साहित्य चक्र

21 December 2022

कविताः अंशकालिक शिक्षक

कविताः अंशकालिक शिक्षक



हमेशा डरे-डरे से रहते हैं 
अंशकालिक शिक्षक 
डर इस बात का कि 
बिना पूर्व सूचना के 
कभी भी टर्मिनेट किया जा सकता है उन्हें।

विभागों  में 
अंशकालिकों का महत्व 
फोर्थ क्लास से भी कमतर होता है।
लाख-दो लाख की सैलरी भी कम है जिनके लिए 
उनके समक्ष गलत का विरोध कर पाना कहां सम्भव इनके लिए 
भले ही  उनकी डिग्रियां बराबर  हो।
महाविद्यालयों के लिए तो रीचार्ज कूपन होते हैं 
अंशकालिक शिक्षक 
यूज किया और फेंक दिया।

इनवीजीलेटर की आवश्यकता हो तो 
अंशकालिक शिक्षक ,
फ्री में कराना हो मूल्यांकन तो
अंशकालिक शिक्षक ,
भीड़ इकट्ठी करनी हो तो 
अंशकालिक शिक्षक ,
किसी भी कक्षा में भेजना हो तो
अंशकालिक शिक्षक।

किसी इमरजेन्सी में छुट्टी मिलना बहुत ही मुश्किल 
मानों उनकी जरूरते नहीं ,
मानों उनका परिवार नहीं।
वह अपनी तकलीफें किसी से साझा नहीं करते
क्योंकि तकलीफें नहीं उनकी बल्कि
छुट्टी लेने के बहाने हैं।

उनकी तकलीफें तब और बढ जातीं हैं 
जब छुट्टी के एवज में मिलती है आधी सैलरी।
उनकी शिक्षा ,
उनकी डिग्री का  महत्व नहीं रहा अब उनके लिए।
उनका जीवन अंधकारमय होता जा रहा है
उन्हें तो सेमिनार अटेंट करने का भी हक नहीं 
उनके पास इतना समय नहीं बचता 
कि अपनी पहचान बनाने हेतु कोर्स से इतर कुछ पढ सकें
और  प्रकाशित करा सकें पुस्तकें।

हर पांचवे वर्ष साक्षात्कार से गुजरना होता है इन्हें 
ताकि बची रहे नौकरी।
अंशकालिक शिक्षिका को मैटरनिटी लीव के एवज में 
थमा दिया जाता है टर्मीनेशन लेटर
उनकी मां बनने की खुशी
इसी डर में
  इसी दर्द में 
 कहीं दब जाती है।

मानों अंशकालिक शिक्षक इंसान नहीं होते
उन्हें  रोटी,कपडे की आवश्यकता  नहीं होती
उनके बच्चों की प्राथमिक  जरूरते नहीं होती
वे रो नहीं  सकते
उनकी हंसी में अब वह खनक नहीं रही 
जो दुश्वारियों के बोझ को कुछ कम कर सके।

घर-परिवार 
स्कूल-कॉलेज 
सब कुछ मैनेज करने की चाह में 
इनके सपने धीरे-धीरे दम तोड़ने लगते हैं 
और इनका पूरा वजूद 
गहन अंधकार में विलुप्त होने लगता है।


                                      - इन्दु श्री


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