पास नहीं आ रहे दूर जा ना रहे,
हाथ तरसते रहे कुछ इधर कुछ उधर।
आग रह रह कर सुलगे धुआं उठ रहा,
बदन झुलसते रहे कुछ इधर कुछ उधर।
बात दिलों की दिलों में सदा रह गई,
ख्याल उलझते रहे कुछ इधर कुछ उधर।
चैन "कुमुद" को नहीं बेखबर ना सनम,
नैन बरसते रहे कुछ इधर कुछ उधर।
-अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
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