साहित्य चक्र

26 September 2020

अश्क



 
अश्क आंखों में जमकर रह गए है।
कुछ यादों के किस्से पुराने थम गए है।

अश्क आंखों में जमकर रह गए है। 
जिंदगी जब सोच में बैठती है।
कितनी बातों के,  अफसाने तन के रह गए है।

अश्क आंखों में जमकर रह गए है।
याद रहता नहीं है ,यह जानता हूँ।
फिर क्यों उन बातों को मैं भूलता ही नहीं हूँ।

वो बातें, वो यादें..... जिनसे,
कभी अश्कों से भीग जाता था।
आज सोच के सफर में थम से गये है।

 सोचता हूँ......?
आकर आंखों में, क्यों जम से गये है।


                                           प्रीति शर्मा "असीम"


विनती




हे हमारे पूर्वजों, पित्तरों
मैं कुछ कहना चाहता हू्ँ,
परंतु आप लोगों के
क्रोध से डरता हू्ँ।

पर आज कह ही डालूँगा
काहे का डर
वैसे भी अब डरकर
क्या होगा?
जब डरना था
तब डरा नहीं,
आप लोगों के दिखाये मार्ग का
कभी अनुसरण किया नहीं।

तभी तो आज रोता हूँ
जो कल मैंने किया था
वही सब आज
खुद पाता हूँ।

बहुत भूलें/गल्तियां की मैनें
आज उन पल शर्मिंदा हू्ँ,
जाने क्या पाप किये
फिर भी अभी जिंदा हूँ।

हे मेरे बाप दादाओं
मुझ पर तरस खाओ,
हम सबको माफ करो
हमारे अंतर्मन में आओ,
हमारे किये हुए श्राद्ध तर्पण को
अब स्वीकार करो,
अपने इस वंश बेल की भूल का
न कोई मलाल करो।

मैं एकदम बदल गया हूँ,
सोने सा तपकर निखर गया हूँ,
विश्वास कीजिए अब कभी
आपका दिल नहीं दुखाऊँगा,
आप सबके चरणों में
सदा शीष झुकाऊँगा।

अस मेरी विनती स्वीकार करो
वापस आकर हमारे साथ वास करो।

                                 ★सुधीर श्रीवास्तव


चलो तुम और मैं, हम हो जाते हैं।






एक दूजे पर हम एतबार करेंगे।
दिल से एक दूजे को प्यार करेंगे।
हम हर रोज देखेंगे ख़्वाब हजारों।
मिलकर फिर उनको साकार करेंगे।

एक दूजे से दिल की बात कहेंगे।
हर पल एक दूजे के साथ रहेंगे।
हर खुशी को जिएंगे हम साथ में।
और हर ग़म को हम साथ सहेंगे।

एक दूजे का हम सम्मान करेंगे।
मिलजुल कर सारे काम करेंगे।
थक जाएंगे जब भी हम दोनों।
एक दूजे की बाहों में आराम करेंगे।

दुनिया की सारी रस्में तोड़कर।
दिल से दिल का रिश्ता जोड़कर।
एक दूजे पर हम यकीं करेंगे।
इस दुनिया की बातें छोड़कर।

दिल की सारी बात जानकार।
एक दूजे को अपना मानकर।
पूरी ज़िन्दगी हम साथ चलेंगे।
बस एक दूजे का हाथ थामकर।

चलो तुम और मैं हम हो जाते हैं।


                                          संदीप कुमार

कलम को हथियार बनाना पड़ता है





मानवता की चीखें जब रौद्र रूप लेती है
सब्र की सीमा जब क्रोध रुप लेती है
जब मानव मानवता को तरस रहा हो
पानी अम्बर से बेलगाम बरस रहा हो
जब इंसान इंसानियत के पार जाए 
सत्य असत्य के समक्ष हर जाए 
जब मार्गदर्शको का मान घटने लगे ओर भृष्टओ का सम्मान हो
निति अनीति संग शुद्ध हो जाये ओर अवगुणों का गुणगान हो
जब तम तमहर को ललकार रहा हो 
जब वतन हमे पुकार रहा हो
तब जय को पराजय तक आना पड़ता है
नीति अनीति का भेद मिटाना पड़ता है
आवाजो को सत्य तक पाऊचाना पड़ता है
तब देश बचाने हेतु कलम को हथियार बनाना पड़ता है


