साहित्य चक्र

16 December 2022

दहेज लालसा





दहेज की लालसा भी मन ही मन रखना, दहेज लेने के तुल्य है!
फिर यह बोलना "भाई साहब जो देना है, आपको अपनी बिटिया को ही देना है", यह कथन भी दहेज लेने के तुल्य है!!
हमें कुछ नही चाहिए पर चाहिए इक "पढ़ी - लिखी, उच्च कुल की और कमाऊ बहू", यह वाक्य भी दहेज लेने के तुल्य है!
कुछ माता - पिता को चाहिए इकलौती लड़की, यह भी दहेज लालसा का उधारण है!!
जिनको दहेज नही मिला, पर तमाम उम्र यह गीत गुनगाना "हमे कुछ नही मिला" यहभी दहेज लेने के तुल्य है!
आपने अपनी बेटी को कुछ नही सिखाया, रोज तिल का ताड़ बनाना यह भी दहेज लेने के तुल्य है!!
अपने लालच को सामाजिक व्यवस्था का नाम देना यह भी दहेज के तुल्य है!
अपनी ख्वाहिशों के लिए दूसरों का इस्तेमाल करना यह भी दहेज के तुल्य है !!
बिटिया शादी-ब्याह के बाद भी अपने मायके में झुकाव रखे, यह न किसी को भाता है!
फिर यह ताना देना तुम ना यहाँ की हो पायी यह भी दहेज लेने जैसा है!!
ना दहेज लेगें और ना दहेज का जिक्र करेंगे, आओ घर - घर तक यह सन्देश पहुँचाते है!
हर परायी लड़की को अपनायेंगे सच्चे ह्रदय से और बिना इक शिकायत के, सारे समाज तक ये प्यारा सन्देश पहुँचाते हैं!!


- रजनी उपाध्याय



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