साहित्य चक्र

23 September 2017

* आजाद हिंद फौज के 'बोस'

                 


देश की आजादी में कई महापुरूषों ने अपना - अपना योगदान दिया..। इन्हीं में से एक है राजा महेंद्र प्रताप सिंह जिन्होंने देश की आजादी के लिए एक सेना का गठन किया। यानि एक फौज बनाई जिसका नाम - "आजाद हिंद फौज" रखा गया। 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में इसकी स्थापना की गई। मूलत: यह "आजाद हिंद सरकार" थी। जो अग्रेजों से लड़ने के लिए बनाई गई थी। वैसे आपको बता दूं..। "आजाद हिंद फौज" नाम से रामबिहारी बोस ने जापान के टोकियो में 1942 में एक सेना भी बनाई थी। जिसमें 40 हजार से भी ज्यादा भारतीय स्त्री-पुरूष काम करते थे। जिनका मकशद भी देश को आजादी दिलाना था।   



सन् 1943 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस को 'आजाद हिंद फौज' का सर्वोच्च कमांडर नियुक्त किया गया...। जिसके बाद 'आजाद हिंद फौज' की पूरी कमान बोस के हाथों आ गई...। सन्- 1942 में भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए 'आजाद हिंद फौज' या 'इंडियन नेशनल आर्मी' सशस्त्र सेना का गठन किया गया...। इसकी स्थापना 'राम बिहारी बोस' द्वारा जापान के टोकियो में की गई...। इस फौज में  शुरूआती दिनों में जापान द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में बंदी बनाए गए...। भारतीय सैनिकों को शामिल किया गया...। धीरे-धीरे इस फौज में बर्मा और मलाया से भी भारतीय स्वयं सेवक भी भर्ती किए गए...। जिसके बाद 'आजाद हिंद फौज' एक विशाल सेना बनने लगी...। सेना के गठन के ठीक एक वर्ष बाद सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में रेडियो से घोषणा की....। अंग्रेजों से यह आशा करना मूर्खता भरा है...कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे..। इसलिए हम भारत के अंदर और भारत के बाहर से भी स्वतंत्रता की मांग करनी चाहिए...। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में 'आजाद हिंद फौज' ने कई युद्ध लड़े और देश की आजादी में एक अहम भूमिका भी निभाई..। सुभाष चंद्र बोस जानते थे...कि अगर अंग्रेजों को चारों तरफ से घेरा जाए तो तभी आजादी संभव है...। 4 जुलाई 1943 से बोस 'आजाद हिंद फौज' की कमान संभाल रहे थे...। इनके नेतृत्व में 'आजाद हिंद फौज' ने जापानी सेना के साथ कई अहम युद्ध जीते...। 'आजाद हिंद फौज' को जापान सरकार को जो साथ मिले वो अपने-आप में काबिले तारीफ है...।  हां...! जीत तो नहीं मिल.. पर अंग्रेजों के दांत जरूर खट्टे कर दिए...। 5 जुलाई 1943 को 'सिंगापुर' के 'टाउन हॉल' से 'सुप्रीम कमांडर' के रूप में सेना संबोधित करते हुए...। सुभाष चंद्र बोस ने 'दिल्ली चलो' की नारा दिया...। जिसके बाद 'आजाद हिंद फौज' ने जापानी सेना के साथ मिलकर पूर्वी भारत में मोर्चा निकला..। जिसमें इंफाल सहित बर्मा, कोहिमा शामिल थे..। 


21 अक्टूबर 1943 को 'आजाद हिंद फौज' के सर्वोच्च प्रधान सेनापति की हैसियत से सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्र भारत में अस्थायी सरकार का गठन भी किया...। जिसे जर्मनी, चीन सहित इटली, जापान जैसे देशों ने मान्यता भी दी..। जापान ने अस अस्थायी सरकार को अंडमान व निकोबार द्वीप भी दे दिए..। सुभाष चंद्र बोस ने इन द्वीपों का नामाकरण कर अडंमान- शहीद द्वीप, निकोबार-स्वराज द्वीप रखा..।  30 दिसम्बर 1943 को इन द्वीपों पर स्वतंत्र भारत का ध्वज भी लहराया गया..। 





आपको बता दूं..। 6 जुलाई 1944 को रंगून के रेडिया स्टेशन से सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के नाम एक प्रसारण किया...। जिसमें उन्होंने 'आजाद हिंद फौज'  के लिए शुभकामनाएं मांगी थी...।  21 मार्च 1944 को 'दिल्ली चलो' नारे देते हुए...जापान से दिल्ली के लिए रवाना हुए..। अपने इस मिशन में बोस कामयाब नहीं हो पाए...। अंग्रेजों द्वारा  'आजाद हिंद फौज' पर आक्रमण कर दिया गया...। वहीं जापान, जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध से हटने का फैसला कर लिया...। जिसके कारण  'आजाद हिंद फौज' को वापस जापान लौटना पड़ा...। 22 सितम्बर 1944 को 'शहीदी दिवस' को मौके पर सुभाष चंद्र बोस ने 'आजाद हिंद फौज' को संबोधित करते हुए कहा...।



"हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है
 तुम मुझे खून दो... मैं तुम्हें आजादी दूंगा, 
 यही ं स्वतंत्रता की देवी की मांग है"...।।