हे कलमवरों विनती करो मेरी स्वीकार
तुम लिख लिख दोषों  पर करो प्रहार
तुम गाथाएं ऐसी लिख डालो
हर एक ह्रदय में देशभक्ति प्रबल कर डालो
तुम लिखो तो ऐसा हो विद्वानों को सवांद मिले
युवाओ को विवेकानंद सा मार्ग मिले
तुम लिख दो तो ये तमनाशी प्रभाकर जाग जायगा
तिमिर स्वंय ह्रदयों से भाग जाएगा
तुम इस प्राणप्रिय वासुन्धरा का श्रृंगार करो
ये लेखनी झुके नहीं प्रतिज्ञा बारम्बार करो
अंजाम चाहें जो हो ये कर्ज चुकाना पड़ता है
सोगई यदि मर्यादाएं इन्हें जगाना पड़ता है
वतन की शान में पल पल कटाना पड़ता है
तब देश बचाने हेतु कलम को हथियार बनाना पड़ता है


जब जंग लगी हो शमशीरों में
रक्त ठंडा होने लगे वीरों में
जब हथियार अपनी धार खोने लगें
शत्रु समक्ष विषबीज बोने लगे
जब रक्षक निढाल हो जाये
जब जिंदगी सवाल हो जाये
जब शौर्य ज्वाल हड़ताल पर हो 
प्रशासन जांच -पड़ताल पर हो
तब तब कलम को आगे बढ़ पथ दिखाना पड़ता है
वीरों को झकझोर जागना पड़ता है
यदा-कदा इतिहास दोराहना पड़ता है
तब देश बचाने हेतु कलम को हथियार बनाना पड़ता है


                                                  स्वरचित निशा रानी गुप्ता


#शायद...!





किसी रोज़ मेरी आखों में ठहर कर देखो
कि इंतजार की रातें कितनी गहरी होती हैं...
जो तुम न ठहर सको.... तो लौट कर देखो...!
वापसी की कसक कितनी धारदार होती है....!

इनमें से तुम कुछ भी नहीं करोगे...
क्योंकि तुम्हें न हारना पसंद और न ही हराना
क्योंकि तुम्हें न काश! पसंद और न ही शायद!
तुमने सदा ही जीवन को लिखा पर जिया नहीं
हां तुमने पाने को गलत कहा पर न पाकर..

हां तुम यात्री रहे पर न बने खोजी 
हां तुमने चीत्कार लिखी और मैनें खामोशी..
तुमने सिर्फ़ सौंदर्य उकेरा और मैनें तुम्हें..
क्या तुम वो नहीं जो मुझे लिखना था....
पर शायद तुम वो हो जिसे मुझे पढ़ना था....!

                                               आकांक्षा सक्सेना



#राष्ट्रकवि_रामधारी_सिंह_दिनकरजी_की_जयंती_पर_विशेष



हिंदी में दिनकर-काव्य की राष्ट्रीयता अथवा राष्ट्रीय चेतना पर विद्वानों और शोधकर्ताओं ने विविध कोणों से प्रकाश डाला है। लेकिन इस राष्ट्रीय चेतना की आधारभूमि उनकी युग चेतना का मूल्यांकन कभी भी गंभीर विवेचना का विषय नहीं बनाया गया।इस युग चेतना की व्याख्या, परिज्ञान और मूल्यांकन के बिना राष्ट्रीय चेतना का विवेचन केवल पुनरूत्थानवादी विवेचन बनकर रह जाता है। आज के परिवेश में यह पुनरूत्थान कितना घातक हो रहा है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है।

