साहित्य चक्र

31 January 2021

भूख



मुझे बेशक गुनहगार लिखना
साथ लिखना मेरे गुनाह,
हक की रोटी छीनना ।

मैंने मांगा था,
किंतु,
मिला तो बस,
अपमान,
संदेश,
उपदेश,
उपहास,
और बहुत कुछ ।

जिद भूख की थी,
वह मरती मेरे मरने के बाद ।

इन,
अपमानो,
संदेशों,
उपदेशो,
उपहासो,
से पेट न भरा,
गुनाह न करता
तो मर जाता मैं,
मेरे भूख से पहले ।

मुझे बेशक गुनहगार लिखना
लिखना,
मैं गुनहगार था,
या बना दिया गया ।

हो सके तो,
लिखना,
उस कलम की,
मक्कारी,
असंवेदना,
चाटुकारिता,
जिसकी
नजर पड़ी थी,
मुझ पर मेरे गुनाहगार
बनने से पहले
लेकिन,
उसने लिखा मुझे,
गुनहगार बनने के बाद ।

                                 - सूरज सिंह राजपूत 


लड़के हमेशा बुरे नहीं होते....!


किसने कहा लड़के बुरे होते हैं....
लड़की को देखकर पहले वो भी शर्माते हैं
हो खोने का डर तो वो भी अक्स बहाते हैं
वो भी दोस्ती और प्रेम में निस्वार्थ होते हैं 
हर लड़का गलत हो नहीं सकता
और हर लड़की शरीफ हो नहीं सकती
लग जायेगा बुरा कुछ लोगों को पढ़कर
लड़कों के भी दिल होते पत्थर नहीं  
हमेशा क्यों लड़कों को दोष देती है दुनिया 
प्यार की शहनाई गरीब के घर बजते न देखी
कभी गरीब बेरोजगार को संवारते न देखा 
प्यार गरीब से शादी अमीर से करते देखा 
प्यार खुद करें, शादी पर परिवार को खींचती हैं
हमेशा लड़कियां लड़कों को बेवफा बोलती हैं
दो आंसू गिराकर लड़कों को तोड़ो 
दो मीठी बातों से नाता जोड़ो 
पूरा करियर बर्बाद कर देतीं हैं लड़कियां 
हमेशा खुद की गल्ती पर पर्दा डालना
हमेशा लड़की होने का फायदा उठाना
हर लड़के को एक सा समझतीं हैं लड़कियां 
इसलिए अक्सर धोखा खातीं है लड़कियां 
महिला आयोग क्यूं पुरूष आयोग नहीं होते
जो मां-बाप की बुराई करे वो तेरा प्यार नहीं 
जो हमेशा तन को निहारे वो भी प्यार नहीं 
जो तुम्हारे बैंक डिटेल पूछे वो भी प्यार नहीं 
जो तुम्हारी बुराई पीछे करे वो भी प्यार नहीं 
जो तुम्हारे धर्म को गाली दे वो भी प्यार नहीं 
जो तुमको रिमोट कंट्रोल करे वो भी प्यार नहीं 
जो तुमको भद्दी गाली दे वो भी तेरा प्यार नहीं 
जो गरीब का मजाक बनाये वो भी प्यार नहीं 
जो तेरे सपनों से तुझे ही डराये वो भी प्यार नहीं 
जो लोगों को लूट कर कमाये वो भी प्यार नहीं 
जो हर बात में झूठ ही बोले वो भी सच्चा प्यार नहीं 
आजकल शादीशुदा रईसों से प्रेम करतीं लड़कियां 
आजकल शादीशुदा महिलाओं से प्रेम करते लड़के
सच कहूं तो यह सिर्फ़ लालच है, कहीं प्यार नहीं 
जो लोगों की गृहस्थी उजाड़े वो तो 'इंसान' ही नहीं 

                                                         आकांक्षा सक्सेना 


सृजन



मेरा सृजन , मेरे अल्फ़ाज़
मेरी रचना , मेरी सोच
तुम्हारे मनोरंजन के लिए नही है ।

मेरी दुकान पे तुम्हे ,
हँसी का ठहाका नही मिलेगा।

में लतीफ़ों का व्यापार 
नही करता।

मेरा सृजन बदलाव का है ।
मेरा सृजन मंथन का है ।

अगर मेरे अल्फाज़ो के 
फूलों की महक ,
तुम्हे रोमांचित कर जाए 
तो तुम्हारा स्वागत है ।

