नींद में भी उठती हैं
आवाजें वाणी भी तो बंधी है
किनारों में शब्द कब पहुँच पाते है
प्रत्येक पूर्वाग्रहों में...
कितनी पुकारें अनसुनी रहकर
परत दर परत की निस्तब्धता में समा रही हैं।
समयावधि में कृष्ण विवर से टकराकर
कोई रश्मि किरण प्रत्यागत नहीं होती।
वे सारे शब्द, निर्देश, वर्ण और आवाजें
जो अब तक कह नहीं और ना ही सुने गए
उनके आविर्भाव का कोई निशान तलाशती है।
यह मौन का प्रहर यह अकेलापन बड़ा ही
अदभुत है इसमें कल्पनाओं की क्षणिका विद्यमान है।
- डॉ. पल्लवी सिंह 'अनुमेहा'
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