सुनो बेटी श्रद्धाओ मेरी बात पर देना ध्यान
मां बाप का कभी दिल मत दुखाना
मां बाप को छोड़ कर
आफताब के साथ कभी मत जाना
आफताब तुम्हें बहलाएगा फुसलाएगा
झूठा प्यार जताकर अपने जाल में फँसायेगा
मकसद पूरा हो जाएगा जब
तब मारेगा पीटेगा और रुलाएगा
जब तुम्हें समझ आएगी बहुत देर हो जाएगी
मां बाप का शर्म के मारे सिर झुक जाएगा
कोई रोकने वाला नहीं होगा आफताब को
एक दो नहीं तेरे पैंतीस टुकड़े कर जाएगा
आरी से काटेगा तुम्हारे बदन को टुकड़ों में
खून की निकलती पिचकारी पर वह अट्टहास लगाएगा
संस्कार ही ऐसे मिले हैं उसको बचपन से
कत्ल करने में वह बिल्कुल भी नहीं घबराएगा
फूल की तरह खिलती मुस्कुराती श्रद्धा
तुम एक दिन इतनी बेबस हो जाओगी
खौफ खाते थे जिससे दोस्त भी सारे
क्या मालूम एक दिन टुकड़ों में बिखर जाओगी
तू आफताब के मन को क्यों नहीं समझ पाई
मन का झूठा था निकला वो कसाई
जात पात मज़हब छोड़कर क्यों उसके साथ गई तुम
नफरत की आग में कर गया वो बेवफाई
श्रद्धा तुम क्यों करती हो यह गलती बार बार
कभी जलाता हैं फैंकता है तुम पर तेजाब
कभी कोई आफताब लूटता है आबरू सरे बाजार
फिर भी क्यों हो जाती हो उसके साथ जाने को बेताब
- रवींद्र कुमार शर्मा
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