साहित्य चक्र

06 December 2022

कविताः कोई पता नहीं



अपने थे या बेगाने
कोई पता नहीं।
गम देगे या खुशियां
कोई पता नहीं।
मुस्कुरा कर गए या
रुलाकर गए
कोई पता नहीं।
हंसते हुए रुला गए
या रुलाते हुए हंसा गए
कोई पता नहीं।
बेनाम का नाम कर गए
या फिर बदनाम कर गए
कोई पता नहीं।
अपनापन दे गए
या बेगाना कर गए
कोई पता नहीं।


- राजीव डोगरा


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