साहित्य चक्र

26 December 2022

कविताः उन्मुक्त

उन्मुक्त



मैं उन्मुक्त अनंत उड़ान का परिंदा हूँ...

खुश हो कि तुमने रोकी राह मेरी,
यह वहम है तुम्हारा.
झांको पैरों तले तेरी जमीन खाली है,
मैं हर दायरे से आजाद जुदा हूँ.

मैं उन्मुक्त अनंत उड़ान का परिंदा हूँ...

सिमटे हो तुम कुएँ की जगत तक,
तेरी औकात, तेरी सीमाएँ यही हैं.
रोकने की हैसियत नहीं किसी में मेरे सफर को,
मैं असीमित लक्ष्य भेदने की बेखौफ अदा हूँ.

मैं उन्मुक्त अनंत उड़ान का परिंदा हूँ...

- कुणाल

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