शायद ही आप जानते होगें...। सुभाष चंद्र बोस एक उग्र राष्ट्रवादी नेतृत्व करने वाले महापुरूष थे..। बोस फासीवादी अधिनायकों से अधिक प्रेरित थे..। वो भारत को शीघ्र ही आजाद कराना चाहते थे..। इसीलिए उन्होंने 'आजाद हिंद फौज' की स्थापना की..।  'आजाद हिंद फौज' की संख्या लगभग 40 हजार से भी ज्यादा थी...। 'आजाद हिंद फौज' की पूर्ण जानकारी किसी भी इतिहासकार को पता नहीं है..। 
सिंगापुर ने 'आजाद हिंद फौज' के शहीदों की याद में एस्प्लेनेड पार्क में 'आईएनए मेमोरियल' भी बनाया था...। जिसे ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा ध्वस्त कर दिया गया..। 8  जुलाई 1945 में सुभाष चंद्र बोस ने इस स्मारक में जाकर सभी शहीदों को श्रदांजलि दी...। सन्- 1995 में सिंगापुर सरकार ने इस धरोहर को एक बार फिर स्थापित करके शहीदों को याद किया...। जिसमें भारतीय समुदाय के लोगों ने भी एक अहम भूमिका  निभाई..।
इस स्मारक में तीन शब्द लिखें  थे..। 

1) इत्तेफाक़ (एकता),  2) एतमाक (विश्वास), 3) कुर्बानी (बलिदान)



                                                      रिपोर्ट- दीपक कोहली                                            

22 September 2017

मेरे दादा जी..।



मेरे परिवार में मेरे दादा जी सबसे बड़े और सबसे समझदार हुआ करते थे। मेरे दादा जी बहुत प्यार करते थे..। जब मैंने माँ का दूध पीना छोड़ा..तो तब में दादा जी के साथ सोने लगा..। मेरे दादा मुझे बहुत ही प्रेम और प्यार करते थे..। मैंने अपने दादा जी में एक बहुत ही अच्छी खूबी देखी..जो मुझे आज भी याद है..। मेरे दादा जी कभी भी गुस्सा नहीं हुआ करते थे..। चाहे उन्हें कोई थप्पड़ मार दें या फिर गोली..फिर भी वो गुस्सा नहीं करते थे..। सहनशीलता मैंने अपने दादा जी से ही सीखी है..। वो हर बात पर हाथ जोड़ा करते थे..। मेरे दादाजी मेरे परिवार के वो व्यक्ति थे..। जिन्हें पूरा परिवार गाली या गुस्सा करता था..। हाँ...इतना जरूर है..मेरे दादाजी किसी भी व्यक्ति से गलत ढ़ग या तरीके से बात नहीं करते थे..।

मेरे दादाजी भगवान या ईश्वर पर बहुत श्रद्धा रखते थे..। हमें भी भगवान से जुड़ी कहानियां बताया करते थे..। मैं भी दादाजी से कभी - कभी ईश्वर से जुड़ी बातें किया करता  था..। मेरे दादा एक सभ्य इंसान हुआ करते थे..। हाँ...इतना जरूर है..कि मैं उनके चरित्र के बारे में नहीं जानता..।
जब से मैं अपने दादा जी को देखा था..वो अकेले थे...यानि मेरी दादी नहीं थी..। हाँ मैंने अपनी दादी नहीं देखी..। मेरे दादा मुझे अच्छी चीजें और अच्छी बातें बताया करते थे..। कभी - कभी प्रवचन भी दिया करते थे..। दादाजी की  इन्हीं आदतों और बातों को मैं आज भी याद किया करता हूँ...।मेरे दादा मेरे महापुरूष है...। हर परिस्थिति में अपने आप को ढ़लना...मेरे दादा की सबसे बड़ी जीत थी..। मेरे दादा जी अक्सर मुझसे कहां करते थे..। 
देवा...(दीपक) पोते तू एक दिन मुझे याद जरूर करेगा..?

आज मुझे मेरे दादा की वो बातें याद आती है...जो मेरे दादा कहा करते थे..। मैं आज भी अपने दादा को याद करता हूँ..। मेरे दादा जी ही मेरे सबकुछ थे..।

याद करते हूँ..तुम्हें,
हर घड़ी...।
याद आती है तुम्हारी,
वो बाते जो तुम,
किया करते थे..।
दादाजी दादाजी..।।

दादा जी तुम ही मेरे सबकुछ थे..और रहोंगे भी मरते दम तक..। दादा मुझे मांफ करना..अगर मैंने कुछ गलत या कोई गलती की हो..।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपने कलम को यहीं पर विराम दूंगा..।


                                                                        लेखक- दीपक कोहली

20 September 2017

* सुंदरता मेरी...।



सारी सृष्टि सुंदर है...।
सुंदरता मुझ में समाई है..।।

तन सुंदर है, मन सुंदर है...,
शीतलता नैनों में उतर आई है..।।

दूर गगन के तारों में..., 
एक तारा अपना - सा लगता है..।

कल्पनाओं के सागर में..., 
मन दूजा सा लगता है..।।

                                                       * नूतन शर्मा*

* अनंत काल *




अंनन्त काल से अविरल बहते हुए,
सदियों से यूँ ही निरंतर चलते हुए,
भिन्न-भिन्न बोलियों की गंगोत्री तुम,
अपनी  विशाल संस्कृति संजोते हुए.


मत करो चिन्तन अपने अस्तित्व के लिये,
कोई मामूली पोंधा या लता नहीं,
प्राणदायी  वृक्ष  हो पीपल का तुम,
सबको प्राण और जीवनदान  देते हुए.


सबको अपने मैं आत्मसात करते हुए,
क्रांतिकारियों -जैसी गर्जना लिये हुए,
राधा-कृष्ण के मधुर भजनों  मैं तुम,
प्रेमियों की वाणी में मधुरता लिये हुए,


कृष्ण की वन्शी मैं मिठास लिये हुए,
मीरा के घुँघरूओं में प्राण लिये हुए,
कबीर-रहीम के उत्तम दोहों मैं तुम,
तुलसी की मानस -मर्यादा लिये हुए.


