जयदीप पत्रिका
हिंदी साहित्य की पहचान
साहित्य चक्र
21 December 2024
कविता- चोर दरवाजा
बहुत दिनों से वो इस रास्ते से गुजरता भी नहीं
फिर उस रास्ते पर पाऊं ही मेरा उठता भी नहीं।
उन्हें क्या पता दो बिछड़े फिर कब मिलते भी हैं
जैसे उजड़े सहरा में कोई फूल खिलता भी नहीं।
उनको
पुकारा तो था उन्होंने कभी सुना ही नही
वो फिर कहेंगे सब से मुझको बुलाता भी नहीं।
चाहता तो हूं उन्हीं के दर पे जाकर मिल ही लूं
उनके घर जाने का कोई चोर दरवाजा भी नहीं।
- हनीफ़ सिंधी
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