             दिनकर ने रामायण, महाभारत, राम, कृष्ण पर गहराई और विस्तार से लिखा है। गौतम बुद्ध और गांधी पर लिखा है। इकबाल, रवींद्रनाथ टैगोर, निराला, मैथिलीशरण गुप्त और प्रसाद पर भी लिखा है। अपने समकालीन नेताओं में जवाहरलाल नेहरू पर'लोकदेव नेहरू' नामक एक पूरी पुस्तक ही लिखी है। जयप्रकाश नारायण और लोहिया पर भी लिखा है। अपने अन्य समकालीन साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के संस्मरण भी लिखें है।

कहने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि यह ध्यान से देखने और विवेचित करने की आवश्यकता है कि इन सारे प्रकरणों और तथ्यों को अपने काव्य में वर्णित और विवेचित करने के पीछे उनकी दृष्टि क्या थी? किस वैचारिक दृष्टिकोण से वह उनका मूल्यांकन कर रहे थे? इस दृष्टिकोण को उनकी युग चेतना किस हद तक प्रभावित कर रही है? प्राचीन युग की घटनाओं के मूल्यांकन को उनका समकालीन स्वाधीनता आंदोलन कैसे और किस आधार पर प्रभावित कर रहा था? इन प्रश्नों का उत्तर देकर दिनकर काव्य की राष्ट्रीय चेतना को शुद्ध और प्रमाणित किया गया है। यही कारण है कि आज राष्ट्रीयता और युगचेतना के संदर्भ में दिनकर काव्य का मूल्यांकन आवश्यक हो गया था।

आज जीवन और समाज;साहित्य के विस्तृत क्षेत्र में पुनरूत्थानवादी, साम्प्रदायिक एवं अलगाववादी शक्तियां अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए नये ढंग से सिर उठा रही है। वे इस समय दिनकर जैसे आच्छादक और जनप्रिय कवि के काव्य में संनिहित विचारों और भावों को अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति का साधन बनाने के प्रयत्न में सन्नद्ध दिख रहे है। इसलिए दिनकर काव्य का मूल्यांकन इस समय और भी अपरिहार्य हो उठा है।

इस समय तमाम ऐसे विवेचक और विचारक सामने आ रहे है जो जोर देकर यह कह रहे है कि भारत एक राष्ट्र है ही नहीं, यह एक उपमहाद्वीप है। इसमें बहुत सी भाषाएँ बोलने वाली विविध प्रकार की राष्ट्रीयतायें है, तमाम धर्म और मजहब है। अंग्रेजों ने थोड़े समय के लिए यहाँ आकर 'एकराष्ट्र' की भावना पैदा की थी लेकिन उनके जाते ही पुनः इस राष्ट्रीयता की भावना का लोप हो गया। दिनकर की राष्ट्रीयता का विवेचन- विश्लेषण करते समय कूटनीतिक कारणों से फैलायी जा रही इन भ्रान्त धारणाओं का निरास और खण्डन आवश्यक हो गया है।

   इतिहास, समाज, संस्कृति, साहित्य किस प्रकार आंतरिक धरातल पर परस्पर अनुस्यूत रहते है। दिनकर काव्य के यथार्थ मूल्यांकन के प्रयत्न में इन समस्याओं का भी विविध प्रकार से विवेचन किया गया है। रचना का युग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रचना को प्रभावित ही नहीं करता अपितु मार्गदर्शन भी करता है। दिनकर काव्य की प्रमुख प्रवृतियों पर उनकी युगीन पृष्ठभूमि का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है जिसे'चक्रवाल'की भूमिका में दिनकर ने स्वयं सकारा भी है।