करूँ मैं नमन  कर  जोड़ते हुए,
विज्ञान को नये आयाम देते हुए,
हिन्दी भी  तुम ,हिंदुस्तान भी तुम,
भारत को प्रगति -पथ दिखाते हुए.

    
                                                                           आरती लोहनी

* कह रही बांसुरी मोहन से *



जाने कब से हूँ लालायित,
कह रही बंशी मोहन से।
मैं तेरे अधरों की प्यासी हूँ,
कह रही बांसुरी मोहन से।।

माखन - चोरी में चतुर कृष्ण
तू बना लाडला मोहन है ।
वृन्दावन में रास रचाता ।
तू बना साँवरा सोहन है ।
तेरे ही सँग तो हांसी हूँ ।
कह रही बॉसुरी मोहन से ।।

 अम्ब यशोदा का सुत प्यारा ।
तू पाता अमृत सारा है ।
मीराके भजनोंमें बसकर ,
भक्तों से हरदम हारा है ।
मैं भी तेरी ही दासी हूँ ।
कह रही बॉसुरी मोहन से ।।

 पूतना कंस सबको तारा ।
है तूने ही बेडा पार किया ।
पढा महापुराण गीता को ,
है अर्जुन का उद्धार किया !
तेरे बिन हुई उदासी हूँ  ।
कह रही बांसुरी मोहन से ।।

                          आरती लोहनी

युग बदला..।।



युग बदला - जग बदला..।
मन बदला - तन बदला, 
बदला ये पूरा जगत...।।


इंसान बदला- मानव बदला,
स्वरूप बदला-ह्रदय बदला
बदला ये पूरा संसार...।।


नर बदला - नारी बदली
रंग बदला - रूप बदला
   बदली ये सारी प्राकृति..।।


                                    कवि- दीपक कोहली

* मुझे भी उड़ना है...।

DK Kohli


माँ..! मुझे भी उड़ना है..।
मत कतरों मेरे पंख,
भाई की तरह मुझे भी जीना है..।।

माँ..! मुझे भी उड़ना है..। 
मत घोटो मेरा गला,
मुझे भी बुआ की तरह जीना है..।।

माँ..! मेरा क्या कसूर है..?
मुझे भी जन्म दे दो..।

ओ मेरी प्यारी माँ..।

                               कवि- दीपक कोहली 

* क्यों है..? नींद जरूरी..!



मेरे लिए मेरी नींद जरूरी है..।
स्वस्थ रहने के लिए नींद अवश्यक है।।

एक स्त्री के लिए नींद जरूरी है..।
एक बच्ची के लिए नींद जरूरी है।।

किसान के लिए नींद जरूरी है..।
एक मजदूर के लिए नींद जरूरी है।।

एक पिता के लिए नींद जरूरी है।

एक माँ के लिए नींद जरूरी है।।

एक विद्यार्थी के लिए नींद जरूरी है..।
एक शिक्षक के लिए नींद जरूरी है..।।

कवि- दीपक कोहली

14 September 2017

* गढ़वाल का पुत्र....! हमारा "खंडूरी"




भुवन चंद्र खंडूरी देवभूमि के गढ़वाल क्षेत्र में आपने आप में एक ऐसा नाम है...। जिसे हर बच्चा - बच्चा जानता हैं...। जी हाँ..सही सुना और पढ़ा...। हम बात कर रहे है...। उत्तराखंड के अब तक के सबसे तेज तर्रार सीएम के रूप में पहचान बनाने वाले बीसी खंडूरी की...। खंडूरी का जन्म 1 अक्टूबर 1934 में उत्तराखंड के देहरादून शहर में हुआ था...। खंडूरी देवभूमि के एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि देश के एक सैनिक भी रहे है..। वैसे आपको बता दूं...कि  बीसी खंडूरी के पिता 'जय बल्लभ खंडूरी' एक पत्रकार थे..। वहीं माता जी 'दुर्गा देवी खंडूरी' एक सामाजिक कार्यकर्ता थी..। बीसी की धर्मपत्नी का  नाम 'अरुणा खंडूरी' है..। खंडूरी जी के दो बच्चे भी है..। जिनमें से एक पुत्री- एक पुत्र है..।

अगर खंडूरी की शैक्षिक योग्यता की बात करें तो इन्होंने बीए, बीएससी, एमआईई से साथ रक्षा प्रबंधन  स्नातकोत्तर भी किया हैं..। वहीं खंडूरी का सेना में भी उत्कष्ट कार्यकाल रहा है..। जिन्होंने 1954 से 1990 तक सेना में देश सेवा की..। यानि 36 साल देश की सेवा - रक्षा की..। अपना पूरा जीवन देश के नाम कर दिया..।  खंडूरी भारतीय सेना में कुछ महत्वपूर्ण पदों पर सेवावृत रहे है..। 

जो इस प्रकार है..।

1- रेजिमेंट के कमांडर (1971-भारत-पाक युद्ध)-
2- सेना में मुख्य अभियंता
3- इंजीनियरिंग ब्रिगेड कमांडर
4- सेना मुख्यालय में अतिरिक्त सैन्य सचिव
5- सेना मुख्यालय में इंजीनियर-इन-चीफ व महानिदेशक


