साहित्य चक्र

15 December 2024

कविता- प्रतीक्षा




घर की देहरी पर, 
मन में उम्मीद का दीपक जला बैठी हूंँ। 
दिल में एक तडप-सी उठे ,
तुझे मैं बिन देर के हृदय से लगा लूंँ। 
तेरे आने की खुशी में, 
इन बूढ़ी आंँखों में एक चमक है।
हाथों में तेरी तस्वीर लिए ,
निष्पलक मैं उस पथ को देखूंँ। 

माँ की ममता आतुर है , 
बुढ़ापे में काया कमजोर है। 
तेरा संदेश सुन, रग-रग में स्फूर्ति आई है। 
मुरझाई अलसाई वीरान-सी जीवन में, 
बाल रूप  की  छवि,  स्मृति बनकर छाई है।

तेरी मीठी-मीठी मक्खन सी बातें, 
मुझको  सींच कर जीवित रखा  है। 
अनगिनत नामों से पुकारती थी तेरी मैया, 
तू मेरा कान्हा, तू मेरा लड्डू,  तू मेरा सोना है। 
तेरी एक मुस्कुराहट पर  मैं बलिहारी, 
तू है मेरा  पार्थ, तू मेरा चीकू, तू मेरा प्रख्यात है। 

तेरी प्रतीक्षा में चल रही साँसे मेरी, 
अब थक गई हूँ, देख लूंँ सूरत तेरी, 
आजा मेरा  बच्चा! तू मेरा  लल्ला है,
तुझसे मैं तर  जाऊंँ, इच्छा है मेरी। 


                                                             - चेतना प्रकाश चितेरी


No comments:

Post a Comment