        राष्ट्रीयता एक समष्टिगत चेतना है जो मनुष्य को इसकी व्यक्तिक सत्ता से आगे और उपर ले जाकर व्यापक जनसमुदाय और राष्ट्र से जोड़ के देती है। 'हिमालय' में दिनकर की राष्ट्रीय चेतना सहज मुखर है। दिनकर की दृष्टि यथार्थवादी है। ततकालीन समाज के यथार्थ से कवि हृदय स्वयं को पृथक नहीं कर पाता' कहीं दूध में श्वान नहा रहे है और कहीं बच्चे दूध को तड़प रहे हैं'जैसे यथार्थ ने दिनकर की रचना को विचारप्रधान भी बना दिया। दिनकर की राष्ट्रीयता की मूल आत्मा धार्मिक एकता तथा कोरी सांस्कृतिक एकता न होकर शोषण मुक्त, न्याय समतामूलक सामाजिक व्यवस्था में निहित है, जहाँ स्वतंत्रता और सम्मान सुलभ हो। दिनकर ने स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व, सामाजिक न्याय, आर्थिक स्वतंत्रता एवं पूंजीवाद या सत्तावादी शोषकों से मुक्ति को राष्ट्रीयता का आधारशिला स्वीकार किया है। "रेणुका" और "हुंकार" इसके ज्वलंत उदाहरण है। दिनकर की राष्ट्रीय चेतना में वर्तमान समस्याओं पर दृष्टि है। राष्ट्र प्रेम और आजादी की आकांक्षा उनकी कविताओं की आधारशिला है। अपने समय में राष्ट्र कवि के नाम से प्रख्यात रामधारी सिंह 'दिनकर' का बहुप्रतिष्ठित काव्य "कुरुक्षेत्र" युद्ध और अनीति की सार्वजनीन समस्याओं का मानवीय विवेचन है।

       दिनकर की रचनाओं में दासता की पीड़ा, हृदय की ज्वाला, दासता के विरुद्ध विद्रोह की भावना सहित क्रांति का उद्घोष भी है। पीड़ित मानवता और दलित समाज के प्रति सहानुभूति दिनकर की युगचेतना के महत्वपूर्ण आधार स्तम्भों में से है। दिनकर की राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीयता पर मानवतावाद में परिणत होने का प्रयास करती है।

      प्रत्येक स्वाधीन एवं स्वाभिमानी राष्ट्र अपने अतीत गौरव का सर्वेक्षण करता रहा है। दिनकर जी ने अतीत के उदात्त मूल्यों एवं दृष्टिकोणों को नवयुग के अनुरूप प्रगतिशील आभा प्रदान करने का प्रयास किया है। दिनकर की राष्ट्रीय चेतना, संस्कृति एवं इतिहास के संदर्भों से संपृक्त तथा अतीत गौरव से अनुस्यूत होकर वर्तमान राष्ट्र जीवन की समस्याओं के समाधान का अभूतपूर्व प्रयास है।

    दिनकर की युगचेतना का एक सबल पक्ष यह भी है कि अपने समकालीन युग जीवन के अनेक सत्यों सहित अनेक प्रश्नों के समाधान का दिनकर ने "कुरुक्षेत्र" में अभूतपूर्व प्रयास किया है।


                                                                               डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन


आपके ये आँसू




अपना गुनाह छुपाने को कोई गिरेबाँ ढूँढिए 
जो कुछ भी ना कह सके,वैसी जुबाँ ढूँढिए

हमें बुरी  आदत  है सच  को  सच कह देने की
जो सच को झूठ कह सके,कोई मेहरबाँ ढूँढिए

चमन  में  गुल   खिला   करते  हैं  हर  रंगो - बू  के
जो गुलशन को मसान कर सके,वही बागबाँ ढूँढिए

ये  लोकशाही है , यहाँ सबकी सुननी पड़ती है
मुर्दों पर राज़ करना हो तो फिर बियाबाँ ढूँढिए

आपके ये आँसू भी आपके दाग धो नहीं पाएँगे
नदामत*  की  खातिर  आब - ए - रबाँ*  ढूँढिए

फसाद से कभी अमन  की खेती नहीं की जाती है
अपनी हस्ती गर बचानी हो तो,नया उनवाँ* ढूँढिए