जिसके लिए खंडूरी को 1982 में भारतीय सेना में असाधारण योगदान देने के लिए भारत के राष्ट्रपति से अति विशिष्ट सेवा पदक (एवीएसएम) से सम्मानित किया गया..। सेना से रिटार्यड होने के बाद खंडूरी ने देवभूमि से राजनीति में कदम रखा..। वैसे खंडूरी ने एक छात्र के रूप में आजादी के संघर्ष में भी देशभक्ति खूब निभाई है...। कम उम्र में खंडूरी ने उल्लेखनीय राजनीति की चेतना प्रदर्शन की..। खंडूरी ने पहली बार लोकसभा के लिए उत्तराखंड के गढ़वाल से 1991 में चुनाव लड़ा..। जिसके बाद 2000 से 2003 तक अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी रहें...। उन्हें 2003 में कैबिनेट रैंक में ऊपर उठाया गया और मई 2004 में एनडीए सरकार के कार्यकाल के अंत तक इस पद बैठे रहे...। 

खंडूरी देवभमि से भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता है...। जिन्होंने विभिन्न संसदीय समितियों में सेवा की है...। एक मंत्री के रूप में, उन्होंने दक्षता और तेज गति के साथ भाजपा के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना को लागू किया....। वहीं सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के रूप में खंडूरी ने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास योजना को दक्षता और सर्वशक्ति के साथ अंजाम दिया...। प्रमुख भारतीय शहरों और उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर परियोजना को जोड़ने वाले स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना को आकार दिया...। खंडूरी ने 2007-2009 और 2011-2012 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की है...। खंडूरी अभी 16 वीं लोकसभा के भी सदस्य हैं...। जो इस समय उत्तराखंड के गढ़वाल संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं....। इससे पहले उन्होंने कैबिनेट मंत्री, भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता वाली सरकार में भू-तल परिवहन मंत्रालय के रूप में भी सेवा दी है..। वहीं विधानसभा में खंडूरी घूमाकोट का प्रतिनिधत्व करते है..। रमेश पोखरियाल के बाद खंडूरी देवभूमि के चौथे सीएम बनें..। इस समय खंडूरी देवभूमि के गढ़वाल लोकसभा सीट से लोकसभा सांसद है...। अपने कामों और सक्त नियमों के लिए खंडूरी पूरे प्रदेश में जाने जाते है...। जिस तरह उनका सीएम कार्यकाल रहा..। वह सराहनीय था..। हम उम्मीद करते है...कि आगे भी खंडूरी का राजनीति जीवन सराहनीय रहे..। हम ईश्वर से कामना करते हैं..। वे हमेशा स्वस्थ रहे और प्रदेश को एक नई ऊर्जा प्रदान करते रहे...। 


                                                         संपादक- दीपक कोहली   



* गरीबी एक लाचारी *




फिर कुछ ऐसा हुआ कि हम सब पत्थर हो गये,
फिर कुछ ऐसा हम सब कट्टर हो गये,
वो चला जा रहा था कांधे पर अपनी लाश उठाये,
रहे देखते ठगे-ठगे हम,सब मूकदर्शक हो गये.


वो दाना मांझी था जिसने अपना धर्म निभाया,
वो दाना मांझी था जिसने अपना कर्म निभाया.
अपने कांधे पर  व्यवस्था का बोझ उठाये,
वो दाना मांझी था जिसने हमें आइना दिखाया.


फिर एक बार इंसानियत का कत्ल हुआ,
चार कांधों का बोझ उस अकेले ने उठाया,
साथ में उसके नन्ही परी भी थी,
जिसे क्रूर दुनिया का दस्तूर समझ नहीं आया.


जीवन साथी के खोने पर रोया भी न होगा,
बहते आँसूओं को जाने कैसे पिया होगा,
हाय रे गरीबी! तेरी तो इन्तहां ही नहीं,
पग-पग अपमानित होकर भी कैसे जिया होगा.

                                         

                                                                                आरती लोहनी

* सत्य की अनुभूति *




जीवन के लिए
सत्य की अनुभूति
चेतना पर विचारों का बोझ !
सुख की खोज में
भटकता मन.....।

कुछ और की चाह में हम,
सोचते अधिक हैं
जीते कम है हम..।

मन की कैद में,चेतना का पँछी,
मनन चिंतन में लीन छटपटाता हर पल
पर, मन के भीतर..।

मन की मजबूत दीवारें अटूट !!
न समाधान न मुक्ति मन की
निराशा,हताशा, अतृप्ति
किंतु मन की उलझनों से दूर
मन से पार जाकर..।

परमात्मा का ध्यान
परमेश्वरीय आविर्भाव!!
जहाँ कुछ भी स्पर्श नही होता
जहाँ अहंकार नही,
मौन एकदम..।

मन का मौन !!
जहाँ चेतना विचारों से मुक्त
अपने स्वरूप को ढूंढती हुई
लौट आती है..।

आकाश सी असीम होकर
जीवन को नव रूप,
स्वरूप देती हुई.......।

उधार के ज्ञान से मुक्त करती
हुई,
अपने आप को.....।।


*सुशीला राजपूत*

13 September 2017

* अनमोल यु जीवन..........।।

अनिल बिष्ट

अनमोल यु जीवन , येतै ना गवंवा 
बिडी बांगुलु पीक , तै जुकुडी ना जवंवा..।
 ऐ मेरा छोटा भै, बैणु तुम इनु करी जावा
नशामुक्त ये औण वावा, उत्तराखण्ड तै बणवा..।
ऑस्पातलों मा भी देखा, मची घमासाण
कैंसर पीडित लोग, लगयुं डसाण...।।
कति समझोण यों तै, बिडी गुटखा नी खाण
कैंसर पीडित लोग, लगयुं डसाण...।
सब पता छ की, यु जानलेवा
फिर भी मनखि,इनु खॉंदु जनु क्वै मेवा..।

यु मेवा भी इनी करदु सेवा
ऑस्पातल कु बाटु बतोंदु
जगह-जगह सैर करोंदु..।।
अनमोल यु जीवन..........।।
                                   
                                                                      कवि-  अनिल बिष्ट


12 September 2017

* हिंदी हूं....!

