साहित्य चक्र

19 September 2021

कण-कण से किस्मत लिखना


धरती के कण-कण से  
तू अपनी किस्मत लिखना 
मेहनत की डगर पर 
यू ही.. तू बढ़ता जाना 

हवा का रूख बदलने की
तू कोशिश मत करना 
भाग्य का भरोसा मत करना 
आज जो साँसे हैं... 

उन साँसों का भी 
भरोसा मत करना 
यू तो जिंदगी कट जाऐगी... 
कटने से पहले ! 
धरती के कण - कण से 
तू अपनी किस्मत लिखना 

                                              मणिकान्त 


14 September 2021

कविताः हिंदी अपनाएं


भारत माता के माथे की ,
बिंदी है यह हिंदी।

हिंदी में बसने वालों वीरो,
 आओ एक अभियान चलाएं।

आओ हिंदी को अपनाकर ,
भारत मां का मान बढ़ाएं।

हिंदी के गौरव के खातिर ,
आओ एक परिवार बनाएं।

जीवन में अपना के हिंदी ,
देश का मान बढ़ाएं।

बच्चे ,युवा हम सब मिलकर, 
घर-घर में हिंदी पहुंचाएं।

हिंदी है संस्कार की जननी ,
हम इसकी अलख जगह।

हिंदी हमारी मातृभाषा,
आओ हम सब मिलकर,
अपनी मांँ को अपनाएं।


                                       डॉ. माधवी मिश्रा "शुचि"



12 September 2021

रतनगढ़ का रहस्यमयी इतिहास

रतनगढ़ की राजकुमारी को हासिल करने की नियत से कर डाली थी उनके सात भाईयों की हत्या फिर भी उन्हें कभी ना पा सका।


अलाउद्दीन ख़िलजी मानव के रूप में एक बहशी दरिंदा राक्षस था।करीब चार सौ साल पुरानी घटना है जब मुस्लिम तानाशाह अलाउद्दीन खिलजी ने, पारस पत्थर जो किसी भी धातु को सोने में बदल देने की रहस्यमयी शक्ति रखता था, उस अद्भुत पत्थर को पाने के लालच में मध्यप्रदेश की पावनभूमि पर जगह-जगह आक्रमण करने शुरू किए और इसी बीच उसे रतनगढ़ की राजकुमारी की सुंदरता के विषय में सुनने को मिला। बस इतना सुनते ही वासना के भूखे उस दरिंदें ने उस राजकुमारी को हर कीमत पर हासिल करने की योजना बनायी और सेंवढ़ा से रतनगढ़ में आने वाला पानी बंद कर दिया तो राजा रतन सिंह की बेटी मांडुला व उनके भाई कुंअर गंगाराम देव ने इसका मुखर विरोध किया। 


बस इसी बहाने क्रूर अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने रतनगढ़ किले पर अपनी पूरी सेना के साथ हमला कर दिया और उस भयावह युद्ध में राजकुमारी मांडुला के 6 भाइयों की बड़ी ही बेरहमी से हत्या करके जैसे ही वह महल की तरफ बढ़ा तो मांडुला के सबसे छोटे 7वें भाई ने कहा, 'हम पीठ नहीं दिखा सकते हम लड़ेगें।' यह सुनते रोते हुए मांडुला ने अपने भाई को तिलक लगाकर युद्ध विजय को भेजा पर जहां पहुंच कर सांतवा भाई उस ख़िलजी की सेना पर मौत बन टूट पड़ा और अनेकों सैनिकों को कीड़े-मकोड़े की तरह मरता देख ख़िलजी के इशारे पर उनका युद्ध से ध्यान भटकाने वास्ते उनपर कई जहरीले नाग फिंकवा दिये गये पर कुँवर साहब के दिव्य तेज के सामने सब नाग नतमस्तक, किसी नाग ने उन्हें नहीं काटा। 


