साहित्य चक्र

14 December 2022

कविताः अंतर्मन को संवारते जा




जाने वाले को बार-बार रोका नहीं करते,
अकेले जीने से डरा नहीं करते,
टूट गया जो बर्तन टूटना था,
टूटे हुए बर्तन को भरा नहीं करते।

जाने दो जो आपका है नहीं,
वक्त पर मिलेगा जो आपके लिए है सही,
माना बहुत वक्त निकल चुका है,
पर विश्वास बाकी अभी हे कहीं।

क्यों किसी की राह को रोके हम,
क्यों समझे खुद को कम,
हर चीज बस में होती नहीं,
क्यों रखना किसी बात का वहम।

खुद को समझने में वक्त तो लगता है,
अपनों से जुदा होने का दर्द 
कोई अपना समझता है,
धैर्य के साथ स्वयं का धीरज बांधों
किसी भी दर्द को जाने में 
थोड़ा वक्त तो लगता है।

तू निडर बन, तू लहर बन,
आगे बढ़ और गदर बन,
अपनी लड़ाई कभी-कभी होती है खुद से,
अपनी कमजोरियों को हटाकर
एक नया सफर बन।

जीवन में आना जाना लगा रहता है,
हर वक्त तुमसे बस यही कहता है,
आगे बढ़ तू चलता जा,
अपनी कमजोरियों को हटाकर
सवरता जा,
अपनी कमजोरियों को हटाकर
सवरता जा।

                                         - डॉ. माध्वी बोरसे 


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