हिन्दी भाषा ही हमारी पहचान है...। हिंदी भाषा ही हमारी मातृ-भाषा है..। जी हाँ..। आज हम आपके लिए ले के आए है...। अपनी मातृ-भाषा हिंदी की कुछ विशेष तथ्य और रहस्य..। क्या आप जानते है...? हिंदी भाषा को हिंदी नाम क्यों दिया गया...? या हिंदी भाषा का नाम हिंदी क्यों पड़ा..? क्या आप जानते है..हिंदी भाषा की पहली पुस्तक कौन सी थी..? शायद  ही आपको पता हो...। अगर नहीं पता...? तो आइए आपको हम हिंदी भाषा की विशेषता समझाते है..। 




हिंदी भाषा हमारी देश की राज भाषा है...। या कह सकते है कि राष्ट्र भाषा है...। लेकिन हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा की  मान्यता नहीं दी गई है..। अगर संविधान की बात करें तो संविधान में संस्कृत को राष्ट्र भाषा की मान्यता देने की बात कही गई है...। वहीं हमारी सरकार ने देश के 22 भाषा को अधिकारिक मान्यता दी है..। जिसमें हिंदी, उर्दू, पंजाबी, नेपाली आदि है..। 
वहीं केंद्र सरकार ने अपने कार्यों के लिए हिंदी और अंग्रेजी भाषा को अधिकारिक जगह दी है..। हिंदी भाषा का नाम हिंद से रखा गया है...। जब 11 सदीं में फारसी भाषी के तुर्क हमलावरों ने सिंधु नदी के इलाके को हिंद नाम दिया...। तो इसी तरह हिंद इलाकों में बोली जाने वाली भाषा को भी हिंदी नाम दिया गया...। 




आपको बता दूं...। हिंदी भाषा की पहली पुस्तक "प्रेम-सागर" थी..। जो सन् 1805 में प्रकासित हुई थी। जिसके लेखक 'लल्लू लाल जी' थे। वैसे इस पुस्तक में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है...। आज हिंदी भाषा को प्रथम भाषा के तौर पर लगभग 42 करोड़ से ज्यादा लोग बोलते है..। जबकि 1.2 करोड़ लोग इसे दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करते है..। हिंदी भाषा भारत की सबसे अधिक प्रचलित भाषा है..। वहीं हमारे देश में कई और भाषाएं भी बोली जाती है..। देश के 12 राज्य की राज्य भाषा भी हिंदी है..। या हिंदी भाषा को मुख्य भाषा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है..। जिसमें उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, बिहार, दिल्ली जैसे और राज्य भी है..। वैसे भारत के अलावा नेपाल, मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, टोबोगो, जैसे देश में भी हिंदी भाषा बोली जाती है..। आज पूरे विश्व में हिंदी भाषा का प्रयोग काफी बढ़ता जा रहा है..। वहीं हमारे देश से हिंदी खोती जा रही है..। भारत में हिंदी भाषा को राज भाषा का दर्जा मिला हुआ है..। हालांकि आज भी बहुत सारे काम अंग्रेजी में ही होती है..। वहीं केरियर के लिहाज से आज अंग्रेजी बहुत ही जरूरी मानी जाने लगी है..। हिंदी भाषा उच्चारण के लिहाज से सबसे कठिन भाषा मानी जाती है..। वहीं हिंदी भाषा के सबसे मुश्किल शब्द " किम्कर्तव्यविमूढ़ " है...। वहीं कई और शब्द भी बेहद मुश्किल है..। जिनमें लौहपथगामी, धूम्रपान दंडिका आदि वगैरह-वगैरह...।

आपको बता दूं...। हिंदी भाषा का उद्यगम संस्कृत भाषा से माना जाता है..। वहीं कुछ भाषाएं हिंदी जैसी ही है..। जैसे नेपाली, गुजराती आदि..। 



 हमारा देश.... हिंदी था....हिंदी है...हिंदी ही रहेगा...।। जय भारत- जय हिंद..।। 

                                     संपादक- दीपक कोहली

09 September 2017

* हे परमेश्वर...!

हे परमेश्वर...। तुम ही इस लोक के स्वामी हो...तुम ही इस लोक के पालनहार हो..। धन्य हो प्रभु तुम..धन्य हो।। 



परमेश्वर इस संसार का सबसे बड़ा शब्द ही नहीं बल्कि सबसे बड़ी शक्ति भी है..। परमेश्वर ही हमारा परमात्मा है, परमेश्वर ही हमारी परम शक्ति है..। परमेश्वर ने इस सृष्टि को हम प्राणीयों के लिए बनाया है..। इस सृष्टि में सबसे बुद्धमान भी हम मानव जाति है..। सबसे बुद्धमान होने के नाते हमारा यह कर्तव्य बनाता है..कि हम इस सृष्टि की रक्षा करें और इसे बचाएं रखें...। मानव जाति इस सृष्टि में सबसे ज्यादा संख्या में है..। इसलिए हमारा एक और कर्तव्य बनाता है.....कि हमें सृष्टि में शांति के साथ-साथ इसकी सुंदर भी बनाए रखें..। परमेश्वर ने मानव जाति को इस सृष्टि में कल्याण के लिए भेजा है..। परमेश्वर ही मानव जाति का गुरू है..। परमेश्वर ही मानव जाति का जन्मदाता हैं...। हे परमेश्वर इस मानव जाति का कल्याण कर...। इस सृष्टि को पापों से बचा लें...। इस मानव को अपनी एक नया मार्ग दिखाओ..। जिससे हमारी सृष्टि बची रहें..। हे परमेश्वर...। तुम ही इस सृष्टि के मालिक हो..। तुम ही इस सृष्टि के रक्षक हो..। हे दाता दण्डित कर इस मानव जाति हो..। जो इस लोक में पाप को बढ़ा रहे है...। हे परमेश्वर..हे परमेश्वर..हे परमेश्वर...।


