साहित्य चक्र

06 December 2022

कविताः मछली


हे जलजीवन !
तुम मस्त रहती हो अपनी दुनिया में ,
ना तुममें भेदभाव की भावना ,
तुम प्रेममयी हो !

तालाब , नदियांँ , सागर की तुम रानी हो !
अहं नहीं तुमको अपनी सुंदरता पर ,
रंग -  बिरंगी दिखती हो !

तुम तो मेरे मन को भाती हो ,
जल से करती हो ! कितना प्रेम ,
यह हम सब ने देखा है,
अलग होते ही प्राण निछावर कर देती हो ,
हे मछली ! 

तुम ऐसे ही रानी नहीं कहलाती हो!
तुम ! एकनिष्ठ हो !
हमें सच्चा प्रेम करना सिखाती हो !
जग को देती हो सुंदर संदेश !


                  - चेतना प्रकाश 'चितेरी'


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