बीत गया साल नया साल फिर आया
कुछ को हंसाया कुछ को रुलाया
किसी को मिली झूठी दिलासा
आस के दरिया में किसी ने गोता खाया
किसी की कश्ती मंझधार में डूबी
गोते खिलाकर किसी को किनारे लगाया
गुमनाम अंधेरों में गुम हो गया कोई
उम्मीद का दीपक किसी के मन में जगाया
महरूम हो गया कोई मां बाप से
लाश को किसी ने हाथ नहीं लगाया
कफ़न भी नसीब नहीं हुआ किसी को
किसी को कंधे पर उठाकर शमशान पहुंचाया
देखता रहा दूर से वह तमाशा
कितनी मुश्किल से बीती वह परीक्षा की घड़ी
खौफ था चेहरे से झलक रहा सबके
राह में थी मुश्किलें मुंह बाए खड़ी
आओ नए साल में कुछ नया कर दिखाएं
कोई एक प्रण लें जिसको पूरा वर्ष निभाएं
हो सके तो नशे से रखें अपने आप को दूर
खुद भी समझें और दूसरों को भी समझाएं
दुआ करें कि नये साल में भारत खुशहाल हो
भारत का हर नागरिक खुश हो मालामाल हो
चारों दिशाओं में फैल जाए मेरे तिरंगे का असर
मेहनत की कमाई सब खाएं फ्री के लिए न जंजाल हो।
- रवींद्र कुमार शर्मा
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