फ़िरदौस की खुशबू या बाग-ए-बहार हो,
उदासियों के आलम में चैन ओ करार हो।
दिलकश खताएँ कैसी कमसिन अदाएँ है,
लगता है जानम तुम इश्क का ख़ुमार हो।
टहनी से तन पर जलवों का कहर तौबा,
आशिक की ओर से हुआ मनुहार हो।
सीपी में मोती से नैंना दो झिलमिल से,
क्यूँ ना ये दिल मेरा तुम पर निसार हो।
कहाँ कोई और तुम सा ज़माने भर में,
देखकर तुम्हें कहो क्यूँ ना हम बीमार हो।
ओस की तू बूँद है ड़ली हरसिंगार की,
देखने वालों का तुम्हें सुकून फ़रार हो।
मन्नत सी पाक हो नूर हो तुम धूप का,
तुम ही कहो क्यूँ ना मुझे तुमसे प्यार हो।
- भावना ठाकर 'भावु'
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