यह देख खिलजी ने कुँवर सिंह के पीठ पर वार करके बड़े ही मक्कारी से षड्यंत्र के तहत मार दिया। सांतवे भाई को भी क्रूरतापूर्ण तरीके से मारने की यह खबर कुछ विश्वासपात्र सैनिकों ने अपनी जान पर खेल कर उनकतक पहुंचायी। इधर क्रूर खिलजी यह  सोचने लगा कि अब वह जीत गया तुंरत महल में घुस कर अपना ख्वाब पूरा करेगा। 


इतने मैं ही राजकुमारी ने जैसे ही यह बुरी खबर सुनी तो वह वहीं किले के पीछे पहाड़ों पर जाकर चीखीं कि हे! धरती माँ यदि मैं पूरी तरह पवित्र हूँ और हम सब अपनी मातृभूमि के लिए लड़े हैं और अगर मैं तेरी सच्ची भक्त हूँ तो हे! धरती माँ, मुझे अपनी गोद में स्थान दो। और तभी वहां पहाड़ों में विवर उठा यानि गहरा गड्डा हो जाना/धरती फटी और राजकुमारी उसी में समां गयी। 


यह सब देखकर ख़िलजी बौखला गया और सिर पीटता हुआ वहां से लौटा जिसमें उसके भी बड़ी संख्या में लोग मारे जा चुके थे। बता दें कि मुसलमानों से युद्ध का स्मारक हजीरा पास में ही बना हुआ है। हजीरा उस स्थान को कहते हैं जहां हजार से अधिक मुसलमान एक साथ दफनाये गये हों। विन्सेण्ट स्मिथ ने इस देवगढ़ का उल्लेख किया है जो ग्वालियर से दस मील की दूरी पर है। युद्ध में मारे जाने वाले राजकुमार का चबूतरा भी यहां बना हुआ है जिसे कुंवर साहब का चबूतरा कहा जाता है।


कुँवर जी लोकदेवता के रूप में विख्यात- बुन्देलखण्ड के प्रायः प्रत्येक गांव में, गांव के बाहर अथवा भीतर एक चबूतरे पर दो ईंटें रखी रहती हैं जिन्हें कुंवर साहब का चबूतरा कहा जाता है। इन्हें जनमानस में लोक देवता के रुप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। सामान्य व्यक्तियों को इनके सम्बन्ध में केवल इतना ही बात है कि ये कोई राजपुत्र थे। अनेक स्थानों पर बहुत प्राचीन सर्प के रुप में भी ये दिखाई देते हैं। उस समय एक दूध का कटोरा रख देने से ये अदृश्य हो जाते हैं। ऐसा लोगों का विश्वास है।


यह गांव नहीं दुर्ग है- यह जगह कोई गांव नहीं है बल्कि मध्यप्रदेश के दतिया जिला के सेंवढ़ा से आठ मील दक्षिण पश्चिम की ओर रतनगढ़ नामक एक स्थान है। यहां एक ऊंची पहाड़ी पर दुर्ग के अवशेष मिलते हैं। दुर्ग सम्पूर्ण पत्थर का रहा होगा, जिसकी दीवारों की मोटाई बारह फीट के लगभग है। यह पहाड़ी तीन ओर से सिन्धु नदी की धारा से सुरक्षित है। इसी विचार से यह दुर्ग बनाया गया होगा। यहां उस पहाड़ी पर एक देवी का मंदिर बना हुआ है जिसे रतनगढ़ की माता के नाम से जाना जाता है।


रहस्य- जब राजकुमारी विवर में समां गयीं तब से यह जगह बहुत विरान हुआ करती थी पर एक दिन ऐसा हुआ कि जंगल में घूमते कुछ लोगों को सांप ने काट लिया। तो वहां कुछ लोगों ने मिलकर बंध लगाया और राजकुमारी व उनके सांतवे भाई का नाम आन देकर वह बंध लगा दिया कि अब वह उसे अस्पताल ले जा सकते हैं पर तभी रहस्यमयी घटना घटी कि वह लोग प्राकृतिक रूप से इकदम स्वस्थ हो गये। तबही से वहां सांप कटे लोगों को राजकुमारी व कुँवर जी के नाम से बंध लगाने का काम शुरू हुआ और भीड़ जुटने लगी तो भक्ति भाव से सराबोर लोगों ने राजकुमारी को अपनी माता मानकर उनका सुन्दर मंदिर बनवा दिया और यह मंदिर रतनगढ़ की माता के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हुआ। आज वर्षभर 25 लाख से ज्यादा श्रद्धालु रतनगढ़ वाली माता के दर्शनों को आते हैं और माता उनकी मुरादें पूरी करतीं हैं।