मेरे सृजन की माला पहन कर
 अगर तुम बदलाव कर पाओ तो,
  तुम्हारा स्वागत है ।

मेरा सृजन ना भूत का ,
ना  भविष्य के सुनहरे सपनो का,
मैं तुम्हें मुंगेरीलाल के सपने भी 
नहीं दिखा पाऊंगा,
 ना शेखचिल्ली की तरह 
सपनों में जीना सिखाऊंगा।

मेरा सर्जन तो वर्तमान का है 
आज के यथार्थ का है
 सच तो यही है
 जो आज है वही सत्य है

                                                       कमल राठौर साहिल


बाग़ के फूल

बाग़ के फूल
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इस बाग़,
के फूलों ने,
मुस्कुराना,
खिलखिलाना,
मंद-मंद बयार;
में हौले-हौले ;
सिर हिलाना,
कभी हाँ कहना !

कभी न कहना!
छोड़ दिया है।
बस अब,
चुपचाप रहना;
सीख लिया है।

इस बाग़ ,
के फूलों ने,
महकना छोड़ दिया।
अब आप कहीं,
और जाया करो,
जबां फूल खिलें;
महकें और झड़ जायें!

हर रोज़ ,
एक जीवन जीयें;
रोज़-रोज़ मर जायें !

किसे अपना कहें?
किसे पराया?
बार- बार किसी को,
देखना,परखना;
किसे अच्छा लगता है ?
-----------

                                 राजेश ललित


नया प्रपंच


उड़ाकर आस्था की धूल ,वो अंधा बनाएगा।
चढ़ावा लूटने का इक नया प्रपंच लाएगा ।

कहेगा धर्म है सब कुछ,लुटा दे जान अ हिन्दू 
निहायत झूठ से वो जातीय धंधा बचाएगा ।

गली में शोर था,कुछ धार्मिक संगीत व ढोंगी,
लगा भगवान के गुर्गों से इक तूफान आएगा।

दिखाकर झूठ की फोटो,लगाकर धर्म का नारा 
लहू में घुल चुके अज्ञान को 'दर्शन' बताएगा ।
 
चलो इस बार हम पूछें नही देंना चढ़ावा सुन,
तेरा मंदिर गरीबी भूख को कैसे मिटाएगा ?

समझते है तेरे ये पर्व-रीति-नियम व बंदिश 
कमेरे वर्ग की पूँजी, नही अब लूट पायेगा ।

                                                   Bheewa Kabeer


"नन्हा पंछी"



देख कुहासे की ओर तनिक,
मन में विचार यह आता है,
धुंधली सी चादर में लिपटा,
नन्हा पंछी घबराता है।

मन की ठिठुरन बढ़ती जाती,
कपकपी सी उसको लगती थी,
कुछ कही कभी,अनकही कभी,
लौ इसकी जलती बुझती थी।

कितने सावन यूं बित गए,
हरियाली आई चली गई,
इस ठंड कुहासा के कारण,
मन की उजियाली चली गई।

फिर एक प्रकाश की किरण पुंज,
नभ में जब छटा बिखेरा था,
आशा का पुष्प खिला थोड़ा,
रोशन एक नया सवेरा था।

नन्हा पंछी उठकर देखा,
गुंजन सी कलरव गान सुना,
उर में आनंद बसा था फिर,
अपने मन में ही रमा धुना।

फिर उसने अपने अंतर्मन को,
एक राज समझाया था,
दुख की कश्ती को आशा की,
पतवार से पार लगाया था।

                                प्रियदर्शिनी तिवारी


गणतंत्र दिवस



गणतंत्र दिवस आ गया, हर्षोल्लास हो गया,
 चारों और धूम मची, हर गली में नारा गूंज गया।

