साहित्य चक्र

25 December 2022

लेखः धर्म-कर्म-शर्म-नर्म


ऊपर वर्णित तीनों शब्द हमारे जीवन के अहम् संस्कार तहजीब व्यवहार और आचरण हैं।



धर्म-कर्म-शर्म



हमारा धर्म हिन्दुत्व सारे भारत में सर्वविदित सर्वमान्य सर्वाधिकार है , हर कोई अपने अपने घरों में सभी देवी देवता की अराधना पूजा- पाठ आस्थावान बन करते हैं। भोग चढ़ाते हैं मंदिर जाकर हजारों का प्रसाद चढ़ाकर प्रभुत्व को प्रसन्नचित्त करने में समर्पित होते हैं।

सही भी है अपनी अपनी श्रद्धाभाव है जिसे अभिव्यक्त करने का व्यक्तिगत हक है लेकिन वही चढ़ावा का पैसा में (हजार रूपए) से दस बीस पचास किसी भिखारी को देना गवारा नहीं ? ये मानव धर्म है जो सभी धर्म से सर्वोपरि है सर्वश्रेष्ठ है। अपने ही निर्धन रिश्तेदार की मदद करना तो दूर , उससे बात करना भी लोग अपनी हेठी समझते हैं।

और तो और अपने बूढ़े माँ- बाप को अपने घर में उपेक्षित करते हैं, यदि वरिष्ठ माता- पिता पेंशनधारी हैं तब तो वो अपने खर्चे व दवाई की जरूरत को वहन करने में सक्ष्म हैं यदि नहीं तो उनका जीवन नरक से भी बदतर है और घर की बहू जीना हराम कर रहना दुश्वार कर देती है।

सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देखा जाए तो अनगिनत केस में वृद्ध लोगों के पक्षपातपूर्ण रवैया की वजह से संतानों के बीच तनातनी चलती रहती है । चार बच्चों में से किसी एक को अधिक महत्व दिया जाए तो दूसरे तीसरे चौथे को बुरा लगता है इसलिए वो खुन्नस में माँ -बाप को नहीं पूछते ? कारण है कि जिसको आप ज्यादा प्यार लूटा रहे उसी के पास रहिए।


हमारा कर्म ही हमें जीवन में ऊँचाई की ओर ले जाता है, जैसा कर्म वैसा धर्म! शर्म लिहाज का होना भी जरूरी है ,बेशरम निर्लज्ज और कुसंस्कारी व्यक्ति समाज परिवार में कभी सम्मानित नहीं सकते।

नर्म मतलब नाजुक यानिकि विनम्रता। विनम्र स्वभाव से ही हम सबका दिल जीत सकते हैं। कठोर स्वभाव वाले का पतन होना सुनिश्चित है उसका नाम हाशिए पर चला जाता है। सरल सहज सज्जन प्रकृति प्रदत्त स्वभाव को सभी पसंद करते हैं।


- अंजूओझा


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