मंदिर में है सबसे बड़ा घण्टा- रतनगढ़ माता के मंदिर पर देश का सबसे वजनी घंटा (ध्वनि-यंत्र) है। विशेष पूजा अर्चना के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सपत्नीक (साधना सिंह) इस घंटे को अर्पित किया। यह अनूठा एवं आकर्षक घंटा लगभग 21 क्विंटल वजनी है। देश के किसी भी मंदिर में स्थापित यह सबसे बड़ा घंटा बताया जा रहा है। यह घंटा मंदिर में अब तक चढ़ाए गए श्रद्घालुओं के छोटे-छोटे घंटों को मिलाकर बनाया गया है।आधिकारिक जानकारी के अनुसार घंटे को टांगने के लिए लगाए गए एंगल व उन पर मढ़ी गई पीतल और घंटे के वजन को जोड़कर कुल वजन लगभग 50 क्विंटल होता है। इस घंटे को प्रख्यात मूर्ति शिल्पज्ञ प्रभात राय ने तैयार किया है।


नोट- यह स्थान इतना विरान है कि यहां रात में रूकना सख्त मना है। लोगों का मानना है कि  यहां इतना रक्तपात हुआ है कि लोगों की आत्मायें रात में विचरण करतीं हैं और आज भी राजकुमारी व उनके भाई की दिव्यात्मा अपने किले व आसपास फैले उस जंगल की रक्षा करते हैं। इतिहास साक्षी है कि जिनके कर्म पवित्र होते हैं वह देवताओं तक ऊँचा उठते हैं।


                                                     - आकांक्षा सक्सेना 



कविताः वैक्सीनेशन


गांव, नगर, जनपद, प्रदेश,
मिलकर बनता है नेशन ‌।
और देश सेवा का अवसर,
देता वैक्सीनेशन।।

फैली चारों ओर बिमारी,
त्राहि-त्राहि घर-आंगन।
छीन लिए जिस बिमारी ने,
अपने कितने प्रियजन ।।

क्रूर कोरोना सुरसा सम,
अपना मुख फैलाए ।
पवन पुत्र की भांति हमें भी,
रहना बचे बचाए ।।

समय-समय पर हाथ है धोना,
ध्यान रहे डिक्टेशन।।1।‌।

और देश सेवा का अवसर....


जुड़ी हैं हमसे जो -जो कड़ियां,
होंगी तभी सुरक्षित ।
जब स्वयं को रखेंगे हम,
दिनामान संरक्षित।।

माॅस्क पहनने को समझें,
हम सब न मजबूरी,
हम लेंगे संकल्प आज अब,
रखेंगे दो गज दूरी।।

मिटे कोरोना क्रूर बीमारी,
न नाम कहीं हो मेंशन।।2।।

और देश सेवा का अवसर...

सर्वथा हितकारी है,
वैक्सीनेशन जानो ।
वैक्सीनेशन की गुणवत्ता को,
सब ही पहचानो ।।

अवरुद्ध करो पथ अफवाहों का,
जागो और जगाओ ।
सुख, समृद्धि, आरोग्यता की,
मिलकर फसल उगाओ।
हे करुणापति! करुणा करो,
आए अमित सुमति सेशन।।3।।

और देश सेवा का अवसर,
देता वैक्सीनेशन..


                                          -अमित मिश्रा


कविताः तुम फिर मिलोगे



तुम मुझे फिर मिलोगे
कहां, कैसे,कुछ पता नहीं !

शायद मेरी कल्पनाओं के पर
पे सवार होकर..
मेरी प्रेरणा के स्रोत बन कर
मेरी लेखनी में समा जाओगे..
या फिर शब्दों में ढल कर
मेरे कोरे कागज़ पे बिछ जाओगे ?