 प्रभात फेरी का दौर चला, हर भारतीय में जोश बढ़ा,
भारतीय संस्कृति की चुनर ओढ़, चल पड़े सब नर नारी, 
तिरंगे की धूम मची, भारत माता की जय के नारे गूंजे, 
गणतंत्र दिवस आ गया हर्षोल्लास छा गया।

नवपरिधान बसंती रंग का, भारत माता आयी हैं,
रंग-बिरंगे फूलों से, मां का आंचल सजाया है।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सबने शान बढ़ाया है,
वीरों ने इसकी रक्षा में अपना रक्त बहाया है,
आओ मिलकर हम तिरंगा फहरायें झूमें नाचें गाएं बजाएं,
गणतंत्र दिवस आ गया हर्षोल्लास छा गया।।

                                                     गरिमा लखनवी


गणतंत्र दिवस-2021



आजादी को हासिल करके,
आज के दिन,
भारत को गणराज्य बनाया था।

 26 जनवरी 1950 को,
 देश भारत ने,
 संविधान पारित कर,
 संविधान लागू करवाया था।।

 आजादी को हासिल करके,
 भारत को गणराज्य बनाया था।

 राष्ट्र का यह पर्व ,
राष्ट्र के साथ भाईचारे से ,
हर हिंदुस्तानी ने मनाया था।।

 संविधान के सम्मान में,
 खड़े हर नागरिक,
जन -गण का मान बढ़ाया था।

 आजादी को हासिल करके ,
भारत को गणराज्य बनाया था।

 विश्व का,
सबसे बड़ा संविधान 
जिसे डॉ भीमराव अंबेडकर ने,
2 साल 11 महीने 18 दिन में बनाया था।।

 नेहरू ,प्रसाद, पटेल, मौलाना कलाम  ने जिसे बड़ी,
रूपरेखा से सजाया था।

आजादी को हासिल करके 
आज के दिन,
भारत को गणराज्य बनाया था।।

 आज के दिन,
भारत के झंडे की शपथ ले।

भारत का जन -जन,
यह प्रण उठाएगा।
गणतंत्र की,
 रक्षा के लिए,
 हर हिंदुस्तानी कदम बढ़ाएगा ।


                                  प्रीति शर्मा "असीम"

"ये कैसे है जीवनसाथी है"




ये कैसे जीवन साथी है
जन्मों साथ निभाने की
कसमें खाते है वही
बुढ़ापे में एक दूसरे का
साथ छोड़ देते हैं।

कभी कमरा बाँटते
तो कभी बिस्तर
तो कभी मन
तो कभी बेटों द्वारा
बाँट दिये जाते।

कभी तो एक कमरे में
दो अपरिचित बने रहते
एक दूजे को ताना मारते
तो कभी मन ही मन कुढ़ते
एक दूसरे के माता पिता को
शादी का दोषारोपण करते।
क्या शादी शाररिक सुखों
बच्चों को पैदा करना भर है
फिर उनको पालते पासते
बुढ़े हो जाने का नाम है
फिर बच्चे क्या कहेंगे
दमाद वाले बन गए है
एक बिस्तर पर कैसे
साथ साथ सो सकते हैं
कोई देखेगा तो क्या कहेगा।

जब पति पत्नी गृहस्थी
के दो पहिले है फिर
गाड़ी अकेले कैसे चलेगी
जीवन संगनी के रहते
विधुर जीवन क्यों जिये।

कुमारी अर्चना

हर बार

सोचकर तुमको
लिखता हूँ अपने जज्बात,
न चाहते हुए भी
टूट कर चाहता हूँ
तुमको हर बार।

सोच में मेरी
तुम हर पल ही रहे
मेरे पास।

पर जीवन पंथ में,
सुनकर औरों के बोल
हटते रहे तुम
मुझसे हर बार।

गला घोट कर भी
अपनी ख्वाहिशों का,
करता रहा तुमसे
मोहब्बत दिन और रात।

पर देखकर तुम
औरों की हंसी
दिल दुखाते रहे
मेरा हर बार।

                                   राजीव डोगरा 'विमल'


"बदलते मूल्य"



