साहित्य चक्र

31 December 2022

कविताः आस के सपने नया साल




बीत गया साल नया साल फिर आया
कुछ को हंसाया कुछ को रुलाया
किसी को मिली झूठी दिलासा
आस के दरिया में किसी ने गोता खाया

किसी की कश्ती मंझधार में डूबी
गोते खिलाकर किसी को किनारे लगाया
गुमनाम अंधेरों में गुम हो गया कोई
उम्मीद का दीपक किसी के मन में जगाया

महरूम हो गया कोई मां बाप से
लाश को किसी ने हाथ नहीं लगाया
कफ़न भी नसीब नहीं हुआ किसी को
किसी को कंधे पर उठाकर शमशान पहुंचाया

देखता रहा दूर से वह तमाशा
कितनी मुश्किल से बीती वह परीक्षा की घड़ी 
खौफ था चेहरे से झलक रहा सबके
राह में थी मुश्किलें मुंह बाए खड़ी

आओ नए साल में कुछ नया कर दिखाएं
कोई एक प्रण लें जिसको पूरा वर्ष निभाएं
हो सके तो नशे से रखें अपने आप को दूर
खुद भी समझें और दूसरों को भी समझाएं

दुआ करें कि नये साल में भारत खुशहाल हो
भारत का हर नागरिक खुश हो मालामाल हो
चारों दिशाओं में फैल जाए मेरे तिरंगे का असर
मेहनत की कमाई सब खाएं फ्री के लिए न जंजाल हो।


                               - रवींद्र कुमार शर्मा


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