यकीं है मुझे मेरे हमदम
हर तूफान से बचाकर तुम..
मीठी फुहारों से नहला दोगे !

आ कर मेरी ज़िंदगी में..
मुझे सम्पूर्ण कर दोगे !

और फिर वो दिन भी आएगा 
जब तुम मेरी जीत बनकर..
मुझे 'अपराजिता' कर दोगे !

मैं और तो कुछ नहीं जानती..
पर मेरे रूह में जब जब तुम उभरोगे
एक सिहरन सी जगाकर
क्या जिस्म के साथ यादों को भी
फना कर दोगे ?

                                       अपराजिता_मेरा_अंदाज


एक कविताः हिन्दी



हिन्दी है इक प्यारी भाषा ,
मेरे हिंदुस्तान की ।
बड़ी सरल है मेरे बच्चों,
भारत देश महान की ।।

नजमा बोले ,राखी बोले ,
और बोलते सुखविंदर ।
जॉन ,पॉल,और मोहन बोले,
भाषा बहुत है सुंदर ।।

इतनी प्यारी हिन्दी भाषा,
जन जन इसको बोले,
मातृ भाषा भी है अपनी ,
झूम झूम कर डोलें ।।

सब जन मिलकर हिन्दी का ही
हम परचम लहराएं ।
हिन्दी है समृद्ध हमारी ,
हिन्दी को अपनाएं ।।

हिन्दी का वैशिष्ट्य अनूठा
बात समझ जब आएगी।
पूर्ण विश्व मे उच्च पताका ,
हिन्दी की लहराएगी ।।


                                          डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव




कविताः रिश्ते



ये रिश्ते.. भी कैसे हैं रिश्ते
जब बनते.. तब जीवन खिलते
जब.. मन को पीड़ित करते
तब.. भीतर से जख्म रिसते

अपनों से.. ज्यादा गम होता है
औरों से कुछ.. कम होता है
लेकिन गम तो गम होता है
ज्यादा हो.. या कम होता है

गम की क्या.. परिभाषा है
जिससे बांधी.. अभिलाषा है
उसने डोर खींची.. जब मन की
नि:शेष हुई.. आशा जीवन की

इसी लिए सबसे.. कहता हूं
अपनी ही धुन में.. बहता हूं
आशाओं के दीप जलाओ
अपना जीवन हर्षित कर जाओ।


                                                     डॉ. प्रभात द्विवेदी


11 September 2021

लेखः विश्व साक्षरता दिवस





शिक्षा जीवन की रोशनी है। उसके उजाले में ही जीवन पथ पर चलने का हौसला, उम्मीद एवं जीवन जीने की किरण मिलती है।शिक्षा के बिना मानव पशु के समान है। शिक्षा के बिना जीवन में अंधकार ही अंधकार है। साक्षरता से व्यक्ति अपने अधिकारों को समझ सकता है। 

अपने कर्तव्यों का पालन कर सकता है। अपना स्वयं का और राष्ट्र के महत्व को समझ सकता है। इस प्रकार वह देश ही नहीं बल्कि दुनिया का शिक्षित समझदार नागरिक बनने की प्रथम सीढ़ी के रूप में आधार बन सकता है। 17 नवंबर 1965 में ईरान की राजधानी तेहरान में विश्व के अनेक देशों के शिक्षा मंत्रियों का एक सम्मेलन हुआ जिसमें यह प्रस्ताव रखा गया कि 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के रुप में मनाया जाए।

सन् 1966 में प्रथम विश्व साक्षरता दिवस मनाया गया तथा 2009-10 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा साक्षरता दशक घोषित किया गया। शिक्षा से ज्ञान, समझ पैदा होती है और ज्ञान से सोच-समझ और मजबूत सोच-समझ से कुशल व्यवहार से व्यापार तथा रोजगार प्राप्त किया जा सकता है तथा रोजगार से जीवन चलता है। 

