साहित्य चक्र

21 December 2024

कविता- मिल गई




ज़िन्दगी की मुझे हर ख़ुशी मिल गई,
आप जो मिल गए ज़िन्दगी मिल गई।

और अब ख़्वाहिशें मैं रखूँ क्यूँ भला,
जब मुझे रब की ही बंदगी मिल गई।

आस सँग प्यास का तब विलय हो गया,
जब समंदर में आकर नदी मिल गई।

जब निहारे कभी प्रेम से वो कदम,
अश्रुओं को नई प्यास सी मिल गई।

प्रेम ने कर लिया प्रेम का आचमन,
दिल कहे रश्मि अब तृप्ति ही मिल गई।


- रश्मि ममगाईं


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