*नदामत- पश्चाताप
*आब-ए-रबा- बहता हुआ पानी
*उनवाँ- प्रकार

                                                    सलिल सरोज

न जाने क्यों




न जाने क्यों
खो सा गया है कही
मेरा मन।

न जाने क्यों
मिट्टी सा हो गया है
मेरा तन।

न जाने क्यों
टूट गया है,
उनकी याद में
ह्रदय का हर एक कण।

न जाने क्यों
बिखर गए है,
हर ख्वाब मेरे
फिक्र में उनकी हरदम।

                                                      राजीव डोगरा 'विमल'



18 September 2020

हिन्दी दिवस पर भाषण

अध्यक्षीय भाषण
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हिन्दी दिवस आयोजन क
अध्यक्ष महोदय ने
अपने भाषण में
कुछ यूं कहा संजीदगी से
कि मैनें अपने बाल
नोच लिए बेचारगी से
मैं आपका
हिन्दी डे कार्यक्रम में
वेलकम है,
हिन्दी लबली लैंग्वेज है,
इसका सभी को आनर करना चाहिए,
हिन्दी का खूब एडवरटीजमेंट हो
हिन्दी का यूज बढ़े
सभी को इसका इंपार्टेंस
जब तक फील नहीं होगा
हिन्दी का ग्रो
तब तक नहीं होगा।

इसलिए माई फ्रेंड
सबको मिलकर हिन्दी को
आगे लाना होगा,
हिन्दी के ग्रो के लिए सबको
अपना टार्गेट बनाना होगा।
तभी हिन्दी का ग्रो हो सकता है।

जय हिन्दी जय हिन्दी डे
आपका हार्टली थैंक्यू।

                                                @सुधीर श्रीवास्तव


खेल सृष्टि संग






कैसी कौतुहलता 
कैसी विवशता 
त्रासदी ये मानव की 
ना स्वयं पे इतना इठला 

जीने दो बेज़ुबानों को 
खिलने दो बागानों को 
किया धूमिल सौंदर्य सृष्टि का 
ए मानव अब तो संभल जा 

बेबस थी, लाचार थी 
सृष्टि अत्यंत आहत थी
ढंग जीवन शैली का रोज़ नया 
बना मानव के लिए ही विपदा 

सुन वेदना इस सन्नाटे की 
है इनमें गहन दर्द छिपा 
रोता सन्नाटा करे इशारे 
ना सृष्टि संग खेल रचा 


                                 विनीता पुंढीर 


कभी तो



तुम ख्वाहिश हो मेरी 
कभी तो मुझे मिला करो।
तुम दुआ हो मेरी 
कभी तो कबूल हुआ करो।
तुम मोहब्बत हो मेरी
कभी तो पूरी हुआ करो।
तुम जहान हो मेरा
कभी तो मुझ पर 
मर मिटा करो।
तुम धड़कन हो मेरी
कभी तो मेरे
दहकते दिल में धड़का करो।
तुम सांस हो मेरी 
कभी तो जीने की 
ख्वाहिश से
मुझ में आया करो।
तुम इश्क हो मेरा
कभी तो तुम
मोहब्बत के बहाने 
मेरे शहर में आया करो।
तुम चाहत हो मेरी
कभी तो मेरे 
अनाहत द्वार को छुआ करो।

                                      राजीव डोगरा 'विमल'