सुखी जीवन के लिए पौष्टिक भोजन, वस्त्र मकान, शुद्ध पानी ,उत्तम स्वास्थ्य की आवश्यकता होती है।रोजगार के लिए साधनों की आवश्यकता होती है जिसके लिए दुनिया के सभी लोगों की श्रम-साधना की जरूरत है और इस श्रम साधना हेतु साधनों की। हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या के जनबल रूपी धन को धनबल में लगाने के लिए सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ महत्वपूर्ण कार्य है तो वह शिक्षा एवं शिक्षित और आदर्श नागरिक की।

आज के इस तकनीकी युग में साक्षर होना और उसका दूसरा जन्म होना है।व्यक्ति साक्षर होकर ही रोजगार प्राप्त कर सकता है और रोजगार से ही अपना देश और विश्व का विकास करना संभव है आज के इस दौर में, विश्व महामारी में दुनिया के प्रत्येक नागरिक को आत्मनिर्भर बनने हेतु तथा राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने हेतु उत्तम शिक्षा,स्वास्थ्य एवं रोजगार से ही संभव है। तभी हमारा विकास सही मायने में संभव हो सकेगा। 

आज इस विश्व महामारी कोरोना ने बच्चों की फिजिकल कक्षाओं को, वर्चुअल क्लास के रुप में ले ली है।जिसकी वजह से देश- दुनिया को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना जरूर करना पड़ रहा है। किंतु शिक्षा  घर-घर और द्वार-द्वार से शिक्षित-जन विद्या -दान के माध्यम से विश्व महायज्ञ में अपनी आहुति से संपन्न कर मानव मात्र का कल्याण हेतु इस महायज्ञ में अपनी आहुति देकर इसे सफल बना सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 4 अरब लोग मात्र साक्षर हैं वही 1 अरब लोग पढ़ना- लिखना भी नहीं जानते हैं। भारत में साक्षरता के आंकड़ों  को देखें तो केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 2018 में शैक्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक साक्षर लोगों की संख्या 79 प्रतिशत है जो ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या को मिलाकर है। 

ग्रामीण साक्षरता के रूप में 64.7%  है जिसमें 74.3 प्रतिशत पुरुष और 56.8% महिलाएं साक्षर है। शहरी क्षेत्र में 79.5% साक्षरता है जिसमें 83.7% पुरुष है एवं 74% महिला साक्षर हैं। इन आंकड़ों पर गौर करें तो महिलाओं के साक्षरता का आंकड़े पुरुष साक्षरता से पीछे हैं इसका मुख्य कारण देश में लिंग असमानता एवं रूढ़िवादी सोच का कारण है। आज नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में देने की बात कही गई है जिससे कुछ हद तक सुधार संभव है। 

महान कवि, साहित्यकार कन्हैया लाल सेठिया ने भी कहा है कि-

"मायड़ भाषा बोलता, जणने  आवे लाज।       
अस्या कपुता सूं दु:खी सगळो देश समाज।"


निजी एवं सरकारी स्कूल निरीक्षक बच्चों को गोद लेकर उनके भोजन,मनोरंजन एवं स्वास्थ्य तथा छात्रवृत्ति के माध्यम से भी निरीक्षक बच्चों को साक्षर करने में सहयोग प्रदान कर सकते हैं।


                                                    -डॉ. कान्ति लाल यादव


अभी भी हिंदी वहां नहीं जहां बताई जाती है


दिखावे के लिए हिंदी-हिंदी सब करें
ऑफिस में हिंदी में नहीं होता कोई काम
दिखावे की हिंदी से ही ले रहे 
दफ्तरों में बांटे जाते है बड़े-बड़े इनाम

पांच से चौदह सितंबर तक हर वर्ष
हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है
उससे पहले पूरा वर्ष हिंदी का मुखड़ा
किसी को नहीं सुहाता है

बड़े बड़े मंत्री और अधिकारी 
वो खुद हिंदी में कितना काम करते हैं और करवाते है
जिन पर है हिंदी को आगे ले जाने की जिम्मेवारी
यह तो फाइलों पर उनके द्वारा लिखे नोट बतलाते हैं

हिंदी के लिए राजभाषा मंत्रालय है
राजभाषा के लिए संसदीय समिति भी बनाई जाती है
पर किसमें इतनी हिम्मत जो उन से पूछे
वो समिति जब दौरे पर जाती है तो क्या कर के आती है

