गली-गली फिरती युवती
बन राधा
प्रेम भयो न कोई ।
गली-गली फिरते संत
बन योगी
ध्यान मग्न न कोई ।
गली-गली फिरते साधक
बन तपस्वी
चिंतन करत न कोई ।
गली-गली फिरते ज्ञानी
बन सुविज्ञ
आत्मज्ञान करत न कोई ।
गली-गली फिरते अनुरागी
बन कृष्ण
आत्म समर्पण करत न कोई ।
गली-गली फिरते नायक
बन योद्धा
आत्म द्वंद्व करत न कोई ।
- डॉ.राजीव डोगरा
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