चेहरों से चेहरे




चेहरों से चेहरे आज उतरने लगे, 
हम चुप क्या हुये गूंगे बकने लगे ।

लोगों की सोच आजकल उनकी, 
अपनी आंखो से ही बयां होती है। 

क्या जानो तुम की तन में पर्दा, 
नारी की आंखों में हया होती है। 

हमारा चुप रहना लाजिमी था, 
मगर उन्हें लगा हम उनसे डरने लगे ।

कौन समझाये अक्ल के अंधो को, 
बेगैरती की मिट्टी में सने उन बंदो को ।

कि गैरत हमारी हम पर पहरा देती है, 
बेगैरती तुम्हारी जख्म गहरा देती है। 

पर हम खुद की खुदाई में जिंदा है, 
तभी तो तुम जैसे लोग शर्मिंदा है। 

आज आग हो कल राख हो जाओगे, 
खुद जलोगे गर किसी और को जाओगे। 

मिट्टी के जिस्म पे मत इतना गुमान करो, 
इंसान हो तो इंसानियत का सम्मान करो। 

एक दिन चंद लकडिय़ों के सुपुर्द हो जाओगे, 
जागेंगे कर्म तुम्हारे और तुम सो जाओगे। 

मानव तन पाया है तो कुछ नेक काम करो, 
मां बाप को तीर्थ समझ घर में चारो धाम करो। 

बाद में करनी पर पछताने से क्या फायदा, 
याद रखो भूलो मत इंसानियत का कायदा। 

हंस कितना भी भूखा हो पत्थर नहीं खायेगा, 
हमें मिट्टी में मिलाने वाला खुद मिट्टी में मिल जायेगा। 

                                                                 आरती त्रिपाठी


बढ़ती जनसंख्या, घटते संसाधन


      जनसंख्या वृद्धि कही न कही हमें आने वाले समय में भयंकर दुष्परिणाम की तरफ ले जा रही है, इसपर हम आज न सचेत हुए तो आने वाले समय में संसाधनों के लिए महायुद्ध जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता हैं । क्योंकि दैनिक उपयोग के संसाधन जैसे की पेट्रोल, डीजल, पेयजल, निवास और खेती हेतु भू-भाग इत्यादि सीमित मात्रा है। 





     जनसंख्या नियंत्रण कानून यदि तत्काल में प्रभावी नहीं किया गया तो आने वाले निकट भविष्य में संसाधनों के लिए देश में गृह-युद्ध का सामना करना पड़ेगा । जब सीमित संसाधन के लिए उपयोगकर्ता ज्यादा होंगे तो उन संसाधनों पर अधिकार के लिए भ्रष्टाचार और अपराध भी बढ़ेंगे। 
     जैसा की हमारे देश में कृषि योग्य भूमि विश्व का 2.4% है , पेय-जल विश्व का 4% है और जनसंख्या  विश्व का 20% हैं जो कहीं न कहीं ये इंगित करती है कि भविष्य में हालात रोटी एक और खाने वाले दस जैसे होने वाली हैं। जनसंख्या नियंत्रण पर हमें अपने पडोसी देश चीन से सबक लेनी चाहिए चीन 96 लाख वर्ग किलोमीटर में पसरा है और  भारत 33 लाख वर्ग किलोमीटर से भी कम में है, इस तरह आंकड़ों के हिसाब से भारत की आबादी चीन से कम है, लेकिन क्षेत्रफल की तुलना से देखें तो यहां जनसंख्या घनत्व में हम पहले से ही चीन से आगे निकल चुके है। आज के समय में चीन में प्रति मिनट जन्म-दर 11 बच्चें का और हिंदुस्तान में 33 बच्चों का , इस आकड़ों के आधार पर हम कह सकते हैं की यदि जनसंख्या  नियत्रंण के लिए जल्द को कठोर दंडात्मक कानून नहीं बनाया गया तो  आने वाले 5-7 साल में चीन  को पछाड़ नंबर एक पर काबिज होंगे, जो कि विकास में बाधक होगा क्योंकि संसाधन उतने ही रहेंगे और उपयोगकर्ताओं की संख्या ज्यादा होने से भुखमरी, बेरोज़गारी, आपराधिक गतिविधि, और बीमारी जिसे संकट का सामना करना पड़ेगा , क्योंकि सबके इलाज के लिए उतने अस्पताल ना होंगे, सृजित उतने रोज़गार ना होंगे, खेतों में पैदावार अन्न से सबकी भूख ना मिटेगी और सबको अच्छी और सस्ती शिक्षा ना होने से अशिक्षितों के वजह से लोग तनावग्रस्त होकर आपराधिक प्रवृत्ति के तरफ रुख करेंगे और पर्यावरण ज्ञातों के अनुसार भू-भाग पर 33% पेड़ - पौधे भी होना चाहिए संतुलित पर्यावरण के लिए।

