साहित्य चक्र

19 April 2020

दीप जले....



 दीप   जले   जग - दीप  जले।
 यश मंगल का नव दीप जले।।
 अंधियारे  की सब  रीत जले।
 जग उजाला खूब-खूब दिखे।।

           समस्त विश्व का  संकट  जले।
           मूल रोगों का अवसाद  जले।।
           फैले  हुए  सब  विषाणु  जले।
           अंधियारें की वो पौ भी जले‌।।

 श्रेष्ठ उम्मीदों  की  आस  जगे।
 एकता की नई पहचान  बने।।
 हताशों में एक नई आस जगे।
 ऊर्जा की  नई  प्रकाश  जगे।। 

           अंधियारें  के सब  शूल  मिटे। 
           संकट तृष्णा सब - सब मिटे।। 
           संपूर्ण  जगत के  तिमिर  छटे।
           धरा पर कोरोना जड़ से मिटे।।

 जगदीप जले - जगदीप  जले।
  दीप  जले  जग - दीप  चले।।

                                       यशवंत राय श्रेष्ठ


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