साहित्य चक्र

13 December 2022

शीर्षक: मेरे दिल की धड़कन




किसे ढूँढती हैं, मेरे दिल की धड़कन।
कौन चुराता है नींदें, देकर तड़पन।
क्यों बहकती हैं साँसे, किसी के लिए।
रोज आ जाता है, मेरा मीत बनकर।
सामने पर नहीं क्यों, वो आता है।
क्यों मुझे दूर रहकर सताता है।
ऐसा लगता है जन्मों का नाता है।
साथ क्यों वो नहीं फिर निभाता है।


 ढूँढती हैं जिसे मेरी नींदें।
ख्वाब में तो सदा वो ही आता है।
कोई बतला दो मिलने का रास्ता।
चैन अब बिन मिले नहीं मिलता।
क्या उसे याद आती नहीं है।
नींद उसकी चुराती नहीं है।
क्यों नहीं उसके सपने में आकर।
छवि मेरी सताती नहीं है।

 
रूठा है क्या किसी बात पर वो।
क्या ख़ता हो गयी है बताओ।
कोई तो मुझे उससे मिलाओ।
कुछ तरस हाल मेरे पे खाओ।
क्यों सपने मैं बस उसके देखूँ।
क्या है नाता मुझे ये बताओ।
है अगर कोई सम्बन्ध सच्चा।
तो उसे पास मेरे तो लाओ।


कब तक यूँही मिलें ख्वाब में हम।
अब हक़ीक़त में भी पास आओ।
रोज सपने दिखाकर जगाते हो।
पास में भी तो आकर जगाओ।
मान लो अब तो ये बात मेरी।
ना करो अब सनम पल की देरी।


दूरी अब मुझको भाती नहीं है।
क्यों तुम्हे याद आती नहीं है।
ख्वाब का ही तुम वादा निभाओ।
आओ अब मुझसे मिलने को आओ।
क्यों ना धड़कन की सुनते हो पीड़ा।
ये तो बजती है जैसे हो वीणा।
धुन गाती है ये प्रेम वाली।
फिर भी जीवन है क्यों खाली खाली।


चित्र में दिल के रंग भर जाओ।
आओ अब सामने अभी जाओ।
दूर रहकर ना धड़कन चुराओ।
जिंदगी बन मेरे पास आओ।
लो सुनों क्या कहती है धड़कन।
मत बढ़ाओ मेरे दिल की तड़पन।


                        - नृपेंद्र शर्मा "सागर"


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