      भविष्य में संसाधन के संकट और आपराधिक गतिविधियों पर रोकथाम पर अंकुश रखना चाहते हैं तो मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में जन्मे बालकवि वैरागी जी के नारे हम दो हमारे दो पर अध्यादेश लाना होगा। जंहा तक मेरा मानना है हम दो हमारे दो  के जगह हम दो हमारे एक का कानून लाना चाहिए, इसके लिए पहले लड़के-लड़कियों में  लिंग के आधार पर भेदभाव मिटाना होगा (हाँ मानता हूं एक संतान में एक डर हैं असमय संतान की मृत्यु का , उस अवस्था में हम देश में संचालित विभिन्न अनाथालयों से किसी बच्चे को गोद लेकर उसे सुखद भविष्य भी दें सकते हैं) । आंध्रा, गुजरात महाराष्ट्र,ओडिशा और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में परिवार नियोजन जैसे प्रावधान हैं, अभी हाल में ही उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में दो संतानों तक वाले अभिभावक को चुनाव लड़ने की छूट रहेगी ऐसा मुद्दा भी चर्चा में हैं , बेशक क़ाबिले तारीफ भी है ऐसा कानून लेकिन ऐसे कानून केवल पंचायत स्तर पर ही नहीं अपितु राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव और बाकी सरकारी सुविधाओं में भी समय-सीमा (कानून बनने के बाद जिनके ज्यादा संतानें होंगी उनको इन सब सुविधाओं से वंचित किया जाएँ, कानून के पूर्व जिनके संतानों की संख्या ज्यादा हो उन्हें सुविधाएँ पूर्व की भांति मिलती रहे ) के साथ लागू होना चाहियें । 

          जनसंख्या नियंत्रण कानून चीन ही नहीं बल्कि बहुत के देशों ने यही कानून बनायें , उदाहरण के रूप में ईरान को ही ले लिजिये 1990 में वहाँ के तत्कालीन राष्ट्रपति ख़ुमैनी साहब ने हम दो हमारे दो का कानून लाएँ , जिसके आधार पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने करुणाकरण समिति का गठन किया , जिस समिति ने काफी अध्ययन के बाद ये स्वीकार किया भारत में भी ईरान जैसा जनसंख्या नियंत्रण कानून का जरुरत हैं कानून की जरुरत हैं , वो अलग बात हैं की किसी राजनीतिक कारणवश वो कानून अभी तक नहीं बन पाया यदि नियम उस समय लागू हो गया होता तो आज हमारे देश की जनसंख्या सवा सौ करोड़ होती, साल 1975-76 में जनसंख्या नियंत्रण  हेतुं नसबंदी जैसे तानाशाही कानून तो आया जिसमें अविवाहित पुरुषों को भी पकड़कर नसबंदी किया गया था, जिससे लोगो के बीच एक गलत सन्देश गया ।

               22 फरवरी, 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने न्यायमूर्ति एम एन वेंकटचलैया (जिन्होंने राइट टू फूड, राइट टू एजुकेशन और मनरेगा जैसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में महत्वपूर्ण योगदान किया) की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग का गठन किया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर 4 जज , 2 सांसद और कई बड़ी हस्ती थे, इस आयोग ने दो साल के विस्तृत अध्ययन के बाद कहा कि संविधान में अनुच्छेद 47A को जोड़िये और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाइये दुर्भाग्य से कुछ राजनीतिक समीकरणों के वजह से इस कार्य का भी शुभ आरम्भ नहीं हो पाया ।