                                                           लेखक- दीपक कोहली

*औरत*



औरत की इज्जत, उसकी आवर,
उसकी अस्मिता का लुटते जाना,
वो सरे बाजार उसका दुपट्टा खींचना
वो चीख, वो पुकार..
वो बंद दरवाजों का व्यापार,
वो हिंसा - वो अत्याचार
वो देह और आत्मा का होना तार-तार 
वो डर, वो संकोच, वो शर्म
क्यों हुआ..? क्या हुआ..? कैसे हुआ..?
क्या अब यहीं है मेरी पहचान..?

                                                                         # नूतन शर्मा #

* कांपते स्वर *



कांपती स्वर में कह रही बिटियां,
माँ जीवन का दान करो...।

मैं दुनिया में आना चाहती,
ऐसा कुछ वरदान करो...।

बाबुल को आश्वस्त करो,
दादी को भी समझाओ तुम..।

मेरी दुनिया में आने की,
इस पहेली को बुझाओं तुम..।

माँ तुमसे उम्मीद बड़ी है,
हाथ जोड़ विनती यह करी है..।

अपनी ममतामयी आँचल को,
मुझ पे भी लहराओ तुम..।

माँ जीवन जीने का सलीखा
हम भी सीख जाएंगे..।

बोझ नहीं तुम पर बनेंगे,
जब दुनिया में आएगें..।

कांपती स्वर में कह रही..।।

                                                     # नूतन शर्मा #

*वो स्कूल का जाना*



वो स्कूल का जाना ,
कभी रोना कभी हँसना,
रूठना फिर मनाना,
सब बचपन में ही अच्छे लगते हैं।।

वो खिलौने का टूटकर बिखर जाना,
फिर माँ से छोटी -सी डांठ खाना,
सब बचपन में ही अच्छे लगते हैं।।

पापा की गाड़ी में वो बैठने की ज़िद,
फ़िर अपनी तारीफ सुनाने की जिद,
सब बचपन में ही अच्छे लगते हैं।

दादा की छड़ी को छुपाने की कला,
दादी से कैसे दूर रह सकते भला,
चोरी से जाकर मिश्री का चुराना,
सखियों को जाकर के सब हाल बताना,
सब बचपन मे ही अच्छे लगते हैं।

सब कुछ बदल गया, बदल गया ज़माना,
वो बचपन की यादें, कभी न भुलाना,
जिंदगी के पड़ाव में कितने आगे निकल गए हम,
माँ, बाप, दादा, दादी, भाई, बहिन, सब भूल गए हम।।

                                         *अनिता पन्त*

*माँ*



माँ है तो श्री है, आधार है क्योंकि, प्रकृति, 
धरती एक माँ का ही तो प्रकार है । 

माँ है तो आसक्ति है क्योंकि, 

माँ में ही तो असीम शक्ति है। 

 माँ है तो त्याग है, बलिदान हैं क्योंकि, 

माँ में सिमटा एक बच्चे का पूरा जहान है। 

 माँ वो है जो खुद मिटकर एक बच्चे को बनाती है क्योंकि, 

पत्थर पर पिसकर ही हिना रंग लाती है ।

माँ है तो परिवार है, संस्कार है, क्योंकि, 

केवल माँ में ही तो ममता है, प्यार है, दुलार है ।

माँ है तो जन्म है, बचपन है, लोरी है क्योंकि, 

माँ की ममता एक रेशम की डोरी है । 

माँ है तो कृष्ण, है राम है, बलराम भी है क्योंकि, 

माँ के बिना असम्भव इन्सान तो क्या भगवान भी है । 

 माँ है तो दादी है, नानी है और, एक बालक के बिना,

 माँ भी एक अधूरी कहानी है। 

 माँ है तो सबका बचपन अनूठा, निराला है, 

क्योंकि माँ ही तो हर बच्चे की प्रथम पाठशाला है।

एक माँ की बस यही कहानी है,

 उसके आँचल में दूध और पाँव में जिंदगानी है। 

 माँ और माटी का सदियों पुराना नाता है, 

इन दोनों की हस्ती को चाहकर भी भला कौन मिटा पाता है, 
एक जाननी है तो दूसरी मातृभूमि भारत माता है। 

                            लेखिका- विदुषी शर्मा 

05 September 2017

* क्या है..! 'अनंत चतुर्दशी'

आज हम आपको एक विशेष जानकारी देने जा रहे है..। जी हाँ..। आज हम आपको अनंत चतुर्दशी के बारे में बताने जा रहे है..। आखिर क्या है अनंत चतुर्दशी...? हर पहलू से हम आपको समझाएगें..। 