संघर्ष ने कहा साजिश से 
देखो मेरी क्या है शान 
सच्चाई से रखता हूं
मैं अपनी हर जायज मांग 
जैसा अंदर,बाहर वैसा ही
फकीरी और गरीबी में भी 
चापलूसी में विश्वास नहीं 
और छोड़ा स्वाभिमान नहीं 
किंतु न्याय क्यों छुप जाता 
छद्म रूप क्यों दिखलाता 

साजिश धीरे से मुस्काया 
और कोने में जाकर फुसफुसाया 
सीधी नहीं नाक घुमा कर पकड़ा करो 
दुश्मन खेमे में घुस कर चुपचाप 
राज पता कर लाया करो 
वार पीठ पर करने में 
कभी न तुम सकुचाया 
आत्मा मना करें तो उसकी गठरी 
खूंटी पर टांग दिया करो 
दया,ममता,करुणा,ईमान 
ढकोसला है तुम माना करो 
लूट के दुनिया मालामाल रहो 
न्याय तुम्हारी जेब में होगा और 
जूते के नीचे होगा ईमान!!!

                                      डाॅ. रश्मि चौधरी


बाल पहेलियाँ




 तीन भुजा  इतराती आयीं
जुड़ कर बच्चों क्या  कहलाईं
तीन कोण भी बच्चों उसमें 
तीन शीर्ष है उस आकृति में।(त्रिभुज)

सर्दी आये मुझको पाओ।
सर्दी ,जुकाम सब दूर भगाओ
अंग्रेजों की खोज निराली
चुस्ती फुर्ती देने वाली।( चाय  )

चार खंभे दिखे समान
उनके बीच के  कोण समान,
90 अंश के कोण बनाते
बोलो बच्चों क्या कहलाते।( वर्ग)

 तीन नदियों का मेल निराला 
उससे निकली न्यारी धारा 
उस धारा का नाम बताओ
तभी बच्चों टॉफी पाओ।( संगम) 

                                                          डॉ.  कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव 


अरकान- मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन


चल चल रे मुसाफ़िर चल है मौत यहाँ हर पल।
मालूम किसी को क्या आए की न आए कल।।


भूखा ही वो सो जाए दिन भर जो चलाए हल।
सोया है जो कांटों में उठता वही अपने बल।।


वो दिल भी कोई दिल है जिस दिल में न हो हलचल।
ढकते हैं बराबर वो टिकता ही नहीं आँचल।।


इतरा न जवानी पर ये जाएगी इक दिन ढल।
विश्वास किया जिसपे उसने ही लिया है छल।।


रोशन तो हुई राहें घर बार गया जब जल।
कहते हैं सभी मुझको तुम तो न कहो पागल।।


जो ताज को ठुकरा कर सच लिखता कलम के बल।
शायर वही अच्छा है जिसका नहीं कोई दल।।


करनी का 'निज़ाम' अपनी मिलना है सभी को फल।
अब ढूंढ रहे हो हल जब बीत गए सब पल।।


                                                                  निजाम-फतेहपुरी



27 January 2021

पता नहीं क्यों...?



पता नहीं क्यों..?

मैं कभी तुमसे मिला भी नहीं...
फिर भी अपनापन महसूस होता है
पता नहीं क्यों...?

मैंने कभी तुमको देखा तक नहीं....
फिर भी अपनापन महसूस होता है
पता नहीं क्यों..?

मैंने कभी तुमसे बात तक की नहीं...
फिर भी अपनापन महसूस होता है
पता नहीं क्यों...?

मैं तुम्हें सही से जानता तक नहीं...
फिर भी अपनापन महसूस होता है
पता नहीं क्यों...?

मैं तुम्हारे बारे में सोचता तक नहीं...
फिर भी अपनापन महसूस होता है
पता नहीं क्यों..?

