साहित्य चक्र

13 December 2022

कविताः कुछ इधर- कुछ उधर



अधर सिहरते रहे कुछ इधर कुछ उधर।
जिस्म तड़पते रहे कुछ इधर कुछ उधर।

पास नहीं आ रहे दूर जा ना रहे,
हाथ तरसते रहे कुछ इधर कुछ उधर।

हुस्न अदा से नजर यूँ चुराता रहा,
स्वप्न सँवरते रहे कुछ इधर कुछ उधर।

आग रह रह कर सुलगे धुआं उठ रहा,
बदन झुलसते रहे कुछ इधर कुछ उधर।

बात दिलों की दिलों में सदा रह गई,
ख्याल उलझते रहे कुछ इधर कुछ उधर।

चैन "कुमुद" को नहीं बेखबर ना सनम,
नैन बरसते रहे कुछ इधर कुछ उधर।

-अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"


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