजार,
कोई सोया तो, कोई बैठा ।।

वो मेरा हल्द्धानी का प्यार,
बैठे बस में तेरा इकरार।।

वो मेरे दिल से तुझे नमन्,
मेरी मातृभूमि उत्तराखंड।।

                 कवि- दीपक कोहली 

06 September 2016

-उत्तराखंड की पहली गीतकार -

      -उत्तराखंड  की पहली गीतकार -

जी हां जब से उत्तराखंड बना है। तब से कई लोगों ने राज्य के बारे में बहुत कुछ लिखा है। लेकिन आज तक किसी ने इस गायिका के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा है। जी हां ये प्रदेश की पहली गीतकार थी।
 क्या कभी आपने सोचा या जानने की कोशिश की कि हमारे राज्य का पहला संगीतकार कौन है..? तो आज मैं आप बताऊंगा की हमारी पहाड़ की पहली गीतकार कौन थी...? जिन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया और जिन्होंने हमारी बोली को एक पहचान दी। जिनका नाम श्रीमती कबूतरी देवी है। जो उत्तराखंड जिला पिथौरागढ़ की मूनाकोट तहसील की क्वीतड़ गांव की रहने वाली थी। जिन्होंने 70-80 के दशक में पहाड़ी गीतों  को पहचान दी। इनके गीतों में इनका एक प्रमुख गीत "आज पनि झां-झां, भोल पनि झां-झां" है। इन्हें राज्य का 'तीजन बाई ' भी कहते है। 70 के दशक में कबूतरी देवी जी ने पहली बार गांव से सीधे स्टूडियो पहुंचकर रेडियो जगत में अपने गीतों की धूम मचाई। वैसे देवी जी ऋतु आधारित गीत ज्यादा गाया करती थी। इनके पति श्री दिवानी राम इनकी काफी मदद करते थे। देवी जी ने लगभग 100 से ज्यादा गाने गाए है। जिन्हें उस समय एक गीत के लिए 25 से 50 रुपये मिला करते थे। सबसे पहले इनके गीत लखनऊ आकाशवाणी से प्रसारित हुआ और कुछ समय बाद मुंबई, नजीबाबाद, रामपुर से भी प्रसारित होने लगे। वर्ष 2002 में इन्हें पिथौरागढ़ के नवोदय पर्वतीय कला केंद्र और अल्मोड़ा लोक संस्कृति कला व विज्ञान शोध समिति ने भी पुरस्कारित किया। देवी जी ने अपने पति की मृत्यु के बाद गाना बंद कर दिया। जिसके बाद वे एक सामान्य जीवन जीने लगें। कहां जाता है कि इन्हें उतनी पहचान इस लिए नहीं मिली क्योंकि देवी जी एक दलित (एससी) परिवार से संबंध रखती थी। जो भी देवी जी ने हमें एक नई पहचान दी। इसके लिए मैं देवी जी को शत्-शत् नमन करता हूं।


                                                                 संपादक - दीपक कोहली 

05 September 2016

* मन की तमन्ना *

                 
मन में तमन्ना है कि,
इस देश के लिए कुछ करु।
पर यहां तो सब मतलबी हैं,
कोई कहता तू हिंदू है, तो 
कोई कहता तू मुस्लिम है।।

मन में तमन्ना है कि, 
इस देश के लिए मर मिटूँ।
पर यहां तोे सब मतलबी है,
कोई कहता तू फकीर है,तो 
कोई कहता तू जहांगीर है।।

मन में तमन्ना है कि,
इस देश के लिए शहीद हो जाऊ।
पर यहां तो सब मतलबी हैं,
कोई कहता तू गरीब है,तो 
कोई कहता तू अमीर है।।

मन तमन्ना है कि,
इस देश के लिए सैनिक बनूं।
पर यहां तो सब मतलबी है,                                  
कोई कहता तू मोटा है, तो 
कोई कहता तू छोटा है।।

                                                                                                                                                                कवि- दीपक कोहली 

*गरीब का बेटा*

                                   *गरीब का बेटा*
मैं गरीब का बेटा, मुझे कौन जानता है,
तू महलों की बेटी, तुझे दुनिया जानती है।

जब आए थे मेरी, अम्मी के आंखों से आंसू,
तब आहट सुनी थी, मैंने तेरे कदमों की ।।

ना जाने हम गरीबों के दुश्मन इतने क्यों,
ना जाने तुम्हारे चाहने वाले इतने कैसे।।

कसूर बस इतना है, मैं गरीब का बेटा हूं,
कसूर बस इतना है, तू महलों की बेटी है।।

खुदा भी छोड़ हम गरीबों को चला गया,
उसे भी अब महलों की आदत बन गई।।


                                 कवि- दीपक कोहली 


02 September 2016

बाबा शंभू

                                         बाबा शंभू

बाबा शंभू नमो-बाबा शंभू नमो,
जट्टाधारी नमो, जट्टाधारी नमो...।।


बाबा शंकर नमो-बाबा शंकर नमो,
रूद्धधारी नमो, रूद्धधारी नमो...।।

बाबा कैलाशे नमो-बाबा कैलाशे नमो,
डमरुधारी नमो, डमरुधारी नमो...।।

बाबा महाकाले नमो-बाबा महाकाले नमो,
त्रिशूलधारी नमो, त्रिशूलधारी नमो...।।

बाबा गिरजा नमो-बाबा गिरजा नमो,
गंगाधारी नमो, गंगाधारी नमो...।।


                                         कवि- दीपक कोहली

वो भी क्या दिन थे...?

                            वो भी क्या दिन थे...?

वो भी क्या दिन थे....?
जब पीया करते थे नौलों का पानी,
और खेला करते थे मडुवे के खेतों में।।


वो भी क्या दिन थे....?
जब भागा करते थे स्कूलों से,
और घर पहुंचा करते थे देर से।।


वो भी क्या दिन थे....?
जब छोटी-सी बातों पर हुआ करती थी लड़ाई,
और फिर थोड़ी देर में बन जाते थे दोस्त।।


वो भी क्या दिन थे....?
जब नहाया करते थे नदियों में,
और मारा करते थे मछलियां।।


वो भी क्या दिन थे....?
जब घर आपस में लड़ा करते थे,
और फिर मम्मी की मार खाया करते थे।।

                                       कवि- दीपक कोहली