आंकड़ों का खेल हैं हकीकत कुछ और है
अभी भी हिंदी वहां नहीं जहां बताई जाती है
तीन छह महीने में होती हैं बैठकें
बैठकों में फिर आंकड़ों की जादूगरी दिखाई जाती है

देश का करोड़ों रुपया हिंदी के नाम पर
पानी की तरह बहाया जाता है
हिंदी के हिस्से में तो कुछ नहीं है आता
हिंदी का तो सिर शर्म से झुक जाता है

आज भी मेरे देश में बड़ी बड़ी निजी 
कंपनियों में फर्राटे से अंग्रेज़ी चलती है
हिंदी तो बेचारी दूर कोने में खड़ी
अंदर ही अंदर बुरी तरह से जलती है

अंग्रेज़ी तो गोरों की पसंद थी
देखने में भी बेशक इसका गोरा रंग है
हिंदी तो हिन्द की ही बेटी है
फिर भी क्यों आज तक अपने घर में तंग है

क्या कभी वास्तव में वह दिन भी आएगा
जब लोगों के दिमाग से अंग्रेज़ी का भूत उत्तर जाएगा
हिंदी हकीकत में सरताज बनेगी हिन्द की
हर हिन्दोस्तानी का सीना गर्व से तन जाएगा


                                                     रवींद्र कुमार शर्मा


कविताः श्री गणेश




विघ्नहर्ता - सुखकर्ता गणेश
करेंगे आज  घर - घर प्रवेश ।
रिध्दि - सिद्धि ,  शुभ -लाभ 
सहित पधारेंगे आज गणेश ।।

बुद्धिदायक ,चिंतामण गणेश
दूर करने आएं  हमारे क्लेश ।
प्रिय मोदन लड्डू  का भोग
पाकर हो जाते प्रसन्न गणेश ।।

फलदायक  एकदंत  गणेश
शुद्ध करने आएं है  परिवेश ।
माता-पिता की सेवा का पाठ
पढाने घर - घर आएं गणेश ।।

सुख समृद्धि दाता है गणेश
और खूबियां हैं कई विशेष ।
पूजे जो कोई खुशहाल रहे
करते कृपा उस पर विशेष ।।

शत्रु विनाशक है श्री गणेश
गुण जाने ब्रह्मा,विष्णु,महेश ।
गोपाल  करें  यही  कामना
जग सिरमौर  बनें मेरा देश ।।

                                           गोपाल कौशल "भोजवाल"


10 September 2021

कविताः हिंदी मेरी भाषा





प्यारी - प्यारी  सबसे न्यारी मेरी भाषा ।
हिंदी पर बिन्दी हिंदी प्यारी मेरी भाषा ।।

देश - विदेशों  मे  है  जिसका गुणगान  ।
सब से अच्छी  सबसे प्यारी मेरी भाषा ।।

ज्ञान - विज्ञान का अखूट भण्डार है  ये  ।
इसलिए सब जन-जन पढते मेरी भाषा ।।

हिंदी पढेगा गर भारत का बच्चा - बच्चा।
सम्प्रेषण में भी उपयोगी होगी मेरी भाषा ।।

खेल - सिनेमा जगत ने जिसको अपनाया ।
एकता का पाठ हमें पढ़ाने वाली मेरी भाषा ।।

सब  भाषाओं  के संग  जिसने मेल बिठाया ।
भाषायी-ज्ञान जन - जन तक लाई मेरी भाषा ।।

राष्ट्र - भाषा का मान-सम्मान  जिसको मिला ।
देव नागरी लिपि जिसकी वो वैज्ञानिक भाषा ।।

सूफ़ी-संत - साहित्यकारों ने जिससे यश पाया ।
जाति,धर्म-पंथ सब के मुख शोभित मेरी भाषा ।।

सविंधान ने जिस भाषा  को गौरवान्वित  किया ।
हिंदी दिवस के रुप में  जिसे मनाते वो मेरी भाषा ।।

अटल जी ने यू एन ओ में  जिसका मान  बढाया  ।
हिंदी  हैं  हम  वतन , हिंदी  है  प्यारी  मेरी  भाषा ।।


