साहित्य चक्र

15 November 2024

हमीद की ग़ज़ल



रोज़  होतीं   वबाल  की  बातें
रंज़  की हैं  मलाल  की   बातें

आज ख़तरे  में  है ज़मीं  सारी
कीजिए मत  क़िताल की बातें

आ गया फिर बहार का मौसम
हुस्न  की हों  जमाल की  बातें

उसको सब  ताकते हैं हैरत से
जिसकी होतीं कमाल की बातें

बह  रही  है  विकास  की गंगा
अब न कीजै  जवाल की  बातें 


                                    - हमीद कानपुरी


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