                                                 दीपक कोहली

हां..! मैं तुमसे कभी मिला नहीं



हां..! मैं तुमसे कभी मिला नहीं,
पर एक खुशबू है,
जो मुझे छूकर निकलती है,
और मैं नयेपन से भर जाता हूं।

हां, मैंने तुमको कभी देखा नहीं,
पर एक चेहरा है,
जो हर रोज सुबह के 4 बजे मुझे 
अलविदा कहकर गुम हो जाता है
और मैं ठगा- सा रह जाता हूं।

हाँ मैंने तुमसे कभी बात नहीं की,
पर एक आवाज है,
जिसके साथ मैं 
अपनेपन से भरा रहता हूं
और जब वो खामोश होती हैं,
तो मैं किसी अनजाने डर से थर-थराता हूं।

हां मैं तुम्हें सही से जानता तक नहीं,
पर कोई है जिससे मेरी रूह भी वाकिफ है,
और मैं उसके अजनबी हो जाने भर से खौफ खाता हूं।

हां मैं तुम्हारे बारे में ज्यादा सोचता भी नहीं,
पर कोई ख्याल है,
जो मुझे रात की खामोशी से रू-ब-रू कराता है
और मैं उस चिर- परिचित सी नींद के आगोश में
बेखबर सा चला जाता हूं।

हां..! मैं तुमसे कभी मिला नहीं...

                            रविता राठी

नृशंसता के शिखर पे


जाने कैसे-कैसे निशिचर घूम रहे हैं मानव बन,
मानव रूप लिये फिरते हैं गलियों में दानव बन।
होलागढ़ थाना क्षेत्र के देवापुर गांव में अब,
नृशंसता के शिखर पे पहुंचा राक्षेश्वर रावण बन।।

ना ना गलत बोल गया हूं, रावण भी ऐसा ना था,
पापी, लोभी, रक्तपिपासू पर निर्दय ऐसा ना था।
सृष्टि और श्रेया नाम की, दो युवती के तन से खेला,
ऊंगली, छाती गुप्तांग काट दिया, रावण ऐसा ना था।।

ये तो हुई लड़की की कहानी, माता रचना तड़प रही है,
पुत्र प्रिंस का कटा शव, देख-देख कर विलख रही है।
जाने कैसे पापी थे राम, प्रिंस का तन भी काट दिया,
निर्ममता का शिखर देखकर अंदर-अंदर दहक रही है।।

पति की टांगें कटी पड़ी है, तन निर्जीव हो गया है,
विमलेश पांडे वैद्य प्रयाग का, अंत आज हो गया है।
कांप गया है गांव समूचा, दहशत में है हर जीवन,
लड़ रही मौत से प्रतिपल, हालत नाज़ुक हो गया है।

उजड़ गई बगिया सारी, कल तक जो महक रही थी,
आंगन में दो-दो बिटिया, चिड़िया बनकर चहक रही थी।
बालक प्रिंस बहुत तेज था, पर पिता से अपने डरता था,
मातम इस घर छाया है, यहां प्रेमाग्नि लहक रही थी।।

                                  प्रदीप कुमार तिवारी


तुम्हारी कॉपी में गलतियां हैं

वार्षिक परीक्षा नजदीक आ रही थी। अब टिया को अपनी पढ़ाई की चिंता सताने लगी थी। इसलिए एक दिन स्कूल से आते ही उसने कहा- मम्मी, अब तो मैं आपसे पढ़ूंगी। आप रोज एक घंटा मुझे पढ़ाना। टिया की बात सुनकर शैलजा बहुत खुश हुई। वह तो खुद यही चाहती थी। मगर टिया उसकी एक नहीं सुनती थी।

वैसे तो टिया पढ़ने-लिखने में होशियार थी और खुद ही पढ़ लेती थी। हर टेस्ट में उसके नंबर भी अच्छे ही आते थे। पर फिर भी कहीं-कहीं उसके नंबर कट जाते थे। टिया को समझ में नहीं आता था कि वह हर विषय को अच्छी तरह याद करती है फिर भी उससे परीक्षा में गलती कैसे हो जाती है। इसलिए अबकी बार उसने और अधिक मेहनत करने की सोची थी।

-आओ टिया, तुम्हें पढ़ा दूं। शैलजा ने कहा क्योंकि वह इस समय बिल्कुल खाली थी। शैलजा की बात सुनकर टिया अपनी कॉपी -किताबें लेकर उसके पास आ गई।