     आज देश के विकास के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून पर सभी राजनीतिक दलों को राष्ट्रहित में साथ आना होगा और सामाजिक संगठनों, धार्मिक गुरूओं, शिक्षित और युवा वर्गों को चाहिए की लोगों को जनसंख्या विस्फोट पर अंकुश के लिए जागरूक करें ।


                                                                                        अंकुर सिंह 


।। हिंदी दिवस ।।


सबसे अद्वितीय, सबसे निर्मल, 
सबसे अनुपम ,सबसे सरल
वह भाषा जो जोड़े है हम सबको, 
एक गलियारा, एक शहर 
एक राज्य और एक वतन।।

जिसके हर अक्षर ज्ञान से ,
नित नये शब्द रचे हमने ,  
उन शब्दों को पिरो माला में
बोलना,पढ़ना सीखा हमने।

यही वो भाषा है जिसमें माँ,
सुलाती थी लोरी गा कर ।

इसी भाषा में आवाज दे,
साथियों संग खेला करते थे गली-गली।

सोने,चांदी,हीरे,मोती
जैसी है अपनी भाषा ।

सबसे सरल, श्रेष्ठ और सुंदर,
मिश्री सा रस देने वाली,
विश्व पटल पर ,
देश का अभिमान है हिंदी।

संस्कृत और उर्दू की बहन है, 
ग्रन्थों का भंडार है हिंदी।

जिस राष्ट्र में रक्खो कदम तुम ,
पहचान तुम्हारी है ये हिंदी।

व्यक्त कर सको स्वतंत्रता से भाव और विचार अपने,
ऐसी अपनी भाषा है हिंदी ।

उठो,सोचो और समझो कि
कितनी जीवनदायिनी भाषा है हिंदी।

लो संकल्प आज हिंदी दिवस पर, 
सिर्फ आज ही नहीं अपितु हर दिन बनायेंगे अपना दिवस हिंदी।

                                               तनूजा पंत


काश इल्म होता तुम्हें




क्या कहा.....आसां है 
काश इल्म होता तुम्हें....

शुरू से शुरू वो हर बात करना
तेरी यादों का हर इक हिसाब करना....

फिर से इक न‌ए घर को बना कर
पलकों पर बिखरे ख़्वाबों का लिहाज करना.... 

हर रोज़ शब ढलते ही, न‌ए सहर के इंतज़ार में
महज़ चांद को तक कर, नींद से फ़िराक़ करना.... 

यकीनन उक़्दा-ए-मुश्किल है ये, जितना तेरे जाने पर,
इन आंखों को आंसुओं से निजात दिलाना...

काश इल्म होता तुम्हें.....!


                                                  शेजल


हे परमेश्वर हे दाता....




हे परमेश्वर हे दाता
 हे दया सिंधु प्रदाता 
हे गुण निधान हे मुक्तेश्वर 
 हे निराकार है परमात्मा ।

तू मुक्तिधाम तू शक्तिधाम ,
तू त्रिलोकीनाथ है अमरनाथ 
तू पालनकर्ता तू रचयिता
तू शांति धाम तू परमधाम।

 हे मानव तू चितकार ना कर
 इस देह का तू अभिमान ना कर
 शून्य में था और शून्य में ही मिल जाएगा 
निज मानव हित धरती पर कुछ कल्याण तो कर।
 हे परमेश्वर हे दाता.... 

तुझे प्रेम मिला परिवार मिला 
सुख वैभव का संसार मिला
 तू भूल गया निज मानवता 
तूने प्रकृति का परिहास किया।
 हे परमेश्वर हे दाता... 

तू मूलाधार तू शिष्टाचार 
है जग निधान करुणानिधान 
तू दिव्य चक्षु तू कल्पवृक्ष 
तू आत्मरूप परमात्म रूप ।

हे मानव अब अंधकार मिटा 
सच्चे मानव का फर्ज निभा 
तू भूल गया निज आत्मज्ञान 
अभिमान का अब अवशेष मिटा
 हे परमेश्वर हे दाता..।


                                      किरन पंत 'वर्तिका'