आया बुढ़ापा डर नहीं।
रोना-बिसुरना कर नहीं।
कस के कमर तैयार हो-
बिन मौत के तू मर नहीं।
जो है लिखा, होता रहे।
रथ वक्त का चलता रहे।
हम धैर्य छोड़ें क्यों भला?
चाहे कफन चढ़ता रहे।
कर्तव्य हम छोड़ें नहीं।
विश्वास भी तोड़ें नहीं।
इस जन्म का कर्जा चुके-
मन सत्य से मोड़ें नहीं।
कैसा अजब दस्तूर है?
क्यों हो रहा मगरूर है?
है जन्म जिसने भी लिया-
तो मौत भी मंजूर है।
- गीता चौबे गूँज
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