                                      मईनुदीन कोहरी "नाचीज बीकानेरी"


कविताः फिर से



तुमको जीवन की
मर्यादा के लिए
उठना होगा।
तुमको मानवता की
उदारता के लिए
फिर से
उस ईश्वर के आगे
झुकना होगा।
तुम्हें असत्य को
हराने के लिए
फिर से
सत्य से जुड़ना होगा।
तुमको मानवता की
रक्षा के लिए
फिर से
हार कर भी जीतना होगा।

                                      राजीव डोगरा


सूनी- सूनी सी जिन्दगी


सूनी- सूनी सी जिन्दगी 
विचरती थी अन्धेरों में,
न झांकता था कोई 
इन आँखो के घेरो मे।

न भरोसे का स्पर्श था
न आत्मविश्वास चेहरो मे।
एक नाजुक सा दिल,
बैठ जाता था,किसी कोनो मे।

घर की दीवारें भी लगती 
थी बिना छत की।
सुना है बेटियां बड़ी
लाड़ली होती हैं पिता की।

बड़ी छोटी सी उंगली थी
मेरी,    पकड़ न पायी।
इतनी अबोध थी,
 कि कुछ याद न रख पायी।

सोने का पालना
 किस काम का 
जब झुलाने वाले
 ही न थे ।
रब को भी तरस 
आया न उस पल ,
जुदा कर दिया एक पिता को,
दुधमुंहे बच्चो से जिस पल।

सुमन हिय के मेरे भी 
खिल गये होते,
एक बार ही सही ,
 गर स्वप्न मे ही आप 
मिल गये होते।


                                 विभा श्रीवास्तव


कविताः हुए क़त्ल हम



हुए क़त्ल हम बीच चौराहे पर
जान गई इसका कोई गम नहीं

पर दुखी हूं यह जानकर
वो लोग खुद तो धर्मी नहीं थे
जो चीख़ चीख़ कर कह रहे थे
कि मैनें उनके धर्म को ठेस पहुंचाई है

जबकि मैंने तो लिखा था कि

धर्म के नाम पर बलि देना गलत है
चाहे वो मनुष्य की हो या जानवर की

धर्म के नाम पर हिंसा करना गलत है
चाहे वो बचने के लिए हो या मारने के लिए

धर्म के नाम पर ग़रीब से पैसे ऐंठना गलत है
हमेशा दान लेना ही नहीं, दान देना भी चाहिए।

धर्म के नाम पर लड़कियों का शोषण गलत है
चाहे लड़कियां अपने धर्म की हों, या फिर पराए।

धर्म के नाम पर मानसिक शोषण भी गलत है
चाहे तकदीर के नाम पर हो या लकीरों के नाम पर

मैं जानता हूं वहां पर; कुछ तमाशबीन भी खड़े थे
जिनमें कुछ धर्मी थे और कुछ अधर्मी भी थे
धर्मी चुपचाप खड़े अपना धर्म निभा रहे थे

क्योंकि वह जानतें कि गलत हो रहा है
पर अधर्मीयों की तो सुनता ही कैन है

साहब; मैं आप के बारे में नहीं कह रहा
पर क्या आप भी वहीं पर थे


                                      अमनदीप सिंह रखड़ा



जीवन तो चलता रहता है


अभिलाषाओ का त्याग करों 
कर्म योग का अभ्यास करों 
जीवन तों चलता रहता हैं 
नित नये प्रयास करों ।

हर दिन कुछ नया करों 
बीज अच्छा बोयगो तो फल 
भी नेक मिलेगा।ना सोचो कल 
की आज कुछ नया करों ।

शोक से हाथ हटाते हो ना 
हर्ष से भी पश्चात्ताप करों 
वियोग में बैठे आँसू बहते 
संयोग में भी विलाप करों ।

बिन इंन्द्री के क्या  होना है 
सत्य पथ को प्राप्त करों 
जग जीवन में निस्वार्थ रहकर 
संग आत्मा के परमात्मा को प्राप्त करों ।


                                   - निर्मला सिन्हा