ऐसा लगता है,
वह यहीं कहीं है,
वह तो नहीं है,
फिर भी उसकी यादें हैं!
मैं जी लूंगा,
उसकी यादों के,
एहसास के सहारे,
जिंदगी का जहर पी लूंगा!
कभी मन उदास होगा,
कभी दिल बेचैन होगा,
तो क्या होगा,
कोई नहीं जानता होगा!
बस मैं जानता हूंगा,
एक कल्पना करूंगा,
वह यहीं है सोच लूंगा,
उसकी राह निहारूंगा!
जाने कब चल दूंगा,
तुम सबका कुछ नहीं लूंगा,
देना चाहोगे भी तो क्या दोगे,
तुम्हारा एक सफेद कपड़ा होगा!
- डॉ. सतीश "बब्बा"
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