अजब सा सन्नाटा
सायों के दरख़्त
बेवजह का डर
मेरी तरफ़ बढ़ रहे लम्बे हाथ
कहाँ जाऊँ भाग कर
हर तरफ़ निगाह उसकी
चीलों का शोर , शहर से दूर
बहुत दूर थोड़ी सी शांति
नहीं सिर्फ़ वहम
वहाँ कुछ क्षण रहने का भ्रम
भागना चाहती हूँ दूर बहुत दूर
जहाँ कोई निगाह कोई सवाल नहीं
मैं और बस मैं
कोई जवाबदारी नहीं
उन्मुक्त रह सकूँ कुछ पल
जहाँ कोई हलचल नहीं
सिर्फ़ हो सुंदर संगीत
मधुर लहरियाँ, वो कूप की आवाज़
वो ठंडा जल , वो मदमस्त बयार
फिर से वहीं जाना चाहता हैं मन
एकदम शांत हो जाना चाहता हैं मन
- डॉ. अर्चना मिश्रा
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