यह कैसा नया साल आया है
चारों तरफ कोहरा छाया है
हर इंशान ठंड से कांप रहा
हर कोई अँगीठी से ताप रहा
ठिठुरती ठंड में कोई फुटपाथ
तो कोई बिन रजाई के सो रहा
यह कैसा नया साल आया है
कोई लाचारी, गरीबी से रो रहा
यहाँ कोई मधुशाला में पी रहा
कोई रोटी कपडे को तरस रहा
तो मंज़िल के लिए भटक रहा
यह कैसा नया साल आया है
सन बदला तारीख़ बदली पर
बदला किसी का कारोबार नहीं
सनातन धर्म का ये त्यौहार नहीं
विक्रम संवत का सत्कार नहीं
अब कोई इसका सरोकार नहीं
यह कैसा नया साल आया है
कुछ दिन ठहरो बसन्त आने दो
फिर से शीत लहर को जाने दो
फागुन में फसलों को लहराने दो
भौरों को सरसों पे मंडराने दो
अभी होली को रंग बरसाने दो
फिर से चैत्र माह को आने दो
जब लोंगो मुख पे मुस्कान होगी
न कोहरा न कही सर्द हवा होगी
तब न कोई इंशा ठंड से कांपेगा
तब कहीं न कोई आग से तापेगा
ग्रीष्म ऋतु के स्वागत पर नाचेंगे
सब सनातनी उत्सव को मनायेंगे
मिलजुल के सब नववर्ष मनायेंगे
तब सभी भारती खुशी से बोलेगें
सनातन धर्म की जय-जय बोलेगें
अब नववर्ष आया है,अब नववर्ष आया है
- अरुण चक्रवर्ती
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