शैलजा ने सबसे पहले हिंदी की कॉपी उठाई।

बेटी, कौन-कौन से पाठ आएंगे इस बार? उसने टिया से पूछा।

टिया बोली- मम्मी, इस बार तो पूरा सिलेबस ही आएगा। पर चिंता की कोई बात नहीं। मुझे सारे पाठ याद है। चाहे आप सुन लो।

-ठीक है। मैं पहले पाठ के प्रश्न-उत्तर पूछती हूँ। यह कहकर शैलजा ने टिया से प्रश्न-उत्तर पूछने शुरू किए। सचमुच टिया को सारा पाठ याद था और वह सब प्रश्नों के सही उत्तर दे रही थी।
यह देखकर शैलजा बहुत खुश हुई।

-चलो, अब तुमसे शब्दार्थ पूछती हूं। यह कहकर शैलजा ने शब्दार्थ पूछने शुरू किए। टिया को वह भी याद थे।
-अच्छा बताओ तरंग का क्या अर्थ होता है? शैलजा ने टिया की कॉपी में देखकर पूछा पिया ने झट से उत्तर दिया- घोड़ा।
-नहीं यह गलत है। तरंग का अर्थ लहर होता है। घोड़े के लिए तो तुरंग शब्द होता है।
-नहीं-नहीं तरंग का अर्थ ही घोड़ा होता है। देखो मेरी कॉपी में ये ही लिखा हुआ है और मैडम ने टिक लगाया हुआ है।

शैलजा ने देखा कॉपी में तरंग का अर्थ घोड़ा लिखा हुआ है। पिया की अध्यापिका ने कॉपी जांच कर उस पर सही का निशान भी लगाया हुआ। शैलजा ने किताब के पाठ को ध्यान से पढ़ा। उसमें तुरंग शब्द था। तथा साथ ही उस पाठ में घोड़े का वर्णन भी था। यानी की कॉपी में शब्द गलत लिखा हुआ था।

-बेटी हो सकता है तुम्हारी अध्यापिका ने जल्दबाजी में शब्द पर ध्यान नहीं दिया हो। तुम मेरी बात मानो और यह ठीक कर लो। तरंग की जगह तुरंग कर लो। यह कहकर शैलजा ने टिया कि सारी कॉपी पलट कर देखी। उसमें और भी कई गलतियां थी जिन्हें उनकी अध्यापिका ने नजरअंदाज करके सही का निशान लगा रखा।

शैलजा ने वह सारी गलतियां एक जगह लिख लीं तथा फिर उनके सही शब्द भी लिख लिए और फिर टिया से बोली- बेटी, तुम्हारी कॉपी में ये सब गलतियां हैं। तुम इन्हें ठीक कर लो।

मगर टिया कुछ समझने तैयार नहीं थी। जब शैलजा ने उसे एक-दो बार गलतियां ठीक करने के लिए कहा तो वह उल्टा उससे नाराज हो गई और शैलजा से कॉपी छीन कर बोली- आप रहने दो। मैं खुद ही पढ़ लूंगी। मैं आपके कहने से मेरी कॉपी में शब्द नहीं बदलूंगी। आपको कुछ नहीं पता। मेरी मैम सही पढ़ाती है। मैं उन्ही की बात मानूंगी।

शैलजा चुपचाप रसोई में चली गई। परंतु रसोई में खड़ी-खड़ी वह सोच रही थी कि कहीं पिया के नंबर कटने का कारण यही तो नहीं है कि वह उत्तरों को अंधाधुंध याद करती है। उसे पता ही नहीं पता कि वह सही याद कर रही है या गलत। भले में कितनी भी सही बात कहूं मगर वह मेरी कभी नहीं मानती। यह समझती है कि मम्मी को कुछ नहीं आता और मेरी मैम जो पढ़ाती है वह सही होता है। यह ठीक भी है परंतु जब अध्यापिकाओं के पास कार्यभार अधिक रहता है तो कॉपिया जांचते वक्त उनसे कई गलतियां हो जाती हैं। इससे कई बार वह गलत उत्तरों को भी भूलवश सही कर देती हैं।