अनंत चतुर्दशी भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी है..। अनंत चतुर्दशी को 'रक्षासूत्र' भी कहा जाता है..। या इस दिन को 'अनंतसूत्र' भी कहां जाता है..। वैसे यह हिंदू धर्म का एक त्योहार है..। जो मुख्यत: दक्षिण भारत में मनाया जाता है...। अनंत चतुर्दशी को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है..। जिसके बाद 'अनंत सूत्र' बांधा जाता है..। वैसे कहां जाता है कि जब पांडवे ने अपना सब कुछ जुएं में हार लिया था। तब भगवान कृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने की सलाह दी थी..। जिसके बाद सभी पांडवे ने धर्मराज युधिष्ठर के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत रखा था...। जिसके बाद पांडवे संकट मुक्त हो गए..। वैसे इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है...। इस दिन खास तौर से तैयार किए गए...एक डोरी में चौदह गांठों का बंधना बनाकर... उसमें मंत्र उच्चारण कर हाथों में बांधा जाता हैं...। पुरूष इस डोरी को दाहिने तो स्त्री बांए हाथ में बांधती है...। डोरी बांधने के बाद पूरे परिवार में प्रसाद वितरण किया जाता है..। वैसे आपको बता दूं...। यह त्योहार मुख्य रूप से दक्षिण भारत की शान है..।  दक्षिण भारत में इस त्योहार को बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है...। वहीं इस दिन का महत्व जैन धर्म में भी उतना ही है...जितना की हमारे हिंदू धर्म में..। जैन धर्म के अनुसार 'अनंत चतुर्दशी' को सबसे पवित्र तिथि बताया गया है...। वैसे इस दिन जैन त्योहार 'पर्यूषण पर्व' का आखिरी दिन होता है..। जिसके कारण जैन धर्म में इस दिन का महत्व काफी बढ़ जाता है..। वैसे भी हमारा देश पर्वों का देश कहा जाता है...। जहां हर समय पर्व होते रहते है..। कभी दिवाली तो... कभी ईद....। 


                                                      * संपादक- दीपक कोहली *

* मैं एक पेड़ हूँ *

आरती लोहनी


मैं एक पेड़ हूँ।
सीधा तन कर सड़क किनारे खड़ा।
धूप हो तो छांव देता।
बारिश मैं भी सहारा देता।

गर्व था अपने सीधे खड़े होने पर।
अभिमान था हृष्ट पुष्ट होने पर ।
पर घमंड क्या टिका किसी का?
खत्म हुआ मद मेरा भी।

जब देखा मेरा सौदा हो रहा है।
सबसे महंगा बिका विकास के बाजार में।
सहसा स्मरण हो आया बचपन।

जब मुझे रोपा गया।
खाद पानी ही नहीं ।
बड़े प्रेम से लगाया गया।
अकेला नहीं था मैं।

नाते-रिश्तेदार भी थे संग मेरे।
पूरी बिरादरी थी आस-पास मेरे।
इसी ख़ुशी मैं फलता गया।

सगे-संबंधियों से अधिक तेजी से बढ़ गया।
बस यही मेरी चूक थी,
शायद यही मेरा गुनाह भी।।


* आरती लोहनी  *

* शिक्षक हैं हम *















शिक्षक हैं हम समाज को जगाते रहेंगे. 
ये जिन्दगी का मंत्र है ,सिखाते रहेंगे,
शिक्षक हैं हम, समाज को जगाते रहेंगे. 

अज्ञान के अंधेरों में लिपटी हुई दुनिया,
हम ज्ञान के सूरज को, जगमगाते रहेंगे.

अंकुर नई उम्मीद के हमने उगाये हैं,
आँखों में उनके सपनो को सजाते रहेंगे.
शिक्षक हैं हम समाज को जगाते रहेंगे. 

जब स्वार्थ,भ्रष्टाचार,और अन्याय पला था,
तब बन चुनौती,चाणक्यसाशिक्षक ही लड़ा था. 

जब देश ने अशिक्षा की  जंग लड़ी थी,
कृष्णन' के नाम शिक्षक दिवस की नींव पडी थी. 

हम ही नई पीढी के नव निर्माण की सुबह,
सोये हुए सपनों को हम जगा के रहेंगे ,
शिक्षक हैं हम समाज को जगाते रहेंगे. 

हमने दिया इतिहास को गौरव का सिलसिला, 
अब वर्तमान को ऊंचाईयों पर लाके रहेंगे.

बुझने न देंगे ज्ञान का अविराम यह दिया, 
हम आँधियों के गर्व को हिला के रहेंगे. 
शिक्षक हैं हम समाज को जगाते रहेंगे...। 

अर्जुन कोहली 
( सेवानिवृत अध्यापक )
9634274163

* वर्तमान समय में एक शिक्षक की भूमिका:-



 (विद्यार्थियों के संदर्भ में)-



वर्तमान युग है आधुनिकता का ,वैज्ञानिकता का, व्यस्तता का, अस्थिरता का, जल्दबाजी का। आज का विद्यार्थी जीवन भी इन्ही समस्याओं से ग्रसित है। आज का विद्यार्थी जीवन पहले की तरह सहज, शांत और धैर्यवान नहीं ही रह गया है। क्योंकि आगे बढ़ना और तेजी से बढ़ना उसकी नियति, मजबूरी बन गई है ।वह इसलिए कि यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो  ज़िंदगी की दौड़ में वह पीछे रह जायगा। तो यह वक्त का तकाजा है। ऐसे समय में विद्यार्थी जीवन को एक सही ,उचित,कल्याणकारी एवं दूरदर्शी दिशा निर्देश देना एक शिक्षक का पावन कर्तव्य है।
 वैसे तो शिक्षक की भूमिका सदैव ही अग्रगण्य रही है क्योंकि

" राष्ट्र निर्माता है वह जो, सबसे बड़ा इंसान है, किसमें कितना ज्ञान है, बस इसको ही पहचान है"।

एक राष्ट्र को बनाने में एक शिक्षक का जितना  सहयोग है, योगदान है, उतना शायद किसी और का हो ही नहीं सकता ।क्योंकि एक राष्ट्र को उन्नति के चरम  शिखर पर ले जाते हैं उसके राजनेता, डॉक्टर ,इंजीनियर, उद्योगपति, लेखक, अभिनेता, खिलाड़ी आदि और परोक्ष रूप से इन सबको बनाने वाला कौन है ?एक शिक्षक।

