कब से अवनी उस काले से लड़के की बदतमीजी बर्दाश्त कर रही थी एक तो वो लफंगों की तरह भागते हुए चलती बस में चढ़ा था ऊपर से उस की बगल की सीट पर लपक कर बैठ गया था, उस के बैठते ही पसीने की बदबू का झौंका अवनी को असहज कर गया था।
ऊबड़खाबड़ पहाड़ी रास्ता पहले से परेशान अवनी की परेशानी और बढ़ा रहा था आज उस का बिल्कुल भी मन नहीं था कि बस की भीड़भाड़ में सफर करे मगर आनंद के तंज के सामने वो हार गई , जब उस ने कहा वैसे आप बड़ी संवेदनशील आम आदमी की कथाएं लिखती हैं अब उन के साथ ही सफ़र करने में हिचकिचा रहीं हैं? आप उन के साथ उठेंगी - बैठेंगी नहीं तो लिखेंगी क्या? उस को मालूम था कि आनंद का इरादा गलत नहीं था असल में गाड़ी ले जाना घरेलू हालात के हिसाब से उस समय संभव नहीं था और आनंद उस को सिर्फ़ बस के सफ़र के लिए जोश में लाने के लिए ऐसा सब कह रहा था।
खुद अवनी जानती थी कि असल में अब बस का सफर शरीर के हिसाब से सुविधाजनक नहीं लगता था। दिमाग में पीछे कहीं बस में गंदगी बदबू उल्टी करते लोग, तिस पर कान फोड़ू फूहड़ गाने व धक्कमधक्के का भय भी था।
अभी तक वो बस की सीट पर सुरक्षित अकेली बैठी थी, मगर इस लड़के के साथ में आ कर बैठ जाने से उस को अपनी रही- सही सुविधा और सुरक्षा में खलल सा महसूस हुआ।
पहाड़ी मोड़ और गड्ढे पर बस बुरी तरह झोल खा जाती और वो लड़का उस की तरफ झूल जाता। लड़के ने एक हाथ ने एक लिफाफा पकड़ रखा था जिस में वो हर थोड़ी देर में कुछ झांकने की कोशिश कर रहा था इस सब कोशिश में वो संतुलन खो अवनी पर गिर गिर जा रहा था, अवनी परेशान हो उठी उस को लगा वो जानबूझ कर उस की तरफ झूल जाता है, हर थोड़ी देर लड़के का हाथ हिलता अवनी से टकराता हुआ लिफाफे की ओर बढ़ जाता हर बार लिफाफे में झांकने के बाद लड़का मुस्कुरा उठता, साथ ही बस में बज रहे गाने की धुन वो गुनगुनाने लगता है, नहीं ये कोई भ्रम नहीं, वो जानबूझ कर ऐसा कर रहा है, क्या समझता है, छिछोरा हर औरत ऐसी बदतमीजी सह लेगी?
नहीं बिल्कुल नहीं कम से कम व्हबुन औरतों में नहीं जो बदतमीजी बर्दाश्त करें।अवनी ने निश्चय किया कि वो उस को अपनी छुअन का मज़ा बिल्कुल भी ना लेने देगी, तो क्या करे ? इस बार छुएगा तो ज़ोर का थप्पड़ रसीद कर दूंगी...बाकी काम बस के लोग संभाल लेंगे आखिर एक सभ्रांत महिला का साथ कौन नहीं देगा, ना थप्पड़ नहीं कितना गन्दा सा है कब से नहीं नहाया होगा न जाने कितने कीटाणु होंगे चेहरे पर भी ; मेरे थप्पड़ में वैसे भी ताकत ना होगी इसे उल्टे मेरे हाथो की छुअन का मज़ा ही आएगा, कंडक्टर को कहना सही रहेगा उन का पाला रोजाना ही ऐसे लोगों से पड़ता होगा वही निपट लेगा, इस को भी तो पता लगे पढ़ी लिखी सचेत महिलाओं से छेड़छाड़ का मज़ा। लिफ़ाफ़े में झांकने के बहाने मुझ को छू रहा है बदतमीज कहीं का ।
अवनी ने तय कर लिया इस बार कंडक्टर इधर की तरफ आयेगा तो उस को बोल देगी, वो इसको बीच रास्ते में बर्फ के बीच घने जंगल में बस से उतार देगा तब इस को मालूम होगा...वैसे भी ऐसे लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करने लायक नहीं...
अवनी इसी उधेड़ बुन में थी कि साथ के लड़के ने लिफाफे में सही से ना झांक पाने से व्याकुल हो कर एक झटके से लिफाफे से कुछ निकला और तसल्ली से उलट पलट कर देखने लगा...
अवनी ने उस की तरफ गुस्से से देखा लेकिन अचानक उस के भाव बदल गए, लड़का अपने हाथों में नन्हे नन्हे नारंगी बूट थामे बड़ी तन्मयता और प्रेम से उन को देख रहा था, उस लड़के के अब तक के थकान भरे सांवले चेहरे पर नारंगी आभा झलकने लगी...
आंखे तारों की तरह टिमटिमाने लगी, अवनी अब सब भूल उस लड़के को बड़े गौर से टकटकी लगाए देख रही थी, उसके चेहरे पर आते जाते भाव उसको विलक्षण लग रहे थे।
लड़का उम्र में छोटा लगा बूट का नाप देख अवनी ने अंदाज़ लगाया इसका कोई एक डेढ़ साल का होगा...
उस्की खुद की उम्र देख के लग रहा था पहला ही बच्चा होगा। उस लड़के ने बर्फीले मौसम में भी काले रंग की घिसी हुई टूटी चप्पलें पहन रखी थी। कितने सपने समाए हैं इन नन्हे नन्हे बूटों में...
लड़के के चेहरे पे घर जल्दी पहुंचने की व्याकुलता साफ-साफ झलक रही थी...
इधर अवनी को मन ही मन अपनी तुच्छ सोच पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। अवनी की आत्मा कचोट रही थी उस से रहा ना गया...
आखिर मुस्कुरा कर पूछ ही बैठी, बच्चे के लिए नए बूट लाए हो भैया? लड़का और भी खिल कर मुस्कुरा उठा जोश में बोला पूरे ढाई सौ के लिए हैं बहनजी।
अभी अभी चलना सीखा है बबुआ ने...उस की आंखों में अपने ठुमक ठुमक चलते बच्चे का चित्र उभर आया...और वो खो गया, इधर अवनी मन मन में सोचने लगी इस बेचारे गरीब को दुकानदार ने भी ठग लिया है डेढ़ सौ में आ जाते ये बूट... अवनी का ध्यान पर्स में पड़ी महंगी चॉकलेट पर गया, वर्ग भेद से उसका ह्रदय गलने लगा...अचेतन में अवनी ने अपने पर्स में हाथ डाला इस कारण वो संतुलन खो पूरी तरह साथ के लड़के पर गिर पड़ी, लड़का बोला संभल के जीजी,
पहाड़ी रास्ता है पकड़ के बैठना पड़ता है, झेंप कर अवनी मुस्कुरा भर दी और पर्स से एक बड़ी सी चॉकलेट निकाल उस ने लड़के को पकड़ा दी बोली ये अपने बबुआ को हमारी तरफ से दे देना...
इस आदान- प्रदान में दोनों ने थोड़ा सा संतुलन खोया
साथ ही दोनों के चेहरों पर निश्छल मुस्कान तैर गई।
लेखिका- दीप्ति सारस्वत प्रतिमा जी
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