मत वहन करो मेरे विचार को
मुझे भी नहीं चाहिए
तुमसे अलंकार के भूषण।
मत वहन करो मेरी वाणी को
मुझे भी नहीं चाहिए
तुमसे छंदों के बंधन।
मत वहन करो मेरे अंतर्द्वंद को
मुझे भी नहीं चाहिए
तुमसे परिछंदों के द्वंद।
मत वहन करो मेरे अंत:वेगों को
मुझे भी नहीं चाहिए
तुमसे रागों की रागनी।
मत वहन करो
मेरे हृदय तल की असवादों को
मुझे भी नहीं चाहिए
तुम्हारे रसों से उत्पन्न रसायन।
- राजीव डोगरा
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