 वर्तमान समय में विद्यार्थियों के संदर्भ में एक शिक्षक की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। उसके अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे आज-कल विद्यार्थी बहुत ही सजग, कुशल, अद्यतन (Updated) होने के साथ-साथ बहुत अस्थिर और अविश्वासी भी होते जा रहे हैं। इसके कारण चाहे जो कुछ भी हो परंतु एक शिक्षक को आज के ऐसे ही विद्यार्थियों को उचित प्रशिक्षण, सदुपयोगी शिक्षण और सटीक कल्याणकारी, दूरगामी मार्गदर्शन प्रदान करते हुए उन्हें भावी देश के कर्णधार, जिम्मेदार देशभक्त नागरिकों में परिणित करना है। एक शिक्षक की जिम्मेदारी बहुत अधिक होती है। क्योंकि उसे ना केवल बच्चों का बौद्धिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक ,शारीरिक विकास करना है अपितु सामाजिक, चारित्रिक, एवं सांवेगिक विकास  करना भी आज शिक्षक का ही कर्तव्य है ।
आज उसे अपने आदर्शों के द्वारा, अपने चरित्र के द्वारा बच्चों के मानस पटल पर अपनी ऐसी छाप छोड़नी पड़ेगी कि जिससे भविष्य में यह बच्चे जब....।

"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः । गुरु साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः" ॥

 का उच्चारण करें तो बंद आंखों के सामने हमारा चेहरा यानि एक शिक्षक का चेहरा उन्हें दिखाई दे । यह एक चुनौती भरा कार्य है । परंतु सच्चा शिक्षक वही है जिसे उसके  विद्यार्थी जीवन भर अपना गुरु मानते रहें न कि सिर्फ विद्यालय प्रांगण के अंदर तक यह सीमा शेष रह जाए। ऐसा करने के लिए सबसे पहले  एक शिक्षक को स्वयं को अनुशासित करते हुए चारित्रिक, नैतिक ,धार्मिक आदि गुणों का विकास करना होगा। क्योंकि इन सब के बिना हमारी आंतरिक भावनाओं का उदय नहीं हो सकता।

शिक्षक को अधिक से अधिक बच्चों के साथ इंटरेक्शन (Interaction) यानि वार्तालाप करना चाहिए ताकि उनके व्यक्तित्व पर यथासंभव अपना प्रभाव डाल सके ।अपने अनुभव ,अपनी शिक्षा, अपने प्रेम, समर्पण अपनी सृजन शक्ति, अपने त्याग, अपने धैर्य आदि का पूर्ण प्रदर्शन करते हुए बच्चों के भी अनुभव, उनके मूल विचार, उनकी भावनाओं आदि को जानने का प्रयास करें और यथासंभव उन्हें अभिप्रेरित करने का प्रयास करें। क्योंकि इन्ही सब विद्यार्थियों में से ही भविष्य में हमारे देश का  नाम रोशन करने वाले कई नागरिक पैदा होंगे।

 आदर्श शिक्षक का कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। एक बात और कि जिस प्रकार शिक्षा एक अंतहीन प्रक्रिया है Education is an Endless Process.उसी प्रकार शिक्षण भी अंतहीन प्रक्रिया है ।
ऐसा मैं मानती हूं ।Teaching and Learning Both are Endless क्योंकि कोई भी इंसान जैसे पूरी जिंदगी सीखता रहता है, सिखाता रहता है ।उसी प्रकार एक शिक्षक का कार्य भी शिक्षा देना है जो कि वह निरंतर देता रहता है। इसलिए उसे किसी विशेष प्रांगण (Campus) किसी विषय, किसी विशेष समय अंतराल, किसी विशेष सहायक सामग्री की आवश्यकता नहीं होती ।यह मेरे मूल विचार हैं। क्योंकि एक अध्यापक जब  अध्यापकीय अहर्ताओं, योग्यताओं से पूर्ण हो जाता है ,तब वह शिक्षा देना प्रारंभ करता है ।मैं यहां यह पूछना चाहती हूं कि जिन शिक्षको को नौकरी नहीं मिल पाती तो क्या वह शिक्षा प्रदान नहीं करते? और जो शिक्षक रिटायर हो जाते हैं तो क्या वे रिटायरमेंट के बाद शिक्षा प्रदान नहीं करते? क्या वह कहते कि अब हम रिटायर हो चुके हैं अब हम शिक्षा प्रदान नहीं करेंगे, शिक्षण प्रदान नहीं करेंगे? ऐसा करने में हम सक्षम नहीं है ।

नहीं, ऐसा कदापि नहीं है ।इसके विपरीत एक शिक्षक तो बिना किसी मांग के, बिना कहे अपना सर्वस्व ज्ञान अनुभव में डुबोकर प्रदान करने के लिए सदैव समाज के सामने तत्पर रहता है। वास्तव में एक शिक्षक की वर्तमान संदर्भ में भूमिका यह है कि जो एक विद्यार्थी के लिए उचित हो, कल्याणकारी हो, दूरगामी हो, प्रायोगिक( Practical) हो, धनोपार्जन में सहायक हो ऐसी शिक्षा को निरंतर प्रदान करते रहना।

अंत में मैं यही कहना चाहती हूँ कि विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए एक सजग, उदात्त चरित्र , धार्मिक नैतिकता परिपूर्ण शिक्षक की आवश्यकता है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को हम ऐसे भारतीय नागरिक बनाने में सफल हो सकें जो विश्व में भारत का नाम रोशन कर सकें और पुनः भारत को 'जगतगुरु' की उपाधि प्राप्त करवा सके। हम सब की भी यही अभिलाषा है ।


                                          शुभमस्तु


                                                                                                     लेखिका-  डॉ विदुषी शर्मा