परंतु जब परीक्षा के समय टिया वही गलत उत्तर याद करके वैसे के वैसे लिखकर आती होगी तब वह उन्हें गलत कर देती होंगी क्योंकि वह गलत ही होते हैं और अध्यापिकाएं परीक्षा मैं उत्तर पुस्तिकाएं बहुत ही सावधानी पूर्वक जांचती हैं।

-परंतु टिया यह बात नहीं समझ रही है। इसे कैसे समझाया जाए यह तो अपनी अध्यापिकाओं पर ही विश्वास करती है। उनकी इज्जत करती है। यह सब अच्छी बात है मगर…...। ओहो! मैं टिया को कैसे समझाऊं शैलजा यह सोच-सोच कर काफी देर तक परेशान होती रही। अगले दिन शाम को जब टिया पढ़ने बैठने वाली थी तब उसकी अध्यापिका का फोन आया।

-हेलो टिया, मैं तुम्हारी रीना मैम बोल रही।

रीना मैम की आवाज सुनते ही टिया खुश हो गई। रीना मैम उसकी मनपसंद अध्यापिका थी।

-गुड इवनिंग मैम! वह चहकती हुई बोली।

-टिया, तुमने परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी क्या? रीना मैम ने पूछा।

- यस मैम। आपका विषय तो वैसे भी मुझे बहुत पसंद है। मम्मी ने कल ही मुझे पढ़ाया था। मुझे सारे प्रश्न याद है। वैसे भी मुझे हिंदी पढ़ने में बहुत मजा आता है। पिया की बात रीना मैम बोलीं- यह तो बहुत अच्छी बात है। आज मैं तुम्हें एक जरूरी टिप देना चाहती हूं। जिससे इस बार परीक्षा में तुम्हारे नंबर और भी अच्छे आएंगे।

आज तुम्हारी सहेली सलोनी अपनी हिंदी की कॉपी लेकर मेरे पास आई थी। उसकी कॉपी में बहुत सी गलतियां थी। मैंने उसकी गलतियां ठीक कर दी हैं। ताकि वह परीक्षा में वही गलतियां ना दोहराए। तुम भी वे सब गलतियां नोट कर लो। शायद तुम्हारी कॉपी में भी वही गलतियां हों क्योंकि तुम दोनों साथ-साथ ही काम करती हो। तुम भी वह गलतियां ठीक कर लेना।

-ठीक है मैम। कहकर टिया एक नोटबुक और पेंसिल ले आई ताकि गलतियां नोट कर सके।
रीना मैम ने लिखवाना शुरू किया और टिया लिखती गई।

-थैंक्यू मैम! अंत में टिया ने कहा और फिर अपनी हिंदी की कॉपी लेकर वह सारी गलतियां सुधारने बैठ गई। सचमुच उसकी कॉपी में भी वही सब गलतियां थी न।

जब वह सारी गलतियां सुधार चुकी त़ब अचानक से उसके नजर उस कागज पर पड़ी जिस पर उसकी मम्मी ने उसकी कॉपी में से गलतियां निकाल कर लिख दी थीं। यह देख कर टिया को बहुत आश्चर्य हुआ कि रीना मैम ने भी वही गलतियां लिखवाईं थीं।

इसका मतलब मम्मी भी ठीक कह रही थी। नोटबुक में सचमुच गलतियां थीं। मुझे मम्मी की बात मान लेनी चाहिए थी। मैंने फालतू की मम्मी पर गुस्सा किया। मैं आगे से ऐसा नहीं करूंगी। यह सोच कर दिया को बहुत शर्म आई और वह दौड़ी-दौड़ी मम्मी के पास गई। टिया की मम्मी कपड़े समेट रही थी। टिया बोली- मम्मी छोड़ो यह सब काम। चलो, मुझे पढ़ाओ। मेरी परीक्षा आने वाली।

टिया की बात सुनकर शैलजा मुस्कुराने लगी। वह मुस्कुराती-मुस्कुराती टिया को पढ़ाने बैठ गई। टिया को पढ़ाते-पढ़ाते उन्होंने चुपके से एक व्हाट्सएप मैसेज टाइप किया- धन्यवाद रीना मैम और साथ में जुड़े हाथों वाला इमोजी लगा कर वह मैसेज भेज दिया।


कुसुम अग्रवाल